DNA Exclusive: 'हम जीत चुके थे,' ब्रिगेडियर करिअप्पा ने याद किया- जब अपनों पर ही चलवाई थी बोफोर्स

पूजा मेहरोत्रा | Updated:Jul 26, 2024, 02:50 PM IST

कारगिल की चोटी पर कैप्टन करिअप्पा के साथ उनकी टीम, फोटो: कैप्टन करिअप्पा

25th Kargil Vijay Diwas:आज द्रास में वो पल वो गोलियों की गड़गड़ाहट मन को छलनी कर रही है. ब्रिगेडियर कारिअप्पा कहते हैं, ‘मेरी टीम में उस समय 23 जवान थे. कारगिल युद्ध को 25 साल बीत चुके हैं. आज मैं द्रास में हूं. पीएम एकबार फिर जवानों में जोश भर रहे हैं.'

देश आज 25वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है. द्रास में इस युद्ध में शहीद हुए जवानों  को पूरा देश श्रद्धाजंलि दे रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे कल ही युद्ध खत्म हुआ हो. 
'कारगिल युद्ध को 25 साल बीत चुके हैं. आज मैं द्रास में हूं. पीएम एकबार फिर जवानों में जोश भर रहे हैं.' यह कहना है ब्रिगेडियर करिअप्पा का. 
डीएनए हिंदी से 26 जुलाई की सुबह हुई विशेष बातचीत में  ब्रिगेडियर करिअप्पा काफी खुश सुनाई दे रहे थे. बहुत धीमी आवाज में कहते हैं,'आप नहीं भूलतीं हमें सैल्यूट करना.' मैंने कहा पूरा देश नहीं भूलता है.
वो अभिभूत सुनाई देते हैं..कहते हैं, 'हां, जिस तरह से बीतते वर्ष के साथ हर साल सेना को और कारगिल के शहीदों को याद किया जाता है दिल गदगद हो जाता है.'

कारगिल युद्ध के दौरान करिअप्पा कैप्टन थे. हर हर महादेव के साथ उनकी टीम कारगिल की चोटी पर चढ़ती जा रही थी. बातचीत के दौरान कई बार उनकी आवाज भरभरा जाती है. क्योंकि कारगिल पर विजय के लिए देश ने कई कुर्बानियां दी हैं. वह कहते हैं इस युद्ध में 527 जवान देश ने खोए थे और 1363 जवान घायल हुए थे. 
शरहद पर मरने वाला हर एक था हिंदुस्तानी. आज कारगिल विजय की 25वीं वर्षगांठ है. हम सैल्यूट कर रहे हैं कैप्टन करियप्पा को. पांच पारा के कैप्टन बालयेदा मुथन्ना कारिअप्पा देश के वो जाबांज हैं जो इस युद्ध में न केवल खुद बचकर आए बल्कि अपनी पूरी टुकड़ी को बचा लाए थे.


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सामने दुश्मन, पीछे बोफोर्स  के गोले

करिअप्पा  23-24 जुलाई की उस दरमियानी रात को याद करते हुए कहते हैं पाकिस्तानी दुश्मन हमसे महज 40 मीटर की दूरी पर था और आरपीजी से गोलियां बरसा रहा था. रॉकेट लांचर से निकलते छर्रे हमारे जवानों के शरीर को छलनी और जख्मी कर रहे थे. तब एक जाबांज ने अपने रेडियो सेट को उठाकर कोनिकल की पहाड़ी पर अपना लोकेशन बताया और बोफोर्स चलाने को कहा था. 
वो पल उनकी नजरों के आगे उमड़ घुमड़ रहा है. आज द्रास में वो पल वो गोलियों की गड़गड़ाहट मन को छलनी कर रही है. ब्रिगेडियर कारिअप्पा कहते हैं, ‘मेरी टीम में उस समय 23 जवान थे. मैंने रेडियो सेट पर अपने अफसरसे बोफोर्स के लिए आर्टिलरी मांगी.  मुझे दूसरी तरफ से डांटा जा रहा था क्या अपने ही जवानों पर गोली दाग दें? उस समय दोनों अफसरों के बीच और क्या बातें हुईं उसे लिखा नहीं जा सकता है.  वह भर्राई हुई आवाज में कहते हैं..मुझे सिर्फ अपने देश के साथ जवानों को भी बचाना था..'
 
'कारगिल युद्ध का एक एक मंजर फिर से नजरों के सामने उमड़-घुमड़ रहा है.' 

कुछ देर के लिए वो शांत हो जाते हैं. अफसर से चल रही बातचीत के बीच दो जवानों को खो चुका कप्तान अब अपना आपा खो चुका था. उसके सामने कई घायल जवान दर्द से तड़प रहे थे. दुश्मन बहुत करीब आ चुका था. जितनी भी गोलियां और हथियार थे वो उनसे निपटने के लिए नाकाफी लग रहे थे. 
वह कहते हैं, 'अगर हमें उस समय अगर हम आर्टिलरी सपोर्ट नहीं मिलती तो हमारे जवानों की शहादत बेकार चली जाती और दुश्मन पहाड़ी पर कब्जा कर लेते.'


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मौत का सन्नाटा और वो दनादन आते गोले

अफसर मान चुका था. कैप्टन के आदेश के बाद पूरी टुकड़ी के जवानों के चेहरे पर मौत का सन्नाटा दिखाई दे रहा था. हर किसी को पता था उनकी मौत  सामने है. अगर पीछे से बोफोर्स का गोला गलत पड़ता है तब भी टुकड़ी के जवान खोते, और सामने तो पाकिस्तान दुश्मन था ही. 

टीम को पता था उनका कप्तान उनके साथ गलत नहीं होने देगा. कप्तान ही भगवान है. आदेश के बाद खुद करिअप्पा कुछ दिन पहले खो चुकी को मां को याद करते हैं. दुश्मन और करीब  आ चुका था. पूरी टुकड़ी अब पोजीशन ले चुकी थी..कुछ ही मिनट में गोला आया और हम सिर झुका चुके थे और पत्थरों के पीछे थे...हमारे चारों तरफ खून...मांस के लोथड़े और हम जीत चुके थे...

जब बोफोर्स के गोले दागने बंद हुए और हमने सिर ऊपर किया तो सभी जिंदा थे…एक दूसरे को गले लगा रहे थे..कई जवानों के आंसू रुक नहीं रहे थे..हमने फतह कर लिया था..मेरी चोट मेरा खून, और कह रहे थे शुक्र है तू जिंदा है.  

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