डीएनए हिंदीः देश में हर साल 7 मार्च को जन औषधि दिवस (Jan Aushadhi Divas) मनाया जाता है. देशवासियों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा (Health care) को सस्ती बनाने की दिशा में केंद्र सरकार हर मुमकिन प्रयास कर रही है. प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के माध्यम से लोगों के बीच सस्ती और गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाओं को लोकप्रिय बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रहे हैं. जन औषधि केंद्रों को देशभर में बढ़ावा देने के लिए 1 से 7 मार्च तक जन औषधि सप्ताह मनाया जा रहा है. यहां पढ़ें अभिषेक सांख्यायन की विशेष रिपोर्ट
इस बार इस दिवस का थीम 'जन औषधि-जन उपयोगी' रखा गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) इस मौके पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दोपहर 12:30 बजे जन औषधि के लाभार्थियों के साथ-साथ जन औषधि केंद्र मालिकों से बातचीत करेंगे. इसके बाद उनका संबोधन भी होगा.
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लोगों को हुई 3600 करोड़ की बचत
केंद्र सरकार के मुताबिक जन औषधि केंद्र से हर साल 3600 करोड़ रुपये की दवाईयां बेची जा रही हैं. पहली बार 2019 में जन औषधि दिवस मनाया गया था. केंद्र सरकार ने साल 2025 के अंत तक प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र (PMBJK) की संख्या को 8,600 से बढ़ाकर 10,500 करने का लक्ष्य रखा है.
जन औषधि केंद्र एक नजर में
जन औषधि केंद्र की संख्या - 8694 (6 मार्च 2022 तक)
दवाईयों की संख्या - 1451
सर्जिकल आइटम - 240
ब्रिकी - 593.84 (2020-21)
जन औषधि दवाओं के फायदे
जन औषधि दवाईयां बाजार में मिलने वाली ब्रांडेड दवाईयों से 50 फीसदी से अधिक तक सस्ती होती हैं. कई दवाईयां तो 90 फीसदी तक सस्ती हैं. सस्ती दवाईयों के कारण लोगों पर इसका आर्थिक बोझ नहीं पड़ता है. नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 18 फीसदी लोग अपने अस्पताल के खर्चों के लिए या तो किसी से पैसे उधार लेते हैं या अपनी संपत्ति बेच देते हैं.
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सबसे ज्यादा कहां होता है खर्च
दवाईयां - 43 फीसदी
निजी अस्पताल - 28.5 फीसदी
सरकारी अस्पताल - 7.42 फीसदी
मेडिकल टेस्ट - 6.8 फीसदी
एंबुलेंस और इमरजेंसी खर्च - 6.26 फीसदी
जेब से अधिक खर्च में भारत का कौन सा स्थान
जेब से अधिक खर्च (Out of pocket Expenditures) के भारत काफी आगे है. 2021 के इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक भारत जीडीपी का 1 से 2.5 फीसदी तक OOPE पर खर्च करता है. इस खर्चे को जन औषधि केंद्र के माध्यम से 65 फीसदी से घटाकर 30 फीसदी तक लाने का लक्ष्य रखा गया है.
OOPE में सार्क देशों का हाल
भारत - 54.8 फीसदी
पाकिस्तान- 53.81 फीसदी
बांग्लादेश - 72.68 फीसदी
श्रीलंका - 45.64 फीसदी
नेपाल - 57.91 फीसदी
OOPE में BRICS देशों का हाल
चीन - 35.23 फीसदी
रूस - 36.57 फीसदी
ब्राजील - 24.88 फीसदी
दक्षिण अफ्रीका - 5.7 फीसदी
OOPE में अन्य देशों का हाल
अमेरिका - 11.31 फीसदी
ब्रिटेन - 17.07 फीसदी
फ्रांस - 9.26 फीसदी
जर्मनी - 12.82 फीसदी
विश्व का औसत - 18.01 फीसदी
यूरोपियन यूनियन - 15.50 फीसदी
साउथ एशिया - 56.04 फीसदी