जिंदगी के फलसफों से लेकर फिलॉसफी तक पढ़िए Mirza Ghalib के बेहद मशहूर शेर

पढ़िए, सुनिए और सुनाइए शेरो-शायरी के शहंशाह माने जाने वाले मिर्जा ग़ालिब के कुछ मशहूर शेर-

मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib) का जन्मदिन है आज और सोशल मीडिया पर हर तरफ उनकी शायरी नजर आ रही है. जन्मदिन नहीं भी होता है तो भी चचा ग़ालिब की शायरी वायरल ही रहती है. दुख कैसा भी हो मायूसी कहीं से भी आई है, रूह तक राहत पहुंचाने का इंतजाम मिर्जा की शायरी में हमेशा बना रहता है. उनके ऐसे ही कुछ बेहद मशहूर शेर-

आगरा में हुआ था जन्म

मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था. वह फारसी और उर्दू के मशहूर कवि थे. आज भी वह उर्दू के सबसे मशहूर कवियों में शामिल हैं और उन्हें चचा ग़ालिब के नाम से जाना जाता है. वह सिर्फ भारत और पाकिस्तान ही नहीं दुनिया भर में अपनी शायरी के लिए जाने जाते हैं.

11 साल की उम्र से लिखने लगे थे शायरी

मिर्जा गालिब ने 11 साल की छोटी सी उम्र से शायरी लिखना शुरू कर दिया था. उनकी शायरी में जो दर्द छलका उसी ने उन्हें लोगों के बीच मशहूर बनाया. इस दर्द के पीछे थी उनकी खुद की जिंदगी, जो मुसीबतों के बीच गुजरी. कम उम्र में उनके खुद के माता-पिता चल बसे और उन्होंने भी अपने सात बच्चों को जन्म के कुछ समय बाद ही खो दिया.

13 साल की उम्र में हो गई थी शादी

मिर्जा असदुल्लाह बेग खान के नाम से जन्मे, लेकिन पहचाने गए ग़ालिब के नाम से. उनका ज्यादातर समय दिल्ली में गुजरा. आर्थिक परेशानियों से जिंदगी भर गालिब जूझते रहे. 13 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी. शादी के बाद ही वह दिल्ली में जा बसे थे.

बहादुर शाह जफर के दरबार में बने कवि

सन् 1850 में बहादुर शाह जफर-2 ने मिर्जा गालिब को दरबार-ए-मुल्क की पदवी से नवाजा था. बहादुर शाह ज़फ़र के दरबार में वह दरबारी कवि रहे, यानी बादशाह को खुश करके शायरी करना और जीवन यापन करना ही उनका मूल काम था.

1869 में हुआ था निधन

नई दिल्ली में 15 फरवरी 1869 को मिर्जा गालिब दुनिया को अलविदा कह गए. जहां वह रहते थे, उस जगह को अब एक मेमोरियल में तब्दील किया जा चुका है.

ख़त लिखने के थे बेहद शौकीन

ग़ालिब को पत्र लिखने का बहुत शौक था. उर्दू में पत्र लिखने की परंपरा की शुरुआत उन्होंने ही की. पत्र लेखन की कला का पुरोधा उन्‍हें ही कहा जा सकता है. उन्‍होंने अपने दोस्तों को खत लिखे और किस्सागोई भरे जिस अंदाज में लिखे, वह आज भी एक विरासत की तरह हैं.

जिंदगी की फिलॉसफी सिखाते हैं ग़ालिब के शेर

अब इस बात में कोई शक नहीं कि दुनिया से रुखसत होने के 150 से ज्यादा साल बाद भी जो हमारे बीच हर वक्त उठते-बैठते हैं, जिनके शेर और शायरी पढ़े बिना शेरो-शायरी की महफिल अधूरी है, वो मिर्जा गालिब सिर्फ फलसफे नहीं कहते थे, उन्होंने जिंदगी की फिलॉसफी को बहुत आसान शब्दों में समझाया है.