क्या है कालका-शिमला रेलवे की कहानी, बाबा भलकू का क्या रहा योगदान?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Nov 24, 2021, 07:27 PM IST

कालका-शिमला रेलवे ट्रैक (फोटो क्रेडिट-himachalservices.nic.in)

कालका-शिमला रेलवे ट्रैक प्रोजेक्ट साल 1898 में लॉन्च हुआ था. ट्रेन सर्विस की शुरुआत 9 नवंबर 1903 से हो गई थी.

डीएनए हिंदी: हिमाचल की खूबसूरत वादियों की बात हो और कालका शिमला रेलवे लाइन की बात न हो ऐसा हो नहीं सकता है. इस रेलवे ट्रैक का जलवा फिल्मी पर्दे से लेकर इतिहास की किताबों तक छाया हुआ है. आज भी इस लोकेशन का क्रेज पर्यटकों में बना हुआ है. लोग बड़ी संख्या में यहां घूमने आते हैं. यह जितनी खूबसूरत जगह है उतनी ही दिलचस्प इसके बनने की कहानी भी है.

कालका शिमला रेलवे के निर्माण की शुरुआत ब्रिटिश काल में हुई थी. 96 किलोमीटर तक की दूरी तय करने वाले इस रेलवे ट्रैक पर 800 ब्रिज से ट्रेनें गुजरती हैं. भारत की पहाड़ियों पर बने सबसे खूबसूरत रेलवे ट्रैक्स में से यह एक है.  इसके बनने की शुरुआत 19वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी. इस रेलवे लाइन को टॉय ट्रेन लाइन भी कहा जाता है. यहां पर चलने वाली ट्रेन एक घंटे में 22 किलोमीटर का सफर तय करती है. यह रेलवे ट्रैक हिमाचल की खूबसूरत वादियों से गुजरती है. देवदार के पेड़, छोटी-बड़ी पहाड़ियां, हिमाचल की हरियाली और छोटे-छोटे आकर्षक ब्रिज, यह रेलवे ट्रैक जन्नत की सैर कराता है. 

कब हुई थी प्रोजेक्ट की शुरुआत?

कालका-शिमला रेलवे ट्रैक प्रोजेक्ट साल 1898 में लॉन्च हुआ था. ट्रेन सर्विस की शुरुआत 9 नवंबर 1903 से हो गई थी. धर्मपुर में इस रेलवे ट्रैक का सबसे बड़ा पुल है. इस प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर एचएस हरिंगटन थे. इस ट्रैक पर 103 टनल है जिनमें से 1 अब फंक्शन में नहीं है. हर टनल से कुछ न कुछ किस्से जुड़े हैं. इसका सबसे बड़ा टनल बड़ोग है. बड़ोग का नाम चीफ इंजीनियर बड़ोग के नाम पर पड़ा है.

इस अनपढ़ 'इंजीनियर' की वजह से बन सका था शिमला-कालका ट्रैक

कालका-शिमला रेलवे ट्रैक बिछाते वक्त पहाड़ियों के दो सिरों को सुरंगों से जोड़ने में मुश्किलें पेश आ रही थीं. कई बार की कोशिशों के बाद भी उन्हें जोड़ा नहीं जा सका था. बड़ोग दो छोरों को जोड़ने में फेल हो गए जिसके बाद ब्रिटिश हूकूमत ने उन पर एक रुपये का फाइन लगा दिया. फाइन लगाने से आहत होकर बड़ोग ने खुदकुशी कर ली. जहां उन्होंने खुदकुशी की थी उस सुरंग को टनल-33 के नाम से जाना जाता है. यह टनल करीब 1143.61 मीटर लंबी है. 

यह एक लंबे अरसे तक भारतीय रेलवे की दूसरी सबसे लंबी सुरंग बनी रही. यह एक सीधी सुरंग है जो पत्थरों को चीरकर बनाई गई है. इस रेलवे ट्रैक को पूरा कराने में एक स्थानीय ग्रामीण बाबा भलकू का बड़ा योगदान था. वे अनपढ़ थे लेकिन बिना किसी आधुनिक उपकरणों के महज एक छड़ी से एक अंग्रेज इंजीनियर को सुरंग मिलाने की राह दिखा दी थी. अंग्रेजों ने उन्हें पुरस्कार भी दिए थे. बाबा भलूक के नाम पर एक संग्रहालय भी बनाया गया है. 

2008 में यूनेस्को ने दिया था हेरिटेज साइट का दर्जा 

कालका शिमला रेलवे लाइन को यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल आर्गेनाईजेशन (UNESCO) ने साल 2008 में वर्ल्ड हिस्टोरिक साइट की सूची में शामिल किया था. हेरिटेज म्युजियम पूरे क्षेत्र के इतिहास की झलक दिखाता है. यह इलाका एक पॉपुलर टूरिस्ट डेस्टिनेशन भी है. यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. 

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