डीएनए हिंदी: अमीर लोगों को लेकर अक्सर हमारे दिमाग में ठाट-बाट के बीच नौकर-चाकर से घिरा हुआ कोई शख्स घूमता है. हालांकि हमारे देश में कुछ ऐसे भी धनवान पैदा हुए हैं जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. इन्ही में से एक थे- जमनालाल बजाज. 11 फरवरी को जमनालाल बजाज की पुण्यतिथि है इसलिए यह खास लेख उन्हें समर्पित है. यहां हम आपको उनकी जिंदगी से जुड़ी विशेष बातें बताएंगे.
मारवाड़ी परिवार में जन्म हुआ
जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवम्बर 1889 को राजस्थान के जयपुर स्थित एक छोटे से गांव काशी का वास में गरीब किसान कनीराम के यहां हुआ. हालांकि किस्मत को कुछ और ही मंजूर था इसलिए वर्धा के एक बड़े सेठ वच्छराज ने जमनालाल को पांच साल की उम्र में गोद ले लिया. धन और वैभव के बीच रहने के बावजूद भी जमनालाल का झुकाव सामाजिक कार्यों और अध्यात्म की तरफ था. जमनालाल की शादी बेहद ही कम उम्र में, जब वह 13 साल के थे तभी उनका विवाह 9 साल की जानकी के साथ कर दी गई.
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जमनालाल ने ऐसे ठुकराया धन
एक बार पूरे परिवार को किसी बड़े कार्यक्रम में जाना था. परिवार के लोग अपने धन का खूब बढ़-चढ़कर प्रदर्शन करना चाह रहे थे. इस दौरान जमनालाल से भी कहा गया कि वह महंगे कपड़े और हीरे-पन्नों से जड़ा हार पहनकर चलें लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया. इस बात पर जमनालाल और उनके पिता के बीच लड़ाई हो गई और वे घर छोड़कर भाग निकले. हालांकि जब उन्होंने अपना घर छोड़ा था टैब उनकी उम्र मात्र 17 साल थी.
कुछ दिनों बाद जमनालाल ने अपने पिता को एक क़ानूनी चिट्ठी भेजी. चिट्ठी में साफ साफ लिखा था कि उन्हें उनके पिता के पैसे-रुपये में कोई दिलचस्पी नहीं है. साथ ही पिता के लिए यह भी नसीहत थी कि वह अपने धन का इस्तेमाल दिखावा करने की बजाय गरीब और असहाय लोगों की मदद करने के लिए करें.
कुछ समय बाद जमनलाल के पिता की मृत्यु हो गई. बाद में जमनालाल ने अपनी पूरी प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन करवाकर उसमें उस दिन तक का कंपाउंड इंटरेस्ट जोड़कर उतनी प्रॉपर्टी का दान कर दिया. उन्होंने उस प्रॉपर्टी का खुद को ट्रस्टी मान लिया.
देश सेवा के लिए तीन महीने की पूंजी दे दी थी
युवा जमनालाल के अंदर आध्यात्मिक खोजयात्रा शुरू हो चुकी थी और वह किसी सच्चे कर्मयोगी गुरु की तलाश में भटक रहे थे. अपने इस समय में वह मदन मोहन मालवीय और रबीन्द्रनाथ टैगोर के साथ भी रहे. 1906 में जब बाल गंगाधर तिलक ने मराठी पत्रिका 'केसरी' का हिंदी संस्करण नागपुर से निकालने के लिए विज्ञापन दिया तो जमनालाल ने पूरे तीन महीने की पूंजी तिलक को जाकर दे दी.
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विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार
देश में असहयोग आन्दोलन के दौरान जब विदेशी कपड़ों का बहिष्कार होने लगा तब जमनालाल ने अपने घर के तमाम कीमती और रेशमी कपड़ो को शहर के बीचोंबीच ले जाकर होली जलवा दी थी. उनकी पत्नी ने भी उस वक्त जिंदगी भर खादी पहनने का निर्णय लिया.
अंग्रेजी हुकूमत ने जमनालाल को ‘राय-बहादुर’ की पदवी दी थी जिसे उन्होंने त्याग दिया. वहीं इस दौरान जिन वकीलों ने आज़ादी की लड़ाई के लिए अपनी वकालत छोड़ दी थी. उनके भरण-पोषण के लिए उन्होंने कांग्रेस को एक लाख रुपये का अलग से दान दिया.
दलितों की हक़ के लिए लड़ाई
उस जमाने में कहां दलितों पर मंदिर में घुसने पर पाबन्दी थी. जमनालाल ने सालों से चले आ रहे इस परंपरा का विरोध किया और विनोबा के नेतृत्व में दलितों को वर्धा के लक्ष्मीनारायण मंदिर में प्रवेश कराने में सफलता पाई.
जमनलाल बजाज की मृत्य 11 फरवरी 1942 को हुई थी.
जमनालाल बजाज पुरस्कार
जमनालाल बजाज पुरस्कार एक भारतीय पुरस्कार है जो गांधीवादी सोच को बढ़ाने, सामुदायिक सेवा और सामाजिक विकास के लिए दिया जाता है. इसकी स्थापना साल 1978 में की गई थी और हर साल यह चार कैटेगरीज में दी जाती है.
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