डीएनए हिंदी: देश आज डॉक्टर भीमराव अंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) की 131वीं जयंती मना रहा है. अंबेडकर भारत में सामाजिक समता के शिल्पकार हैं. उन्होंने संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी. क्या आप जानते हैं कि दलित, वंचित और महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई लड़ने वाले अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच हमेशा विचारधाराओं की तकरार रही. आइए जानते हैं पूना पैक्ट का वह किस्सा जब अंबेडकर रो पड़े थे.
आधुनिक भारत के शिल्पकार अंबेडकर और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के बीच वैचारिक स्तर पर हमेशा एक द्वंद्व देखने को मिला. अंबेडकर ने कई मौकों पर गांधी का खुलकर विरोध किया था. गांधी के हिस्से में अंबेडकर के जरिए तारीफें कम और आलोचनाएं ज्यादा आईं.
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गांधी और अंबेडकर के बीच हमेशा रही अनबन
दोनों के बीच कई सिद्धातों को लेकर मतभेद था. गांधी जाति प्रथा और छुआछूत को हमेशा सामाजिक कारण मानते थे वहीं अंबेडकर इसे राजनीतिक कारण मानते थे. अगस्त 1932 में ब्रिटिश सरकार ने दलितों को 2 वोट का अधिकार दिया था. महात्मा गांधी ने इस फैसले पर ऐतराज जताया था. उन्होंने अंग्रेजों के इस फैसले के खिलाफ आमरण अनशन का रास्ता चुना.
24 सितंबर 1932 को पुणे की यरवदा जेल में महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर के बीच एक अहम समझौता हुआ जिसे पूना पैक्ट का नाम दिया गया था. दलितों के उत्थान के लिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर हमेशा से प्रयासरत थे. उनकी कोशिश का ही नतीजा था कि 1909 में भारत सरकार अधिनियम के तहत अछूत समाज के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया.
कैसे पड़ी पूना पैक्ट की नींव?
16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश सरकार एक विभाजनकारी कानून लेकर आई. अंग्रेजों ने कम्युनल अवॉर्ड की शुरुआत की थी. इसके जरिए दलितों के साथ कई समुदायों को अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्र का अधिकार दिया गया था. दलित वर्ग के लोगों को 2 वोट का अधिकार दिया था. अंग्रेजों ने इसकी व्यवस्था ऐसे की थी कि एक वोट से दलित अपने प्रतिनिधि को चुनते और दूसरे वोट से किसी अन्य वर्ग के प्रतिनिधि को चुनते थे.
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महात्मा गांधी इसे विभाजनकारी मानते थे. उनका मानना था कि अलग वोटिंग राइट से हिंदू समाज विभाजन की ओर बढ़ेगा. कानून के विरोध में एक के बाद एक कई पत्र महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार को लिखे. जब उनकी मांगे नहीं मानी गईं तो उन्होंने आमरण अनशन का फैसला लिया. वह पुणे की यरवदा जेल में अनशन पर बैठ गए.
पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करते रो पड़े थे अंबेडकर
अनशन की वजह से महात्मा गांधी की तबीयत खराब होने लगी. लोग अंबेडकर के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे. अंबेडकर के पुतले जलाए जाने लगे. भारी दबाव की वजह से अंबेडकर को महात्मा गांधी के साथ समझौते के लिए राजी होना पड़ा.
24 सितंबर 1932 को लगातार विरोध प्रदर्शनों के बाद भीम राव अंबेडकर ने गांधी की जिद के आगे पूना पैक्ट पर रोते हुए हस्ताक्षर किया था. दलितों को ब्रिटिश सरकार की ओर से डबल वोटिंग का अधिकार समझौते के बाद खत्म हो गया था. अंबेडकर पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करते वक्त रो पड़े थे.
भारत की सामाजिक एकता के आधार हैं भीम राव अंबेडकर
भीम राव अंबेडकर को समाजिक एकता का शिल्पकार माना जाता है. अंबेडकर के प्रयासों की वजह से दलितों को उनका अधिकार मिला और वे समाज की मुख्य धारा में शामिल हुए. उन्होंने आरक्षण के जरिए महिला और दलित अधिकारों के नई दिशा दी. उन्होंने लोकतांत्रिक भारत को आकार दिया था और संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी.
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