डीएनए हिंदी: 'मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं. हर पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए मरूंगी.' ये शब्द भारत की उस बेटी ने कहे थे जिसे याद करके आज भी आंखें नम और सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. ये शब्द हैं अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला और देश की करोड़ों बेटियों की प्रेरणा कल्पना चावला के.
कल्पना ने न सिर्फ अंतरिक्ष की दुनिया में उपलब्धियां हासिल कीं, बल्कि तमाम लोगों को सपनों को जीना सिखाया. कल्पना ने वो कर दिखाया था जो भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर की लड़कियों को प्रेरणा दे गया.
कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही अंतरिक्ष और खगोलीय में दिलचस्पी थी. वे अक्सर अपने पिता से पूछा करती थीं, ये अंतरिक्षयान आकाश में कैसे उड़ते हैं? क्या मैं भी उड़ सकती हूं? और पिता हंसकर उनकी बातों को टाल दिया करते लेकिन वो कहते हैं ना कि सपनों की उड़ान को कोई नहीं रोक सकता. अपने इन्हीं सपनों की उड़ान भरने के लिए कल्पना 1982 में अमेरिका गईं और यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री ली. 1995 में कल्पना नासा में अंतरिक्ष यात्री के तौर पर शामिल हुई और 1998 में उन्हें अपनी पहली उड़ान के लिए चुना गया.
वो पहली भारतीय महिला थीं जो NASA में अंतरिक्ष यात्री के तौर पर शामिल हुईं. अपने पहले मिशन में कल्पना ने 1.04 करोड़ मील सफर तय कर पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं और 360 घंटे अंतरिक्ष में बिताए.
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1 फरवरी 2003 को अंतरिक्ष में 16 दिन बिताने के बाद कल्पना चावला अपने 6 अन्य साथियों के साथ धरती पर लौट रही थीं. हर किसी की नजरें उस अंतरिक्ष यान पर टिकी हुई थी जो कल्पना को लेकर धरती पर पहुंचने वाला था. अंतरिक्ष यान कोलंबिया शटल STS-107 धरती से करीब 2 लाख फीट की ऊंचाई पर था. उसे धरती पर पहुंचने में महज 16 मिनट का समय लगने वाला था लेकिन अचानक नासा से यान का संपर्क टूट गया और अगले कुछ मिनटों में इसका मलबा अमेरिका के टैक्सस राज्य के डैलस इलाके में फैल गया. इस दुर्घटना में चावला समेत सभी यात्रियों की मौत हो गई थी लेकिन देश की बेटी हमारे दिलों में आज भी जिंदा है. आज भी वो हमारे लिए एक मिसाल हैं और हमेशा रहेंगी.
हरियाणा के करनाल में पिता बनारसी लाल चावला और मां संजयोती के घर 17 मार्च 1962 को जन्मीं कल्पना अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं. घर में सब उन्हें प्यार से मोंटू बुलाते थे. कल्पना की शुरुआती पढ़ाई करनाल के टैगोर बाल निकेतन में हुई. जब वह आठवीं क्लास में पहुंचीं तो उन्होंने अपने पिता से इंजिनियर बनने की इच्छा जाहिर की लेकिन पिता उन्हें डॉक्टर या टीचर बनाना चाहते थे.
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वो कहा करती थीं, 'सपनों से सफलता तक का रास्ता तो तय होता है मगर क्या आपमें इसे ढूंढने की इच्छा है? उसे पाने के लिए उस मार्ग पर चलने का साहस है? क्या आप अपने सपनों को हासिल करने के लिए पूर्ण रूप से दृढ़ हैं?'