डीएनए हिंदी : अफसर अहमद पत्रकार हैं. बीते दिनों उन्होंने एक ज़रूरी किताब लिखी है. 'औरंगजेब बनाम राजपूत- नायक या खलनायक' नामक यह किताब इतिहास के कई विवादित पन्नों को खोलती है. वर्तमान काल खंड में जब औरंगजेब और वाया पृथ्वीराज/राणा प्रताप राजपूत इतिहास के बारे में बार-बार बातें हो रही हैं, यह किताब सभी विगत घटनाओं को नई दृष्टि से देखने की समझ देती है.
राजपूतों और मुगलों के प्रचलित इतिहास का खंडन करती किताब
इस किताब की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अब तक के सभी प्रचलित ऐतिहासिक दावों का खंडन करती है. बॉलीवुड की फिल्मों और शौर्य से ओत-प्रोत कविताओं ने अब तक राजपूतों और मुगलों को दुश्मन ही क़रार दिया है पर अफ़सर अहमद बेहद बारीकी से चीज़ों का पुनर्वालोकन करते हुए बताते हैं कि मुग़ल राजपूतों की सबसे बड़े सहयोगियों में एक थे. तीन खण्डों में लिखी किताब के आख़िरी हिस्से के तौर पर आई है.
यह किताब औरंगजेब की आम छवि के अतिरिक्त उनके व्यक्तित्व के कई अन्य पहलुओंं को छूते हुए बताती है कि उनकी अधिकांश लड़ाई धार्मिक न होकर सत्ता-प्रेरित थी. उनकी इस सत्ता प्रेरित लड़ाई में राजपूत बराबर के भागीदार रहे हैं. इस किताब की प्रामाणिकता को कई रेफेरेंस और कई पत्र बल देते हैं. कई अन्य इतिहासकारों का संदर्भ इस पुस्तक को बेहद लाज़िम और वक़्ती ज़रूरत का बनाता है.
ऐतिहासिक दास्तानगोई का सुन्दर मज़मून
'औरंगजेब बनाम राजपूत- नायक या खलनायक' किताब के अच्छे पक्षों में उसकी सहज भाषा भी शामिल है. चाहे क़िस्सा शाहजहां का हो अथवा राजपूत राजा भीम सिंह का, पाठक सहज ही अफ़सर अहमद की सरस क़िस्सागोई में डूबने उतराने लगता है. मध्यकालीन भारतीय इतिहास को धर्म के चश्में से अलग हटाकर परखती यह किताब इस समय की मांग है. इसे खूब और खूब पढ़ा जाना चाहिए कि उड़ती हुई अफवाहों के पंख भी थोड़े सिमटे नज़र आएं.
पुस्तकः औरंगजेब बनाम राजपूत- नायक या खलनायक
लेखक: अफसर अहमद
भाषाः हिंदी
प्रकाशक: इवोको पब्लिकेशन
पृष्ठ संख्याः 143
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