डीएनए हिंदी: दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) ने एक अधिसूचना जारी कर कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (National Education Policy-2020) के अनुसार अगले शैक्षणिक सत्र से एम.फिल (M.Phil) के कोर्स को बंद कर दिया जाएगा. यह नीति दिल्ली विश्वविद्यालय 2022-23 से नीति लागू करेगा. वहीं इस फैसले को लेकर शिक्षा जगत के लोगों का विरोध भड़क उठा है.
शिक्षकों ने किया विरोध
दरअसल 27 जनवरी को जारी एक अधिसूचना में विश्वविद्यालय ने कहा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में चल रहे एम.फिल कार्यक्रम 2022-23 से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुरूप बंद कर दिए जाएंगे. दिल्ली विश्वविद्यालय के इस फैसले का शिक्षकों के एक वर्ग ने विरोध किया है. उनका कहना है कि यह निर्णय उन छात्रों और महिलाओं के लिए नुकसानदेह होगा जो आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं.
इस मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने बताया है कि अब एम.फिल कार्यक्रमों में कोई नया प्रवेश नहीं होगा जबकि पहले से नामांकित छात्र पाठ्यक्रम का अध्ययन करना जारी रखेंगे. वहीं यह भी बताया गया है कि इस डिग्री को सिस्टम की किसी जैविक आवश्यकता के कारण नहीं बल्कि नई शिक्षा नीति के प्रावधानों के कारण बंद किया जा रहा है.
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छात्रों के विकल्पों में कमी
वहीं पूर्व कार्यकारी परिषद की सदस्य आभा देव हबीब ने इस मसले पर कहा, "एनईपी-2020 अमीरों और गरीबों के बीच खाई को चौड़ा करने वाली है. अब छात्र या तो P.hd करने के लिए प्रतिबद्ध हैं या वो बिना शोध की डिग्री के बने रहें. एनईपी जिसका विकल्पों के तौर पर विज्ञापन किया जा रहा है, असल में यह छात्रों के विकल्पों को छीन रही है.
जेएनयू (JNU) की प्रोफेसर आयशा किदवई ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि एम.फिल को खत्म करने का फैसला भी एक लैंगिक आयाम को दर्शाता है क्योंकि 2012-2013 के बाद से एम.फिल के नामांकन में लगातार महिलाओं की संख्या बढ़ रही है जो वर्तमान में लगभग 60 प्रतिशत है. इस डिग्री को तत्काल प्रभाव से खत्म करने के लिए इस क्षेत्र के लोगों की राय लेना अतिआवश्यक था.”
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जबरन थोपा गया निर्णय
वहीं इस मुद्दे को लेकर प्रोफेसर राजेश झा ने विशेष बातचीत में कहा, “डीयू के सभी डिपार्टमेंट्स में M.Phil के कोर्स नहीं चल रहे थे और डिपार्टमेंट्स अपनी रिसर्च की जरूरतों के अनुसार कोर्स चला रहे थे. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को भंग किया जा रहा है." उन्होंने कहा, “DU की विविधता के चलते इस फैसले पर जाने से पहले डिपार्टमेंटल काउंसिल से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए था. नई शिक्षा नीति के तहत एक फैसला लिया गया जिसका पालन बाध्य कर दिया गया.”
इस फ़ैसले के दुष्परिणाम को लेकर राजेश झा ने कहा, “इस फैसले से न केवल शिक्षा गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ेगा बल्कि शिक्षकों पर वर्क लोड भी बढ़ेगा. इतना ही नहीं शिक्षकों की नौकरी पर भी असर पड़ेगा जिसके चलते इस फैसले का विरोध किया जा रहा है."