डीएनए हिंदीः वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि दुनिया में तापमान अगर 1.5 से 2 डिग्री से ज्यादा हो गया तो लोगों का जीना मुश्किल हो सकता है, मगर असलियत में पारा 2 डिग्री से ज्यादा बढ़ चुका है. एरिजोना यूनिवर्सिटी के एक वरिष्ठ एक्सपर्ट Guy MacPherson ने इसके सबूत किए हैं. सूरज से धरती पर प्रति वर्ग मीटर 2 वॉट एनर्जी बरस रही है.
भारत बन रहा एपिसेंटर
भारत पूरे विश्व में बढ़ते तापमान का एपिसेंटर (Epicenter) बन चुका है. देश की तीव्रता जैसी हीटवेव (Heatwave) दुनिया में कहीं नहीं देखी गई है. 10 साल पहले जहां मार्च-अप्रैल के महीने में हिमालय में बर्फ देखी जाती थी वही अब वहां बर्फ का दिख पाना काफी मुश्किल है. हिमालय का उत्तरी सर्द हवाओं को भारत की सीमा पर आने से रोकने में बड़ा योगदान रहता है. अगर हिमालय की बर्फ पिघलनी शुरू हो गई तो इसका परिणाम भारत के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है.
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एशिया में ज्वालामुखी के केंद्र भी बहुत है. टोंगा जैसी कोई ज्वालामुखी अगर फूटी तो खतरा बढ़ जाएगा क्योंकि भारत दुनिया के ट्रॉपिकल क्षेत्रों में आता है. यहां ozone की परत सबसे कमजोर है, जिससे सूर्य से निकलती अल्ट्रा वायलेट रे का बुरा असर भारत पर ज्यादा पड़ता है.
इस विषय पर एक वरिष्ठ एनवायरनमेंट एक्सपर्ट पंकज सारण का ऐसा कहना है कि अब दुनिया में क्लाइमेट चेंज को लेकर चिंता जताने में बहुत देर हो चुकी है. मगर लोग अगर चाहें तो अभी भी कुछ महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं. जिस तरीके से हमने देखा की भारत में इस साल गर्मी के कई जगह सदियों पुराने रिकॉर्ड टूट रहे है उसका मानव जाति पर काफी बुरा असर पड़ने वाला है और पड़ भी रहा है.
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भारत की अगर हम बात करें तो ये कई घाटियों की सभ्यता का देश माना जाता है, जैसा कि हम काफी समय सुनते भी आ रहे हैं. अगर यहां पर भी यमुना नदी जिसका उद्गम स्थान हिमालय है, उसके सूखने की नौबत आ रही है, तो हमें समझ जाना चाहिए कि अब ये क्लाइमेट चेंज कितने चरम पर पहुंच चुका है. हमारे देश में पर्यावरण को लेकर एक पूरा कार्यालय बनाया गया है, उसके साथ ही पर्यावरण को बचाने के लिए जय सारे नियम भी बनाए गए है. मगर जरूरत इसकी है कि अब हमारा देश इस पर्यावरण के मुद्दे तो थोड़ी और गंभीरता से लें.
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क्या-क्या हो सकते है पर्यावरण को बचाने को लेकर कदम
पर्यावरण के इस गहराते संकट से राहत पाने के लिए अभी के वक्त में सबसे जरूरी है कि लोग अपनी जमीन और जल के सारे स्त्रोत को छाया से मुहैया कराए जो की बहुत सारे पेड़ के लगाने से ही संभव है. दूसरा तरीका ये है कि लोग पहाड़ों, छतों और हर खाली और ऊंची जगहों पर सोलर रिफ्लेक्टर का इस्तेमाल करना शुरू कर दें जिससे सूरज का प्रकाश जमीन पर आने से पहले ही ये रिफ्लेक्टर आकाश की तरफ मोड़ देंगे. ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना भी एक सबसे ज़रूरी रास्ता है.
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