डीएनए हिंदी : रूस के द्वारा यूक्रेन पर हमला करने से न केवल यूक्रेन के नागरिकों के समक्ष संकट पैदा हो गया है. भारत के समक्ष भी वहां रह रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा की चुनौती खड़ी हो गई. भारत के लगभग 18,000 विद्यार्थी यूक्रेन(Ukraine) में पढ़ाई कर रहे थे. वे सब अमूमन यूक्रेन में मेडिकल के छात्र थे. यहां ध्यातव्य है कि भारत वह देश है जहां हर साल तकरीबन 8,00,000 लोग विदेश से इलाज के लिए पहुंचते हैं, साथ ही यहां की मेडिकल पढ़ाई को बेहद आला दर्जे का भी माना जाता है. फिर क्यों इतनी बड़ी संख्या में भारत के लोग अन्य देशों में MBBS की पढ़ाई करने जाते हैं?
हज़ारों छात्र करते हैं हर साल विदेश का रुख
आंकड़ों के लिहाज़ से देखें तो हर साल हज़ारों की संख्या में भारतीय छात्र इस पढ़ाई के लिए विदेश जाते हैं. मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया के अनुसार मार्च 2015 से मार्च 31, 2016 तक इसने 3,398 छात्रों को विदेश में पढ़ाई करने के लिए योग्यता प्रमाणपत्र दिया. यह संख्या 2016 -17 में दोगुने से भी अधिक हो गई. उस वक़्त यह संख्या बढ़कर 8,737 हो गई. 2017 -18 में फिर इस संख्या में उछाल आया और 14,118 भारतीय छात्र मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया के योग्यता प्रमाणपत्र के साथ विदेश मेडिकल पढ़ने गए. 2018-19 में यह संख्या 17, 504 रही. अब सवाल उठता है, इतनी बड़ी संख्या में विदेश से मेडिकल पढ़कर लौट रहे भारतीय छात्र आगे क्या करते हैं? क्या उनके लिए यहां प्रैक्टिस शुरू कर लेना या नौकरी पाना आसान हो जाता है?
"विदेश में पढ़ने के लिए भी छात्रों को नीट क्वालीफाई करना पड़ता है”
इस बात पर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी पहले एक बयान दे चुके हैं कि बाहर मेडिकल पढ़ने जाने वाले छात्रों में 90% भारत की मेडिकल क्वालीफाइंग परीक्षा NEET नहीं पास कर पाते हैं. केंद्रीय मंत्री श्री जोशी के इस बयान का खंडन बिहार के पूर्णिया ज़िले के डॉक्टर बिरेन हरि सरस्वती करते हैं. डॉक्टर सरस्वती का बेटा फिलीपीन्स(Philippines) में मेडिकल की पढ़ाई पूरी करके इंटर्नशिप कर रहा है.
डॉक्टर सरस्वती बताते हैं कि "विदेश में पढ़ने के लिए भी छात्रों को नीट क्वालीफाई करना पड़ता है, अन्यथा वे लौटकर होने वाले मेन क्वालीफाइंग परीक्षा में बैठ नहीं सकते हैं. यह केवल अवधारणा है कि ये स्टूडेंट्स नीट नहीं पास कर पाते हैं. "
यह पूछने पर कि क्या मुख्य वजह है इन छात्रों के मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेशों का रूख करने की, डॉक्टर बीरेन सरस्वती खुलकर कहते हैं कि "पैसा बहुत बड़ा फैक्टर है. इन देशों में बहुत पैसे वाले लोगों के बच्चे नहीं जाते हैं. उनके लिए यहीं देश में सीट उपलब्ध हैं. इन बाहरी देशों मसलन रूस और आसपास के देश, यूक्रेन, नेपाल, बांग्लादेश में मेडिकल की पढ़ाई की फीस कई बार भारत में होने वाले खर्च का चौथाई हिस्सा होती है. यह भारतीय अभिभावकों के लिए तनिक आसान होता है. "
फ़ी की बात पर वर्त्तमान में नॉर्वे(Norway) में प्रैक्टिस कर रहे भारतीय डॉक्टर प्रवीण झा भी डॉक्टर सरस्वती की बात से सहमत नज़र आते हैं.
(डॉक्टर बिरेन हरि सरस्वती)
2021 में 16 लाख से अधिक छात्रों ने दी थी 83,075 MBBS सीट के लिए परीक्षा
गौरतलब है कि भारत में कुल 532 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं जहां 76,928 MBBS सीट्स हैं. 2021 में भारत में कुल 83,075 MBBS सीट, 26,949 BDS सीट, 52,720 AYUSH सीट, 603 BVSc और AH सीट थे, जबकि इस साल NEET क्वालीफाइंग परीक्षा में बैठने वालों की संख्या 16 लाख से अधिक थी.
बाहर से मेडिकल पढ़कर आने वालों के लिए कितना आसान है देश में डॉक्टरी करना
विदेश से मेडिकल पढ़कर लौटने वाले छात्रों को ख़ास क्वालीफाइंग परीक्षा देनी पड़ती है. जिसमें अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड से पढ़कर लौटे छात्रों को छूट हासिल है.
इन कॉलेज से पढ़कर आए छात्रों के प्रदर्शन के बाबत पूछने पर डॉक्टर झा का कहना है कि "यूक्रेन, चीन और फ़िलीपींस में फीस कम है. एडमिशन आसान है. पास करना आसान है. इस कारण यूरोप के अधिकांश देश यूक्रेन के कोर्स को पूर्ण मान्यता नहीं देते. भारत लौटना विकल्प है, जहां एक साधारण एमसीआई परीक्षा होती है, लेकिन वह परीक्षा भी अधिकांश छात्र कोचिंग के बाद पास नहीं कर पाते. मैंने अपने अनुभव में इन छात्रों को अधिकतर आरएमओ पोस्ट पर देखा है, जो निजी अस्पतालों में कैजुअलटी में सबसे कम तनख़्वाह पर बैठते हैं. अधिकांश कभी विशेषज्ञ नहीं बन पाते, न इच्छा रखते हैं. कई छात्र जिनके पिता छोटे शहरों या कस्बों में चिकित्सक हैं, वे उनका काम संभाल लेते हैं, जबकि कई डाक्टरी से इतर काम करने लग जाते हैं. "
(डॉक्टर प्रवीण झा )
डॉक्टर झा इसमें जोड़ते हुए कहते हैं, "अगर मेधावी छात्र इन्हीं कोर्स में जाएं और वहां अंतरराष्ट्रीय स्तर की किताबों से योजनाबद्ध पढ़ें, तो उनके पास कई विकल्प खुल जाते हैं. कुछ लोग विशेषज्ञ बनने में समर्थ होते हैं."
क्वालीफाइंग एग्जाम के बाबत डॉक्टर सरस्वती का कहना है कि भारत की पढ़ाई का पैटर्न इन देशों से काफ़ी अलग है. उसमें भी बड़ी समस्या कई देशों मसलन रूस(Russia), बेलारूस, अर्मेनिया और चीन(China) जैसी जगहों पर कोर्सेज का अंग्रेजी की जगह उनकी स्थानीय भाषा में होना भी है. हालांकि फिलीपींस और इंडोनेशिया में अंग्रेजी में पढ़ाई होने की वजह से यहां पढ़ रहे छात्रों को तनिक आसानी होती है.