Knowledge News: कीबोर्ड पर इधर-उधर क्यों लगे होते हैं अल्फाबेट्स? क्या A to Z लिखने पर आसान होती टाइपिंग?

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Feb 21, 2022, 01:02 PM IST

Christopher Latham Sholes ने ABCDE... फॉर्मेट पर ही कीबोर्ड बनाया था. हालांकि बाद में उन्होंने पाया कि ऐसा करने पर टाइपिंग की स्पीड धीमी पड़ रही है.

डीएनए हिंदी: बचपन में जब आपने नया-नया कंप्यूटर चलाना सीखा होगा तो आपके मन में भी यह बात जरूर आई होगी कि अगर कीबोर्ड पर बने अल्फाबेट्स सीधे-सीधे ABCD... में लिखे होते तो टाइपिंग करना कितना आसान हो जाता या कीबोर्ड पर बने अल्फाबेट्स इधर-उधर क्यों लिखे होते हैं? आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको इस सवाल के जवाब के बारे में बताएंगे.

टाइपराइटर से जुड़ा है कीबोर्ड का इतिहास
दरअसल कीबोर्ड का इतिहास टाइपराइटर से जुड़ा है. यानी कंप्यूटर या कीबोर्ड आने से पहले ही QWERTY Format चला आ रहा है. 

जानकारी के अनुसार, टाइपराइटर का इन्वेंशन करने वाले Christopher Latham Sholes ने साल 1868 में   ABCDE... फॉर्मेट पर ही कीबोर्ड बनाया था. हालांकि बाद में उन्होंने पाया कि ऐसा करने पर टाइपिंग की स्पीड धीमी पड़ रही है. ABCD वाले कीबोर्ड पर बने बटन एक दूसरे के बेहद करीब थे जिसके चलते टाइपिंग करने में मुश्किल का सामना करना पड़ता था. 

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टाइपिंग की स्पीड पर भी पड़ा असर
इसके अलावा अंग्रेजी में कुछ अक्षर ऐसे हैं जिनका इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है (जैसे E,I,S,M) वहीं कुछ शब्दों की जरूरत कम ही पड़ती है (जैसे Z, X, आदि). ऐसे में ज्यादा इस्तेमाल में आने वाले अक्षरों के लिए उंगली को पूरे कीबोर्ड पर घुमाना पड़ता था और टाइपिंग स्लो हो जाती थी. 

इन परेशानियों का हल निकालने के लिए कई नाकाम कोशिशें की गईं. इस दौरान Dvorak Model नाम का एक फॉर्मेट बनाया गया. हालांकि यह फॉर्मेट बहुत दिन तक चर्चा में नहीं रहा. Dvorak Model के फॉर्मेट पर बना कीबोर्ड ना तो अल्फाबेटिकली था और ना ही आसान.

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इसलिए चुना गया QWERTY मॉडल 
इसके बाद 1870 के दशक में QWERTY Format बनाया गया. इस फॉर्मेट के चलते जरूरी अक्षरों को उंगलियों की रीच में रखा गया. ऐसा करने पर लोगों को टाइपिंग करने में भी आसानी हुई साथ ही उनकी स्पीड में भी तेजी आई. लोगों को QWERTY मॉडल सबसे ज्यादा पसंद आया जिसके बाद से यही फॉर्मेट चलता आ रहा है.

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