माइनस डिग्री को भी मात दे सकता है ये 200 साल पुराना हीटर

Written By उर्वशी नौटियाल | Updated: Nov 24, 2021, 11:20 AM IST

कांगड़ी बनाता एक कारीगर

यह देसी हीटर पिछले 200 साल से हमारे देश में इस्तेमाल होता आ रहा है. इनकी मांग तेज़ी से बढ़ी है. हर साल करीब 3 लाख ऐसे देसी हीटर बनाए जाते हैं.

डीएनए हिंदी: कश्मीर घाटी में कड़ाके की ठंड पड़ रही है और तापमान शून्य से नीचे चला गया है. बढ़ती ठंड के साथ घाटी में रहने वाले लोग खुद को गर्म रखने के लिए हर तरीके और उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन सदियों पुरानी कांगड़ी आज भी सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है. कांगड़ी एक मिट्टी का घड़ा होता है जिसे विकर की टोकरी में लपेटा जाता है. इसके चारों ओर बुनाई होती है और खूबसूरत डिजाइन बनाए जाते हैं. माइनस डिग्री में गर्म रखने वाली इस कांगड़ी को घाटी के लोग पोर्टेबल हीटर कहते हैं.

जब सब हो जाते हैं फेल काम आती हैं कांगड़ी

मध्य कश्मीर के बडगाम जिले में चरार-ए-शरीफ को सबसे बढ़िया कांगड़ी बनाने के लिए जाना जाता है. अपने खूबसूरत क्राफ़्ट और गुणवत्ता के लिए मशहूर इस क्षेत्र से हर सर्दियों में लाखों कांगडियां बेची जाती हैं. एक कारीगर दिन में लगभग 3-4 कांगड़ी बनाता है. कारीगरों का कहना है कि कांगड़ी की मांग बढ़ गई है. ठंड में लंबी बिजली कटौती के चलते हीटर जैसे तमाम उपकरण बेकार साबित होते हैं तो कांगड़ी सबकी मदद करती है. कांगड़ी एक परंपरा के साथ-साथ कश्मीर घाटी की ज़रूरत भी है.

कांगड़ी बनाने वाले मंजूर अहमद भाटी कहते हैं, 'मैं 21 साल से कांगड़ी बना रहा हूं. हमारी कांगड़ी बुनाई काफ़ी प्रसिद्ध है. कच्चे माल को इकट्ठा करने और अछी क्वालिटी बनाने में हमें बहुत समय लगता है. हमें कांगड़ी की सजावट के लिए बुनाई के ऑर्डर भी मिलते हैं. हमारे क्षेत्र में, हम हर साल लगभग 3 लाख कांगड़ी बनाते हैं. अब तक जो लोग इस काम से जुड़े नहीं थे, उन्होंने भी कांगड़ी बनाना शुरू कर दिया है.'

युवा पीढ़ी को मिल रहा है रोज़गार

कांगड़ी बनाना अपने आप में एक खास कला है. इसे खूबसूरत दिखाने के लिए कारीगर बुनाई करते समय अलग-अलग रंगों का इस्तेमाल करते हैं. बुनाई काफ़ी खबसूरती से की जाती है और यही कांगड़ी की कीमत तय करती है. युवा पीढ़ी ने भी इस कला को अपनाना शुरू कर दिया है. वे कह रहे हैं कि उन्होंने यह कला अपने बड़ों से सीखी है और आने वाली पीढ़ी को भी सिखाएंगे.

 कारीगर नासिर हुसैन भट्ट कहते हैं, 'पिछले 5 साल से कांगड़ी बना रहा हूं, पहले मैं नौकरी की तलाश में निकला लेकिन मुझे कोई नौकरी नहीं मिली, आखिर में मैंने कांगड़ी बनाना शुरू किया. युवा पीढ़ी इससे जुड़ना नहीं चाहती लेकिन यह एक अच्छा उद्योग है. हमें हमारे बड़ों ने सिखाया था और हम इसे अपनी आने वाली पीढ़ियों को सिखाएंगे.'

दुल्हन को विदाई के वक्त तोहफे में दी जाती थी कांगड़ी

कांगड़ी में कोयले डाले जाते हैं और यह कई घंटों तक गरम रहती है. कांगड़ी कश्मीर में ठंड से बचने के लिए लग भग 200 साल पुराना पारम्परिक तरीका है. कांगड़ी को कश्मीरी पहनावे फिरन के अंदर लेकर इधर-उधर जा भी सकते हैं. आज भी कश्मीर में सर्दियों में कांगड़ी हर घर में पायी जाती है. कुछ साल पहले दुल्हन जब ससुराल जाती थी तो उसे कांगड़ी साथ दी जाती थी.