DNA Exclusive : बुकर पुरस्कार पाने वाली पहली हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री ने बताया इसे " गौरव और विनम्रता  का पल"

Written By अणु शक्ति सिंह | Updated: May 27, 2022, 08:48 PM IST

DNA Exclusive :बुकर में टॉम्ब ऑफ़ सैंड के होने पर गीतांजलि श्री ने कहा, "यह बड़ी बात है कि सुदूर बैठे अनजान पाठकों को यह कृति इतनी पसंद आई."

डीएनए हिंदी : भारतीय साहित्य के इतिहास में 26 मई की देर रात एक बेहद सुखद घटना घटी. यह रात विश्व प्रसिद्ध मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार 2022 की घोषणा की रात थी. दुनिया भर की भिन्न भाषाओं से पांच सर्वश्रेष्ठ कृतियों को इस लिस्ट में शामिल किया गया था. उनमें से हिंदी की किताब 'रेत समाधि' के अंग्रेजी अनुवाद 'टॉम्ब ऑफ़ सैंड' को इस  साल विजेता घोषित किया गया. यह किताब गीतांजलि श्री ने लिखी है और इसका अंग्रेजी अनुवाद 'डेज़ी रॉकवेल' ने किया है.  64 वर्षीय गीतांजलि श्री हिंदी की प्रतिष्ठित लेखिका हैं. उनके लेखन करियर की शुरुआत 1987 में हंस पत्रिका में छपी 'बेलपत्र' कहानी से हुई थी. उनका पहला बहु-प्रशंसित काम 'माई' उपन्यास था. इसके अनुवाद की भी बेहद तारीफ़ हुई थी. 

डीएनए हिंदी के लिए लेखिका की एक्सक्लूसिव टिप्पणी 
 विगत दिनों जब  टॉम्ब ऑफ सैंड को  बुकर पुरस्कार (International Booker Prize) की शॉर्ट लिस्ट में शामिल किया गया था तब डीएनए हिंदी ने इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए उनसे प्रश्न किया... 
"यह पहला मौक़ा है जब इंटरनेशनल बुकर पुरस्कारों के सत्रह साल के इतिहास में फ़ाइनल लिस्ट में कोई भी हिंदी किताब शामिल हो रही है.  
यह खुशी द्विगुणित हो रही है कि यह सौभाग्य एक स्त्री उपन्यासकार की किताब को मिला है. आपसे अनुरोध है कि अपनी इस सफलता को संदर्भ में रखते हुए एक टिप्प्णी दें." 

लेखिका ने डीएनए हिंदी के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि, 
"यह बड़ी मान्यता है कि सुदूर बैठे अनजान पाठकों को यह कृति इतनी रुचि, विश्वास जगाता है कि कृति में उसके अपने विशिष्ट सांस्कृतिक-भौगोलिक  संदर्भ को लांघने और सार्वभौमिक और मानवीय को स्पर्श करने की क्षमता है. लेखक के लिए यह बेहद संतोष की बात है और अनुवाद ने अपना परचम लहराया तो ज़ाहिर है वह लाजवाब होगा, मूल कृति का लंगड़ाता प्रतिबिम्ब नहीं. डेज़ी रॉकवेल और मेरे लिए यह गौरव और विनम्रता  का पल है."

गीतांजलि श्री के उपन्यास 'Tomb of Sand' को मिला अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार


गीतांजलि श्री का बुकर भाषण 
बुकर पुरस्कार की घोषणा के बाद हुए भाषण में गीतांजलि श्री ने कहा कि 'मैंने कभी सोचा नहीं था कि बुकर मिलेगा. मुझे कभी नहीं लगता था कि मैं यह कर सकती हूं. कितनी बड़ी पहचान है. मैं आश्चर्यचकित हूं. पुरस्कार पाकर मुझे सम्मान की अनुभूति हो रही है.'
उन्होंने पुरस्कार जीतने के बाद कहा, 'मेरी जीत के पीछे समृद्ध हिंदी और दूसरी एशियन भाषाओं की समृद्ध परंपरा है. इन भाषाओं के लेखकों को जानकर विश्व साहित्य और समृद्ध होगा.'

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