अपनी मिलिट्री यूनिट का नाम पानीपत क्यों रख रहा है Taliban?
हिंदू साम्राज्य का गौरवशाली अतीत अफगानिस्तान तक फैला था और इस्लाम के उदय के साथ यह साम्राज्य सिकुड़ने लगा था.
तालिबान यह भूल गया है कि भारत का गौरवशाली अतीत अफगानिस्तान तक फैला था. यह साम्राज्य इस्लाम के उदय के साथ-साथ सिकुड़ता चला गया. सामान्य तौर पर, अफगानिस्तान में किसी भी सैन्य इकाई को इस्लामी नाम दिया जाता है. यह पहली बार है कि तालिबान ने एक सैन्य यूनिट का नाम उस जगह के नाम पर रखा है, जिसे वह इस्लामी कट्टरपंथियों की वजह से 'वीरता का प्रतीक' मानता है.
तालिबानी यूनिट का नाम 1761 की लड़ाई के नाम पर रखा गया है. यह लड़ाई जो अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ी गई थी, जहां . मराठा साम्राज्य की इस ऐतिहासिल लड़ाई में हार हुई थी. अफगानिस्तान का मानना है कि यह हिंदू धर्म पर इस्लाम की सबसे बड़ी जीत थी. पानीपत की लड़ाई पर लिखी गई ज्यादातर किताबें अफगान सेना की प्रशंसा में लिखी गई हैं. असली लड़ाई में मराठों ने अब्दाली को रुला दिया था. अब्दाली भी मराठाओं की तारीफ कर गया था.
पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 में अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली और पुणे के सदाशिवराव भाऊ पेशवा के नेतृत्व में लड़ी गई. यह लडाई अहमद शाह अब्दाली ने सदा शिवराव भाऊ को हराकर जीत ली थी. यह हार इतिहास मे मराठों की सबसे भयानक हार थी. जानकार कहते हैं कि इस लड़ाई ने एक नई सैन्य ताकत को जन्म दिया जिसके बाद से भारत में अग्रेजों की विजय के रास्ते खोल दिये थे. दरअसल, 18वीं शताब्दी में जैसे-जैसे भारत में मुगल शासन कमजोर हुआ, वैसे-वैसे कश्मीर, पंजाब और स्वात घाटी के कुछ इलाके अफगानिस्तान के नियंत्रण में चले गए और अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली को जीतने की पूरी योजना बना ली.
उस समय दिल्ली में मुगलों का शासन था और मुगल भी अहमद शाह अब्दाली से काफी प्रभावित थे. इसलिए मराठा साम्राज्य ने ये तय किया कि वो अहमद शाह अब्दाली को रोकने के लिए अपनी सेना को पुणे से 1500 किलोमीटर उत्तर में एक नया युद्ध लड़ने के लिए भेजेगा, जिसका मकसद होगा हिन्दू धर्म और उसकी रियासतों को विदेशी आक्रमणकारियों से बचाना. साल 1750 आते-आते मराठा साम्राज्य पंजाब तक पहुंच गया था. और मराठाओं ने लाहौर किले पर कब्जा करके अहमद शाह अब्दाली के बेटे को वहां से भागने पर मजबूर कर दिया था और लाहौर के किले पर 800 वर्षों के बाद भगवा ध्वज लहरा दिया था. ये एक बहुत बड़ी जीत थी क्योंकि उस समय मुगल और दूसरे मुस्लिम शासक अहमद शाह अब्दाली की गोद में जाकर बैठ गए थे.
पानीपत की तीसरी लड़ाई सिर्फ एक दिन ही चली थी और ये दिन था, 14 जनवरी वर्ष 1761 का. उस समय युद्ध में दोपहर तक मराठा सेना का पलड़ा भारी था और अफगान सैनिक युद्ध भूमि छोड़ कर भाग रहे थे. लेकिन इस दौरान कुछ रणनीतिक गलतियां हुईं, जिनका फायदा उठा कर अहमद शाह अब्दाली की सेना ने मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ की हत्या कर दी और इसके बाद मराठा सेना पूरी तरह बिखर गई. पानीपत की तीसरी लड़ाई, एक तरफा लड़ाई नहीं थी. इससे पहले दो और छोटे युद्ध हुए थे. इनमें पहला युद्ध वर्ष 1760 में करनाल में और दूसरा कुंजपुरा में हुआ था, जो हरियाणा में है. और इन दोनों जगहों पर अहमद शाह अब्दाली की सेना मराठाओं से हार गई थी.
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने भारत की दुखती रग पर हाथ रखने के लिए अपनी एक मिलिट्री यूनिट का नाम पानीपत रख दिया है. इस सैनिक टुकड़ी का नाम पानीपत रखने के पीछे तालिबान की सोच ये है कि वो वर्ष 1761 में हुए पानीपत युद्ध की याद दिला कर, हिन्दू संस्कृति का अपमान कर सके. पानीपत के इस युद्ध में अफगानिस्तान से आए अहमद शाह अब्दाली की सेना ने मराठा सेनाओं को हरा दिया था और अब तालिबान भारत के 140 करोड़ लोगों को उसी युद्ध की यादें ताजा करवाना चाहता है. हालांकि सच्चाई यह है कि भारतीय सैनिकों के आगे सारे तालिबानी लड़ाके 2 घंटे भी नहीं टिक सकते हैं. यह नए दौर का भारत है और दुनिया की महाशक्तियों में शुमार है. अगर भारत अफगानिस्तान को मानवीय मदद न दे तो अफगानिस्तान पहले से खराब हालत और खराब हो जाएगी.