डीएनए हिंदीः उत्तर प्रदेश में दो चरणों के साथ ही उत्तराखंड और गोवा में विधानसभा चुनाव हो चुका है. प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला ईवीएम में कैद है. अब सभी की नजरें 10 मार्च को आने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर हैं. इससे पहले ईवीएम को कड़ी सुरक्षा में रखा गया है. वोटिंग खत्म होने के बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है. इसके बावजूद विपक्ष इनकी गोपनीयता भंग होने का हवाला देता रहता है. क्या आपको पता है कि वोटिंग के बाद ईवीएम को कहां और कितनी सुरक्षा में रखा जाता है? चलिए आज हम आपको इस आर्टिकल में यही सब जानकारी देंगे.
वोटिंग के बाद क्या होता है?
वोटिंग खत्म होने के तुरंत बाद पोलिंग बूथ (Pooling Booth) से ईवीएम स्ट्रांग रूम (Strong Room) नहीं भेजी जातीं. प्रीसाइडिंग ऑफिसर ईवीएम में वोटों के रिकॉर्ड का परीक्षण करता है. इसकी एक सत्यापित कॉपी सभी प्रत्याशियों के पोलिंग एजेंट को दी जाती है. इसके बाद ईवीएम को सील कर दिया जाता है. प्रत्याशी या उनके पोलिंग एजेंट ईवीएम के सील होने के बाद अपने हस्ताक्षर करते हैं. प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि मतदान केंद्र से स्ट्रांग रूम ईवीएम के साथ जाते हैं. यहां इस बाद का भी ध्यान रखा जाता है कि रिजर्व ईवीएम भी इस्तेमाल की गई ईवीएम के साथ ही स्ट्रांग रूम में आनी चाहिए. जब सारी ईवीएम आ जाती हैं. तब स्ट्रांग रूम सील कर दिया जाता है. प्रत्याशियों के प्रतिनिधि को अपनी तरफ़ से भी सील लगाने की अनुमति होती है.
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कितना मजबूत होता है स्ट्रॉन्ग रूम ?
मतदान के बाद ईवीएम को रखने के लिए स्ट्रॉन्ग रूम बनाया जाता है. अमूमन अधिकांश जिलों में इसे मंडी समिति में बनाया जाता है. इसका एक उद्देश्य यह होता है कि यहां जगह काफी होती है और नतीजों के दिन भी ईवीएम खोलने और मतगणना की तैयारी के लिए पर्याप्त स्थान होता है. स्ट्रॉन्ग रूम का मतलब है कि वैसा कमरा जहां की सुरक्षा अचूक है और अनाधिकारिक लोगों की पहुंच असंभव होती है. भारतीय चुनाव में स्ट्रॉन्ग रूम का मतलब निष्पक्ष और पारदर्शी मतदान और वोटों की गिनती से है. मतदान के बाद ईवीएम स्ट्रॉन्ग रूम में रखी जाती है और इनकी सुरक्षा के लिए चुनाव आयोग पूरी तरह से चाक-चौबंद रहता है.
तीन लेयर की होती है सुरक्षा
स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा तीन लेयर में की जाती है. सुरक्षा में पहली लेयर में पैरामिलिट्री फोर्स, दूसरी लेयर में पीएसी के जवान और तीसरी लेयर में राज्य पुलिस के जवान तैनात रहते हैं. EVM की सुरक्षा के लिए सभी जवान 24 घंटे तैनात रहते हैं. जिनकी ड्यूटी समय अनुसार तय की जाती है. सुरक्षा का जिम्मा एसपी स्तर के अधिकारी का होता है.
क्या स्ट्रॉन्ग रूम में हो सकती है छेड़छाड़?
पोलिंग बूथ से स्ट्रांग रूम तक EVM कड़ी निगरानी में लाया जाता है. इस दौरान EVM में किसी तरीके की छेड़छाड़ संभव नहीं है. स्ट्रांग रूम तक ईवीएम को लाने के बाद ऑब्जर्वर, उम्मीदवारों और राजनीतिक प्रतिनिधियों के साथ रिटर्निंग ऑफिसर और सहायक रिटर्निंग ऑफिसर की मौजूदगी में सभी EVM मशीनों को सील किया जाता है. जिस कमरे में सभी EVM रखी जाती हैं. वहां की सुरक्षा पर खास ध्यान दिया जाता है. कमरे के दरवाजे पर डबल लॉक लगाने के बाद एक 6 इंच की दीवार भी बनाई जाती है. मुख्य गेट के अलावा सारे गेट लॉक कर दिए जाते हैं या फिर ऐसे कमरे का चुनाव किया जाता है जिसमें एक ही दरवाजा हो.
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24 घंटे सीसीटीवी से होती है निगरानी
स्ट्रॉन्ग रूम में ईवीएम को सील करने के बाद एंट्री पाइंट पर सीसीटीवी कैमरे से निगरानी की जाती है. जिससे हर आने जाने वाले की तस्वीर इस पर रिकॉर्ड होती रहती है. अगर कोई संबंधित अधिकारी स्ट्रांग रूम में जाना चाहे तो उसे सुरक्षा बलों को दी गई लॉग बुक पर आने का टाइम, अवधि और नाम की एंट्री करनी होती है. प्रत्याशियों को भी स्ट्रॉन्ग रूम की देखरेख की अनुमति होती है. एक बार स्ट्रॉन्ग रूम सील होने के बाद काउंटिंग के दिन सुबह ही खोला जाता है. अगर विशेष परिस्थिति में स्ट्रांग रूम खोला जा रहा है तो यह प्रत्याशियों की मौजूदगी में ही संभव होगा.
कैसे होती है वोटों की गिनती?
मतगणना के दिन मतगणना केंद्र पर तैनात पर्यवेक्षक के टेबल पर एक-एक EVM मशीन भेजी जाती है. इस तरह हर एक विधान सभा क्षेत्र के लिए एक साथ 14 ईवीएम से वोटों की गिनती एक साथ होती है. अमूमन हर दौर में 30 से 45 मिनट का समय लगता है. मतगणना टेबल के चारों ओर पार्टियों या उम्मीदवारों के एजेंट रहते हैं, जो मतगणना पर पैनी नजर रखते हैं. अगर काउंटिंग हॉल और स्ट्रांग रूम के बीच ज़्यादा दूरी है तो दोनों के बीच बैरकेडिंग होनी है. इसी के बीच से ही ईवीएम को काउंटिंग हॉल तक ले जाया जाता है. स्ट्रॉन्ग रूम से काउंटिंग हॉल तक ईवीएम ले जाने को रिकॉर्ड किया जाता है ताकि कोई गड़बड़ नहीं हो सके.
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