'तुम कहीं के तुर्रम खां हो क्या!', क्यों कहा जाता है ऐसा, जानें कौन थे तुर्रम खां

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jun 21, 2022, 05:02 PM IST

तुर्रम खान

1857 की क्रांति के बारे में बात होती है तो दिल्ली, मेरठ, लखनऊ, झांसी और मैसूर का जिक्र आता है, लेकिन हैदराबाद का नाम नहीं आता है.

डीएनए हिंदी: 'खुद को बड़ा तुर्रमखां समझते हो!' 'तुम कहीं के तुर्रमखां हो क्या!' हैदराबाद की लोककथाओं में तुर्रमखां का मतलब होता है हीरो. नायक. ऐसा व्यक्ति जो कुछ भी कर सकता है. मानें ये शब्द आपकी तारीफ के लिए इस्तेमाल होता है. अब जरूरी ये जानना है कि तुर्रमखां नाम का ये शब्द आया कहां से. तुर्रमखां शब्द जो अब एक कहावत जैसा बन चुका है, दरअसल एक व्यक्ति का नाम है. एक महान वीर थे तुर्रेबाज खान. इन्हीं के नाम और शख्सियत पर यह शब्द बना- तुर्रमखां. अब जानते हैं आखिर क्या थी तुर्रेबाज खान की कहानी. 

कौन थे तुर्रेबाज खान
तुर्रेबाज खान का जन्म हैदराबाद के बेगम बाजार में हुआ था. उन्होंने हैदराबाद के चौथे निजाम और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था. तुर्रेबाज सन् 1857 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई में शामिल थे. कहा जाता है कि जिस आजादी की लड़ाई की शुरुआत मंगल पांडे ने बैरकपुर में की थी उसका नेतृत्व तुर्रम खां ने हैदराबाद में किया था.

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1857 की कहानी
1857 की क्रांति के बारे में बात होती है तो दिल्ली, मेरठ, लखनऊ, झांसी और मैसूर का जिक्र आता है, लेकिन हैदराबाद का नाम नहीं आता है. ऐसा इसलिए क्योंकि हैदराबाद के निजाम अंग्रेजों के पक्ष में थे. उनका सहयोग कर रहे थे और जहां एक तरफ पूरा भारत एकजुट था, वहां निजाम अंग्रेजी की ही तरफ थे. ऐसे में तुर्रेबाज खान ने ना सिर्फ अंग्रेजो के खिलाफ बल्कि हैदाराबाद के निजाम के खिलाफ भी अपनी आवाज बुलंद की. उनकी बहादुरी की आज भी मिसाल दी जाती है और तभी किसी के जज्बे की तारीफ में तुर्रमखां शब्द का इस्तेमाल करने से लोग नहीं चूकते हैं. 

कैसे शुरू हुई थी तुर्रेबाज खान की क्रांति
हैदराबाद में अंग्रेजों के एक जमादार चीदा खान ने सिपाहियों के साथ दिल्ली कूच करने से मना कर दिया था. उसे निजाम के मंत्री ने धोखे से कैद कर अंग्रेजों को सौंप दिया. अंग्रेजों ने उसे रेजीडेंसी हाउस में कैद कर लिया. उसी को छुड़ाने के लिए तुर्रम खां ने अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया. 17 जुलाई 1857 की रात तुर्रम खां ने 500 स्वतंत्रता सेनानियों के साथ रेजीडेंसी हाउस पर हमला कर दिया था. मगर इसकी सूचना अंग्रेजों को पहले ही मिल गई थी और उन्होंने पलटवार कर दिया.

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अंग्रेजों के पास तोप औऱ बंदूकें थी, जबकि तुर्रमा खां के पास सिर्फ तलवार. वह रात भर जंग लड़ते रहे और हार नहीं मानी. इसके बाद अंग्रेजों ने तुर्रम खां पर 5000 रुपये का इनाम रख दिया. कुछ दिनों बाद एक गद्दार तालुकदार मिर्जा कुर्बान अली बेग ने तूपरण के जंगलों में धोखे से तुर्रम खान को मार दिया, मगर तुर्रम खां की बहादुरी हमेशा के लिए अमर हो गई. 

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