Mirza Ghalib 225th Birth Anniversary: कौन थे मिर्ज़ा गालिब, उनकी बर्थ एनिवर्सरी पर पढ़िए उनके ये मशहूर शेर

मशहूर शायर Mirza Ghalib के जन्मदिन पर हम आपको बताते हैं कैसी रही उनकी जिंदगी साथ में उनके मशहूर शेर भी

डीएनए हिंदी: आज मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib 225th Birth Anniversary) की बर्थ एनिवर्सरी है और सोशल मीडिया पर हर तरफ उनकी शायरी को लोग शेयर करके उनको सम्मान दे रहें हैं. आइए उनके जन्मदिन पर उनके शेरो-शायरी के साथ जानते हैं कौन थे मिर्ज़ा ग़ालिब.

Mirza Ghalib was born in Agra

मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था. उर्दू और फारसी के इस मशहूर शायर का पूरा नाम 'मिर्ज़ा असद उल्लाह बेग खां उर्फ ग़ालिब' था. आज भी उन्हें उर्दू का सबसे मशहूर कवि माना जाता है. 

Started writing poetry at the age of 11 Years

मिर्ज़ा ग़ालिब ने महज 11 साल की छोटी सी उम्र से शायरी लिखना शुरू किया था. उनकी शायरी में दिखने वाले दर्द ने उन्हें लोगों के बीच खूब लोकप्रिय बनाया. दरअसल इस दर्द के पीछे की असली वजह उनकी खुद की निजी जिंदगी थी जो कई दुखों और मुश्किलों के बीच गुजरी. छोटी सी उम्र में उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था. इतना ही नहीं उनके खुद के 7 बच्चों के जन्म के कुछ समय बाद ही उनको भी खो दिया.

Mirza Ghalib was married at the age of 13 years

मिर्ज़ा ग़ालिब के का ज्यादातर समय दिल्ली में बीता. मिर्ज़ा ग़ालिब, आर्थिक दिक्कतों से जिंदगी भर जूझते रहे. इतना ही नहीं महज 13 साल की उम्र में उनका निकाह हो गया था. अपने निकाह के बाद से ही ग़ालिब दिल्ली में जाकर रहने लगे.

Mirza Ghalib: A Poet in the court of Bahadur Shah Zafar

साल 1850 में भारत के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर-II ने मिर्ज़ा ग़ालिब को 'दरबार-ए-मुल्क' की पदवी से नवाजा था. बहादुर शाह जफर के दरबार में मिर्ज़ा ग़ालिब दरबारी कवि रहे. अपनी शायरी से बादशाह जफर को खुश करना मिर्ज़ा ग़ालिब की जीविका बन गई. 15 फरवरी 1869 को मिर्ज़ा ग़ालिब ने नई दिल्ली में अपनी आखिरी सांस ली और दुनिया से विदा हो गए. जिस जगह ग़ालिब रहा करते थे उस जगह को अब एक मेमोरियल में तब्दील किया जा चुका है.

Mirza Ghalib was very fond of writing letters

मिर्ज़ा ग़ालिब को खत लिखने का बहुत शौक था. उर्दू भाषा में पत्र-व्यवहार की परंपरा उन्होंने ही शुरू की थी. कई लोग तो उन्हें खत लिखने का बादशाह भी कहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस अंदाज वे अपने दोस्तों को खत लिखकर किस्से बयां किया करते थे वो आज भी एक विरासत की तरह है.

Mirza Ghalib took his last breath in 1869

15 फरवरी 1869 को मिर्ज़ा ग़ालिब ने नई दिल्ली में अपनी आखिरी सांस ली और दुनिया से विदा हो गए. जिस जगह ग़ालिब रहा करते थे उस जगह को अब एक मेमोरियल में तब्दील किया जा चुका है.
 

Ghalib's Sher teaches the philosophy of life

मिर्ज़ा ग़ालिब पर कई सारी किताबें लिखी पढ़ी जा चुकी हैं पर आज भी उनकी शायरी हर किसी के जुबां पर हैं. इस दुनिया से रुखसत हुए उन्हें 153 साल से ज्यादा का समय हो चुका है. मिर्ज़ा ग़ालिब सिर्फ फलसफे नहीं कहा करते थे बल्कि उन्होंने जिंदगी की फिलॉसफी को बहुत आसान शब्दों में समझाया है.