डीएनए हिंदी: महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की सरकार बनने के बाद से शिवसेना में बगावत का दौर लंबा खिंचता नजर आ रहा है. महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों के शिवसेना नेता लगातार एकनाथ शिंदे गुट में शामिल हो रहे हैं. ऐसे में शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के सामने मुश्किलें और भी ज्यादा बढ़ती जा रही है. बढ़ती मुश्किलों को देखते हुए महाराष्ट्र के सियासी जानकारों का मानना है कि उद्धव ठाकरे के सामने अब बेहद कम रास्ते बचे हैं. उद्धव के सामने जो विकल्प बचे भी हैं, उनमें एक विकल्प है भाजपा से हाथ मिलाना और एकनाथ शिंदे गुट से समझौता करना है.
हालांकि उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के लिए भाजपा के साथ दोस्ती इतनी आसान भी नहीं जितनी दिखाई देती है. भले ही शिवसेना के अंदर से भाजपा के साथ रिश्ते सामान्य करने की मांग हो रही हों, भले ही उद्धव द्वारा राष्ट्रपति चुनाव के लिए NDA प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने की बात कही हो लेकिन फिलहाल उनका और भाजपा का एकबार फिर से साथ आने की बातें करना जल्दबाजी होगी.
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क्यों उद्धव की राह मुश्किल?
दरअसल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सामने मौजूदा समय में दो ही रास्ते नजर आते हैं. पहला यह कि वह MVA का हिस्सा बने रहें और भाजपा का विरोध करते रहें और दूसरा यह कि वह शिंदे विरोधी गुट के साथ समझौता कर भाजपा से रिश्तें सामान्य कर लें. लेकिन महाराष्ट्र के सियासी जानकारों का मानना है कि इन दोनों ही स्थितियों में उद्धव ठाकरे खुद को कमजोर करते दिखाई देंगे. दरअसल, शिवसेना में दो गुट बनने की बड़ी वजह कांग्रेस और NCP ही हैं. अगर उद्धव इन दलों के साथ गठबंधन जारी रखेंगे तो निश्चित ही पार्टी के अंदर जारी विरोधाभास कायम रहेगा. इसी सवाल पर उनकी पार्टी कमजोर भी हो रही है.
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अब बात दूसरे विकल्प की. कभी महाराष्ट्र में रिमोट कंट्रोल के जरिए सरकार चलाने वाले बालासाहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे के सामने ऐसी स्थिति पैदा होगी यह किसी ने सोचा न होगा. अगर उद्धव ठाकरे एकनाथ शिंदे के नेतृत्व को स्वीकारते हैं और भाजपा के करीब आते हैं तो भी यह उनके लिए नुकसानदायक साबित होने की संभावना है.भाजपा से हाथ मिलाने पर उद्धव ठाकरे सत्ता के करीब तो आ जाएगा लेकिन उनका कद और भी ज्यादा कम हो जाएगा. लेकिन उद्धव के सामने एक और बड़ी समस्या यह है कि इस समय वो अकेले चलने का फैसला भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनके इस फैसले से MVA खत्म हो जाएगा. ऐसी कमजोर स्थिति में वो और कमजोर हो जाएंगे.
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भाजपा भी बनाना चाहती है दूरी?
महाराष्ट्र के सियासी जानकारों का यह भी मानना है कि खुद भाजपा के सीनियर नेता भी उद्धव ठाकरे और उनके परिवार से दूरी बनाए रखना चाहते हैं. इसके पीछे की बड़ी वजह से शिवसेना को ठाकरे परिवास से मुक्त करने की रणनीति. ऐसे में अगर भाजपा उद्धव से हाथ मिलाती है तो यह काम बेहद मुश्किल हो जाएगा. भाजपा अब राज्य में बड़ा हिस्सा चाहती है ऐसे में वो उद्धव को कमजोर ही करना चाहेगी. आने वाले दिनों में उद्धव ठाकरे कमजोर होंगे या मजबूत होकर उभरेंगे, इसका एक ट्रेलर BMC चुनाव में दिखाई दे सकता है. BMC चुनाव उद्धव ठाकरे का भविष्य तय करने में बड़ी भूमिका निभाएंगे.
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