कैसे Congress और BJP दोनों की राजनीतिक मुसीबत बन गईं हैं ममता बनर्जी

कृष्णा बाजपेई | Updated:Dec 25, 2021, 03:52 PM IST

ममता बनर्जी तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए राजनीतिक चुनौती बन गई हैं.

डीएनए हिंदी: साल 2022 में होने वाले UP Elections 2022 को भाजपा के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि लोगों का मानना है कि दिल्ली की सत्ता का पावर सेंटर हासिल करना है तो उत्तर प्रदेश पर राजनीतिक पकड़ मजबूत रखनी होगी. इसके विपरीत साल 2021 में देश के अहम राज्य पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हवा ने एक नए विपक्षी नेतृ्त्व का अध्याय लिखा है जिसके केन्द्र में बंगाल की तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी हैं. ममता ने अपने गढ़ बंगाल में भाजपा के सियासी विजय रथ को रोककर एक ऐसा चक्रव्यूह रचा है जिसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौतियां हैं.

भाजपा की रणनीति फेल

ममता ने साल 2021 में भाजपा को ऐसा झटका दिया है जिसकी याद पार्टी को अगले विधानसभा चुनाव तक तो रहेगी. TMC के नेताओं को पार्टी में शामिल करने के साथ ही भाजपा ने ममता का मुकाबला करने के लिए राज्य ईकाई के अलावा पूरा केन्द्रीय नेतृ्त्व तक झोंक दिया था लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा. भले ही 2019 में पार्टी को 17 लोकसभा सीटों पर जीत मिली हो किन्तु पार्टी का विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन उनके अभियान के विपरीत था. नतीजा ये कि ममता फिर ऐतिहासिक बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बन गईं. वहीं भाजपा के चुनावी विजय रथ के लिए ये हार किसी झटके का प्रतीक थी. 

विस्तार में जुटीं ममता 

बंगाल में जीत के बाद जब ममता को एक केन्द्रीय नेता के रूप प्रोजेक्ट किया जाने लगा तो ममता ने भी अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को उड़ान देना शुरु कर दिया. त्रिपुरा से लेकर पंजाब, हरियाणा, असम, गोवा में अपनी राजनीतिक जड़ें मजबूत करने की कोशिश में ममता ने राज्यों में चुनाव लड़ने के साथ ही अपने संगठन को मजबूत कर दिया हैं. बंगाल में भाजपा को हराने के बाद उनकी छवि एक ऐसी नेत्री की बन गई है जो कि पीएम मोदी से टक्कर ले सकती हैं. ऐसे में अन्य विपक्षी पार्टियों के नेता और छोटे दल भी ममता के साथ जुड़ रहे हैं सिवाय काग्रेस के. 

कांग्रेस से सीधा टकराव 

ममता जीत के बाद किसी देशव्यापी मंच पर जब भी खड़ी हुईं तो उन्होंने भाजपा के अलावा कांग्रेस को भी निशाने पर लिया. ममता का पक्ष रहा है कि कांग्रेस देश के विपक्ष का नेतृत्व करने में पूर्णतः विफल हैं और यही कारण है कि भाजपा को लोग मजबूरी में चुन रहें हैं. ममता ने कांग्रेस को किसी भी कीमत पर विपक्ष का नेतृ्त्व करने नहीं देना चाहती हैं और यही कारण है कि दोनों तरफ से टकराव वाले बयान आते रहते हैं. ऐसे में ममता कांग्रेस के अलावा अन्य सभी क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर एक तीसरा मोर्चा खोल रही हैं जिसकी दिशा और दशा साफ नहीं है.

स्पष्ट है कि बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराकर एक तरफ जहां ममता ने विपक्ष समर्थकों के मन में ये विश्वास जताया है कि वो विपक्ष को लीड कर सकती हैं तो दूसरी ओर कांग्रेसी नेतृत्व क्षमता की कमियां गिनाकर विपक्षी एकता के लिए अपने पक्ष में सकारात्मक माहौल तैयार कर रही हैं. वहीं इस पूरे खेल में ममता दीदी अभी तक भाजपा और कांग्रेस दोनों पर ही भारी पड़ी हैं. 

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