योगेंद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर बटालियन में पदस्थ थे. उस वक्त उनकी उम्र महज 19 साल थी. उन्हें एलओसी की सीमा पर सेना में ढाई साल ही हुए थे. यादव को 17000 फीट ऊंची टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने का लक्ष्य दिया गया गया था. उस वक्त टाइगर हिल पाकिस्तानी फौज के कब्जे में था. 19 साल की उम्र कम जरूर थी लेकिन देश के सम्मान की आग उनके सीने में धधक रही थी और हौसला उम्र से कहीं बड़ा था.
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योगेंद्र सिंह यादव ने अपनी पूरी पलटन को लेकर दुश्मन की तरफ चढ़ाई शुरू कर दी थी. गोली लगने के बाद भी उन्होंने हिम्मत दिखाई और ताबड़तोड़ गोलियां चलाई और दुश्मन के बंकर तबाह कर दिए थे. आखिरकार अपनी बटालियन के साथ वह टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने में कामयाब हुए थे. इसके बाद 18 महीने तक उनका इलाज चला था और फिर ठीक होकर वापस वह देश सेवा के लिए जुड़ गए.
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अदम्य बहादुरी दिखाने के लिए 19 साल की उम्र में उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया था. यादव को सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र पाने का गौरव हासिल हुआ है. उनकी बहादुरी के किस्से आज भी मिसाल हैं. यादव अपनी शादी के कुछ ही दिन बाद पाकिस्तान के साथ युद्ध शुरू होने कीवजह से ड्यूटी पर लौट गए थे.
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करगिल में अपने साहस के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव अब कैप्टन के पद से रिटायर हो चुके हैं. 1 जनवरी 2022 को उनके रिटायरमेंट के मौके पर उन्हें गुलदस्ता देकर सम्मानित किया गया था. यादव ने करगिल युद्ध के बाद देश के लिए लगभग 23 साल तक सेवाएं दी थीं. इस दौरान उन्होंने कई मुश्किल मोर्चे पर अपनी भूमिका निभाई थी.