Vijay Diwas 2022: 9 फोटो में देखिए 16 दिसंबर 1971 को कैसे किया था पाकिस्तान ने सरेंडर, क्या था उस दिन ढाका का घटनाक्रम
1971 India Pakistan War: ढाका में सरेंडर के दौरान पाकिस्तानी जनरल एके नियाजी (General AK Niazi) को क्या सौंपेंगे, यह भी बड़ा सवाल था.
कुलदीप पंवार | Updated: Dec 16, 2022, 04:40 PM IST
ढाका की सड़कों पर जगह-जगह बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी (Bangladesh Mukti Wahini) के लड़ाकों ने कब्जा जमाया हुआ था, जिन्होंने भारतीय सेना की मदद से पाकिस्तान के छक्के छुड़ा रखे थे. इन लड़ाकों के हाथ कोई भी पाकिस्तानी सैनिक लग रहा था, तो उसे सीधे गोली से उड़ा दिया जा रहा था. हालात ये थे कि कई जगह पाकिस्तानी वाहनों का इस्तेमाल कर रहे भारतीय जवानों पर भी गोलियां बरसा दी गईं, जिसके लिए बाद में माफी भी मांगी गई. करीब 24 साल से पश्चिमी पाकिस्तान (मौजूदा पाकिस्तान) का जुल्म सह रहे बांग्ला भाषी पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) के आजाद होने का जश्न ढाका की सड़कों पर जगह-जगह मनाया जा रहा था. मुक्ति वाहिनी के लड़ाके मार्चपास्ट कर रहे थे.
ढाका में 13-14 दिसंबर की रात में भारतीय मिग-21 फाइटर जेट्स के गवर्नर हाउस के मुख्य भवन पर बम बरसा देने के बाद सरेंडर की भूमिका बन गई थी. तत्कालीन पाकिस्तानी गवर्नर मलिक ने कांपते हाथों से एयररेड शेल्टर में बैठकर अपना इस्तीफा लिखा, लेकिन सवाल था कि सरेंडर कैसे होगा? 15 दिसंबर को भारतीय सेना के मेजर जनरल गंधर्व नागरा ने पाकिस्तानी जनरल नियाजी को फाइनल नोट भेजा. उन्होंने सारा खेल खत्म होने की बात कहते हुए सरेंडर करने की सलाह दी. सरेंडर के लिए तैयार बैठे नियाजी ने उन्हें बातचीत के लिए बुलाने को ढाका गैरिसन के जीओसी जनरल जमशेद को कार में भेजा. मेजर जनरल नागरा ने उनकी गाड़ी से पाकिस्तानी झंडा उतारकर भारतीय 2-माउंटेन डिव का झंडा लगाया और जनरल नियाजी के पास गए. इसके बाद तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख फील्ड मार्शल जनरल सैम मानेकशॉ (Field Marshal Sam Manekshaw) को पाकिस्तानी सेना के सरेंडर के लिए तैयार होने का संदेश भेजा गया.
जनरल नियाजी ने ढाका एयरपोर्ट पर जनरल जैकब को रिसीव करने के लिए अपनी कार भेजी थी. जनरल जैकब ने बाद में मीडिया से बातचीत में कहा, जब वे एयरपोर्ट से चले तो बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों ने पाकिस्तानी जनरल मानकर कार पर गोलियां बरसा दीं. उन्होंने कार से कूदकर जान बचाई और अपने भारतीय जनरल होने की जानकारी दी. इसके बाद ही आगे जा सके.
जनरल जैकब के मुताबिक, जब नियाजी को सरेंडर की शर्तें सुनाई गई तो वह रोने लगे. कई शर्तों पर उन्हें ऐतराज था. इस पर जनरल जैकब ने उन्हें पहले समझाया, फिर 30 मिनट का फाइनल समय दिया और कहा कि इसके बाद पाकिस्तानी सेना पर फिर से बमबारी शुरू हो जाएगी. जनरल जैकब के मुताबिक, ढाका में उस समय 26,000 पाकिस्तानी जवान थे, जबकि हमारे 3,000 जवान ढाका के अंदर नहीं करीब 3 किलोमीटर दूर थे.
जनरल जैकब ने मीडिया से बातचीत में बताया था कि उन्होंने जनरल नियाजी को जनरल अरोड़ा के सामने तलवार सरेंडर करने की सलाह दी. उन्होंने कहा, पाकिस्तानी सेना तलवार नहीं रखती. इस पर मैंने उन्हें कहा कि टोपी या बेल्ट सबके सामने उतारना आपकी बेइज्जती होगा, इसलिए आप एक पिस्टल साथ ले लीजिए और उसे सरेंडर कर दीजिएगा.
युद्ध का माहौल, सरेंडर की बातचीत, इसके बावजूद जनरल नियाजी की तरफ से भारतीय सेनाधिकारियों के लिए शानदार लंच का इंतजाम था. करीने से टेबल थी. कांटे-छुरी लगे हुए थे. खाना खाकर जनरल जैकब और नियाजी एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए, जहां जनरल अरोड़ा पहुंच रहे थे. जनरल जैकब के काफिले को रास्ते में फिर से बांग्लादेशी लड़ाकों ने रोक लिया, जो जनरल नियाजी को अपनी हिरासत में लेना चाहते थे. जनरल जैकब के साथ महज दो भारतीय पैराट्रूपर थे. इसके बावजूद उन्होंने बांग्लादेशी लड़ाकों को धमकाते हुए वहां से चले जाने को कहा. इसके बाद बांग्लादेशी लड़ाके पीछे हटे. इसके बाद जनरल नियाजी को भारतीय जवानों ने घेर लिया और अपनी सुरक्षा में सरेंडर के लिए लेकर गए.
जनरल अरोड़ा 5 MQM हेलिकॉप्टर से अपने जवानों के साथ एयरपोर्ट पर उतरे और रेसकोर्स मैदान पर सरेंडर प्रक्रिया शुरू हुई. सरेंडर के कागजों पर जनरल अरोड़ा और जनरल नियाजी के हस्ताक्षर हुए. इसके बाद नियाजी ने अपने सैन्य बिल्ले उतार दिए और अपनी रिवाल्वर जनरल अरोड़ा को सौंपकर सरेंडर कर दिया. तत्काल इसकी जानकारी फोन से दिल्ली दी गई.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस समय संसद भवन के अपने ऑफिस में विदेशी मीडिया को इंटरव्यू दे रही थी. इंटरव्यू के बीच में ही उनके लाल फोन की घंटी बजाकर जनरल मानेकशॉ ने जीत की जानकारी दी. इसके बाद इंदिरा गांधी तत्काल इंटरव्यू बीच में ही छोड़कर लोकसभा में पहुंची और कहा- ढाका अब एक स्वतंत्र देश की राजधानी है.