Police Custody vs Judicial Custody: हिरासत और गिरफ्तारी में क्या होता है अंतर? अलग होती है पुलिस और ज्यूडिशियल कस्टडी

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Jul 04, 2022, 03:04 PM IST

Difference Between Police Custody and Judicial Custody

अगर आप किसी अपराध में लिप्त पाए जाते हैं या ऐसे किसी अपराध का पुलिस को आप पर शक होता है तो आपकी गिरफ्तारी होती है. कई मामलों में पुलिस आरोपी को हिरासत में ले लेती है. यहां यह जानना जरूरी है कि हिरासत और गिरफ्तारी में अंतर होता है. बता रही हैं एक्सपर्ट एडवोकेट अनमोल शर्मा

डीएनए हिंदी: ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर जुबैर मोहम्मद को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है. कुछ दिन पहले शक्ति कपूर के बेटे को ड्रग्स मामले में हिरासत में लिया गया था, गिरफ्तार नहीं किया गया था. ड्रग्म मामले में शाहरुख के बेटे आर्यन को भी न्यायिक हिरासत में लिया गया था पुलिस कस्टडी में नहीं.  अक्सर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जब किसी मामले में किसी आरोपी को न्यायिक हिरासत दी जाती है और किसी को पुलिस हिरासत. कहीं गिरफ्तारी होती है और कहीं हिरासत. अगर आपको भी लगता है कि दोनों एक ही बात हैं तो यह जानकारी होना जरूरी है. जानें कितने प्रकार की होती है कस्टडी और क्या होता है पुलिस कस्टडी व ज्यूडिशियल कस्टडी में अंतर-

क्या होती है कस्टडी
कस्टडी यानी हिरासत शब्द का अर्थ है सुरक्षात्मक देखभाल के लिए किसी को पकड़ना. हिरासत और गिरफ्तारी पर्यायवाची नहीं हैं. हर गिरफ्तारी में हिरासत होती है, लेकिन हर हिरासत में गिरफ्तारी नहीं होती है. किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है यदि वह अपराध करने का दोषी हो या उस पर संदेह हो. लेकिन हिरासत का मतलब किसी की रक्षा करना या उसे अस्थायी रूप से जेल में रखना होता है. जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो उसे हिरासत में रखा जाता है. 

कस्टडी दो तरह की होती है
- पुलिस कस्टडी
- ज्यूडिशियल कस्टडी

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पुलिस कस्टडी (पुलिस हिरासत)
पुलिस कस्टडी के दौरान आरोपी से अपराध के बारे में पूछताछ या जांच-पड़ताल की जाती है. पुलिस हिरासत के दौरान पुलिसआरोपी को घटनास्थल पर ले जाती है और जांच में मिलने वाले सबूतों को अपने कब्जे में ले लेती है. गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने का नियम है जो कि CRPC की धारा 167 के तहत किया जाता है. मजिस्ट्रेट यह फैसला करते हैं कि आगे की जांच या पूछताछ की आवश्यकता है या नहीं. मजिस्ट्रेट आरोपी को 15 दिनों के लिए पुलिस हिरासत में रखने का आदेश दे सकते हैं. गंभीरता और प्रत्येक मामले की परिस्थितियों के आधार पर इसे 30 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है.वह पुलिस हिरासत से ज्यूडिशियल हिरासत में बदलने का आदेश भी दे सकते हैं. 

ज्यूडिशियल कस्टडी (न्यायिक हिरासत)
जब किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट द्वारा हिरासत में रखा जाता है तो इसे ज्यूडिशियल कस्टडी कहा जाता है. मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही आरोपी को निश्चित अवधि के लिए जेल में रखा जाता है. आरोपी या संदिग्ध आरोपी मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी बन जाता है. उसे जनता की नजरों से दूर रखा जाता है ताकि उसे जनता या समाज के किसी वर्ग द्वारा किसी भी तरह के दुर्व्यवहार या उत्पीड़न से बचाया जा सके. यदि कोई व्यक्ति न्यायिक हिरासत  में है और जांच अभी भी चल रही है तो पुलिस को 60 दिनों के भीतर आरोप पत्र दायर करना होता है.

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क्या होता है पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में अंतर

1) पुलिस कस्टडी में आरोपी को पुलिस थाने में कार्यवाही के कारण रखा जाता है और न्यायिक हिरासत में आरोपी को जेल में रखा जाता है.

2) पुलिस कस्टडी की अवधि 24घंटे की होती है जबकि न्यायिक हिरासत में ऐसी कोई अवधि नहीं होती है.

3) पुलिस कस्टडी में रखे आरोपी को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है. न्यायिक हिरासत में आरोपी को तब तक जेल में रखा जाता है जब तक कि उसके खिलाफ मामला अदालत में चल रहा हो या अदालत उसे जमानत ना दे.

4) पुलिस कस्टडी में पुलिस आरोपी को मार-पीट सकती है ताकि वह अपना अपराध कबूल कर ले, लेकिन अगर आरोपी सीधे कोर्ट में हाजिर हो जाता है तो उसे सीधे जेल भेज दिया जाता है और वह पुलिस की पिटाई से बच जाता है. यदि पुलिस को किसी तरह की पूछताछ करनी हो तो सबसे  पहले न्यायधीश से आज्ञा लेनी पड़ती है.

5) पुलिस कस्टडी पुलिस द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा के अंतर्गत आती है, जबकि न्यायिक कस्टडी में आरोपी न्यायधीश की सुरक्षा के अंतर्गत आता है.

6) पुलिस कस्टडी हत्या, लूट, चोरी इत्यादि के लिए की जाती है और न्यायिक हिरासत में पुलिस कस्टडी वाले अपराधों के अलावा कोर्ट की अवहेलना जमानत खारिज होने के लिए की जाती है.

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अनमोल शर्मा सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. यह जानकारी उनसे बातचीत पर आधारित है.

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