Pakistan को 'सिख रहत मर्यादा' के अनुसार आयोजनों के लिए चाहिए एक मार्गदर्शक

| Updated: Mar 20, 2022, 08:29 PM IST

पाकिस्तान ने एसपीजीसी की ओर से आपत्ति जताने के बाद जश्न-ए-बहारा कार्यक्रम रद्द कर दिया है. पढ़ें इस पर रवींद्र सिंह रॉबिन का खास लेख.

सिख धर्मस्थलों पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आचरण का मुद्दा हमेशा से ही सिख समुदाय के बीच भारत और पाकिस्तान ही नहीं दुनिया भर में बेहद संवेदनशील रहा है. पाकिस्तानी सरकार की ओर से 23 मार्च से 27 मार्च तक आयोजित होने वाले जश्न ए बहारा कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की ओर से इसे लेकर कुछ आपत्तियां जताई गई थीं. साथ ही, इस पर भी जोर दिया गया है कि सिख समुदाय के जानकार लोग सरकारी एजेंसियों की ओर से होने वाले कार्यक्रम की निगरानी करें ताकि भविष्य में इस तरह की 'मर्यादा' उल्लंघन की घटनाएं न हों.

मर्यादा क्या है?
सभी धर्मों के कुछ नियम और कायदे होते हैं जो धर्म का पालन करने वाले अनुयायियों पर लागू होते हैं. सिख धर्म में भी (सिख रहत मर्यादा) के तहत कुछ नियम और पाबंदियां बताई गई हैं जिनका रोजमर्रा की जिंदगी में पालन करना जरूरी है.  साल 1945 में एसपीजीसी ने सिख रहत मर्यादा के तहत अंतिम और मान्य नियम बनाए थे. हालांकि, बाद में कुछ छोटे-मोटे बदलाव भी किए गए हैं. अकाल तख्त के द्वारा अधिकृत किया गया रहत मर्यादा ही अंतिम और मान्य है. सिख रहत मर्यादा में सिखों के धर्म, गुरुद्वारा प्रबंधन और निजी जीवन से जुड़ी पाबंदियों और मान्यताओं की व्याख्या की गई है. इनमें सिख धर्म के त्योहार भी शामिल हैं. 

'जश्न-ए-बहारा' क्या था?
पाकिस्तान ने सूफी मेले के आयोजन का प्रस्ताव 'बसंत' के मौके पर रखा था. यह सिखों के बसंत उत्सव से जुड़ा है जिसका आयोजन दुनिया भर के गुरुद्वारों में पूरी धार्मिक श्रद्धा के साथ होता है. जश्न-ए-बहारा कार्यक्रम भी करतारपु साहिब के आस-पास की जगहों पर होने वाला था जिसमें पाकिस्तान डे सेलिब्रेशन, सूफी संगीत से सजी शाम, कव्वाली नाइट, कल्चरल डे और सूफी सिंगर आरिफ लोहार और अन्य गायकों के कार्यक्रम होने वाले थे. 

करतारपुर कॉरिडोर क्या है?
भारत और पाकिस्तान ने 9 नवंबर, 2019 को करतारपुर कॉरिडोर खोला था. इस कॉरिडोर को खोलने के पीछे उद्देश्य था कि पाकिस्तान में गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब, करतारपुर साहिब के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को भारत के गुरदासपुर में डेरा बाबा नानक और पकिस्तान के नरावल जिले में एक ही चेकपोस्ट से गुजरना पड़े. इससे भारत से जाने वाले तीर्थयात्री एक ही दिन में वापस लौट सकते हैं. सिख धर्म के संस्थापक बाबा गुरु नानक ने अपने जीवन के अंतिम लगभग 17 वर्ष पाकिस्तान के नरोवाल जिले के करतारपुर में बिताए थे और उनकी याद में एक गुरुद्वारा बनाया गया था. सिखों के बीच इस गुरुद्वारे की काफी मान्यता है और पाकिस्तान ने इस पर काफी पैसे खर्च किए हैं. 

आने वाले लोगों और तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ाने के लिए गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के परिसर में गुरुपुरब सहित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन पाकिस्तान की ओर से कराए जा रहे हैं. इससे पहले, गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के प्रबंधन ने लोगों के बीच संवाद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बाइक और मोटरसाइकिल रैलियों का आयोजन किया था. साथ ही, दोनों देशों के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को लुभाने के लिए इंडस पीस पार्क की स्थापना का प्रस्ताव भी दिया है. इसके अलावा, सिखों के पहले गुरु गुरुनानक देवजी की जिन जगहों पर खेती करने और फसल उगाने की मान्यताएं हैं, वहां पौधारोपण और फसल उगाने जैसे पहल भी किए गए हैं. कुछ आलोचक इसे पाकिस्तान सरकार द्वारा अपनी आय बढ़ाने के लिए करतारपुर कॉरिडोर के व्यावसायीकरण के प्रयासों के रूप में देखते हैं. फिलहाल तीर्थस्थल पर रोज 200 से 300 श्रद्धालु ही आ रहे हैं जबकि इसकी क्षमता 5000 यात्रियों तक की है.

SGPC को क्या आपत्ति थी?
'मर्यादा' या धार्मिक आचार संहिता दुनिया भर में स्थित सिख तीर्थस्थलों पर संचालन की निगरानी करती है. यह धार्मिक सिद्धांतों का एक समूह है जो पुजारियों, भक्तों और आने वालों के ड्रेस कोड, पूजा के क्रम, मंदिरों के परिसर के भीतर भक्तों द्वारा पालन किए जाने वाले अनुशासन, 'लंगर' तैयार करने के तरीके के नियम तय करता है. इसके अलावा भी बहुत कुछ है जो रोजमर्रा के आधार पर सिख धर्मस्थलों के भीतर होता है. एसजीपीसी ने अपनी आपत्ति जताते हुए पीएमयू के सीईओ मुहम्मद लतीफ को पत्र लिखकर कहा कि पाकिस्तान सरकार द्वारा 23 से 27 मार्च तक आयोजित किया जा रहा जश्न-ए-बहारन उत्सव सिख धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकता है. यह आयोजन सिख रहत मर्यादा का उल्लंघन करता है. एसजीपीसी ने कार्यक्रम को रद्द करने और यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि श्री करतारपुर सहगिब कॉरिडोर में ऐसा कोई सांस्कृतिक उत्सव आयोजित नहीं किया जाए जो सिख सिद्धांतों के खिलाफ हो.

क्या थी पाकिस्तान की प्रतिक्रिया?
मोहम्मद लतीफ, सीईओ, पीएमयू, करतारपुर कॉरिडोर, ने एसजीपीसी को अपने जवाब में कहा, पीएमयू गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब करतारपुर कॉरिडोर के निर्माण और अस्तित्व का मुख्य उद्देश्य हर कीमत पर सिख रहत मर्यादा को बनाए रखना है. हम सम्मानित एसजीपीसी द्वारा उठाई गई टिप्पणियों/चिंताओं का सम्मान करते हैं और दुनिया भर के सिख समुदाय को आश्वस्त करते हैं कि गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब करतारपुर में कभी भी गुरुमत के खिलाफ कुछ भी आयोजित नहीं किया जाएगा. हम 23 से 27 मार्च तक होने वाले जश्न ए बहारन को तत्काल रद्द कर रहे हैं. हम केवल गुरुद्वारा चरहटा साहिब श्री अमृतसर में मनाए जाने वाले धार्मिक बसंत पंचमी के एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन करेंगे. पीएमयू गुरुद्वारा श्री दरबार साहिब करतारपुर कॉरिडोर सिख समुदाय को हमारे उद्देश्य की ईमानदारी और दुनिया भर से यात्रियों के लिए सुविधाओं को बनाए रखने और सुधारने के लिए हर मुमकिन प्रयासों का आश्वासन देता है.

ऐसे विवादों से बचने के लिए क्या होना चाहिए था?
पाकिस्तान में करीब 200 ऐतिहासिक सिख धर्मस्थल हैं. विभाजन के बाद सिखों की बड़ी आबादी भारत चली आई और ऐतिहासिक विरासत पीछे छूट गए थे. इन ऐतिहासिक विरासतों को संरक्षित करने के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाला नेहरू पाकिस्तान के उनके समकक्ष लियाकत अली खान ने समझौते के कागजात पर दस्तखत किए थे. 

हर साल पाकिस्तान 5000 भारतीयों को सिख और हिंदू तीर्थ स्थानों के दर्शन के लिए वीजा जारी करता है. हालांकि, पाकिस्तान की ओर से कुछ ही सिख तीर्थ स्थलों के दर्शन के लिए वीजा दिया जाता है. इसकी वजह है कि ज्यादातर सिख तीर्थस्थल पाकिस्तान में किन्हीं वजहों से खुले नहीं रखे गए हैं. पाकिस्तान में सिख आबादी भी बहुत कम है. पाकिस्तान में रह रहे सिखों की आबादी कम होने की वजह से उन्हें इनके निगरानी और नियंत्रण की भी जानकारी नहीं रहती है. इन धार्मिक स्थलों के रख-रखाव का काम भी सरकार के जिम्मे ही है.

SGPC को 1998 तक पाकिस्तान में सिख धर्मस्थलों का प्रबंधन करने की अनुमति थी. अब  पाकिस्तान में सिख गुरुद्वारों की देखरेख पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (PSGPC) करता है. यह संस्था1999 में अस्तित्व में आई थी. मौजूदा गुरुद्वारों को नया रूप  दिया गया और इसके तुरंत बाद कई और गुरुद्वारे खोले भी गए हैं. हाल की रिपोर्टों के अनुसार, कई सिख गुरुद्वारों की संपत्तियों पर या तो अतिक्रमण कर लिया गया था या वे जीर्ण-शीर्ण स्थिति में थे. पिछले साल, एक पाकिस्तानी मॉडल की वजह से बड़ा विवाद हुआ था. मॉडल ने गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के परिसर के भीतर एक भारतीय सूट पहने हुए एक इंस्टाग्राम शूट किया था जिसमें उसका सिर खुला था.

यहां इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जहां तक ​​उत्सव या सेस्कृति की बात है, अमृतसर में गुरुद्वारा छेहराता साहिब में भी 'बसंत पंचमी' को एक वार्षिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. यह उत्सव आध्यात्मिक और सांसारिक आनंद के बीच संतुलन के प्रतीक बसंत ऋतु के उल्लास में मनाया जाता है. होला मोहल्ला एक और त्योहार है जो आनंदपुर साहिब में संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक हिस्सा है.

इसमें कोई शक नहीं है कि एसजीपीसी एक परिपक्व और कुशल संचालन में दक्ष संस्था है. सिख रहत मर्यादा से जुड़े नियमों और मामलों के संचालन का इसके पास अनुभव है और यह दुनिया भर के सिख संगठनों का मार्गदर्शन भी करती है. अब पाकिस्तान के पास अपनी संस्था है और जिनका कहना है कि वह अकाल तख्त के निर्देशों के तहत काम कर रहे हैं. उन्हें भी यह स्वीकार करना होगा कि उन्हें एसजीपीसी जैसी अनुभवी संस्था से अभी बहुत कुछ सीखना है. खास तौर पर सिख रहत मर्यादा के संबंध में. 

SGPC को भी इस मामले में यह अहसास होना चाहिए कि उन्हें भी किन मुद्दों पर हस्तक्षेप करने की जरूरत है. धार्मिक विश्वास से संबंधित मामलों में पाकिस्तान के सिखों का मार्गदर्शन करने के लिए उन्हें एक बड़े भाई की भूमिका निभानी होगी. इनकी सलाह से PSGPC सिख धर्म के वचनों और आचारों के पालन को सुनिश्चित करने की दिशा में लंबा रास्ता तय कर सकेंगे.

(रवींद्र सिंह रॉबिन वरिष्ठ पत्रकार हैं और 20 साल से इस पेशे में हैं. सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखते हैं. पत्रकारिता से इतर यात्राएं करना खूब पसंद करते हैं.)