डीएनए हिंदी: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार सेब की खेती है, जो सालाना लगभग 5000 करोड़ का उद्योग है. आज की तारीख में भले ही यहां का सेब उत्पादन कई तरह की चुनौतियां झेल रहा है, लेकिन पूरी दुनिया में मशहूर रेड डेलीशियस और रॉयल डेलीशियस किस्म के हिमाचली सेबों की कहानी बेहद दिलचस्प है. यह कहानी अमेरिका के फिलाडेल्फिया से शुरू होकर मौजूदा सेब उत्पादन तक पहुंचती है. आइए जानते हैं हिमाचल प्रदेश में सेब उगाने की शुरुआत करने में अमेरिका का क्या योगदान रहा है.
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फिलाडेल्फिया के सैमुअल भारत आकर बने सत्यानंद
यह कहानी शुरू होती है बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में जब एक अमेरिकी पादरी हिमाचल प्रदेश आया और यहीं का होकर रह गया. अमेरिका के फिलाडेल्फिया शहर के एक अमीर व्यापारी परिवार के बेटे सैमुअल स्टोक्स साल 1904 में महज 22 साल की उम्र में हिमाचल प्रदेश पहुंचे. वे पादरी बन गए थे और उनका मकसद यहां रहकर कुष्ठरोगियों की सेवा करना था. इसी कारण वे हिमाचल प्रदेश के सुबाथू पहुंचे. यहां आकर वे भारतीय संस्कृति और धर्म से इतना प्रभावित हुए कि इसी में रम गए. उनके लिए अध्यात्म के नए दरवाजे खोले शिमला के पास कोटगढ़ में रह रहे साधु सुंदर सिंह ने.
सैमुअल स्टोक्स को शिमला की पहाड़ियों का इलाक़ा बहुत पसंद आया और उन्होंने यहीं बसने का फैसला किया. उन्होंने जमीन खरीदी और साल 1912 में कोटगढ़ के चर्च में एक स्थानीय लड़की एग्नेस बेजामिन से शादी कर ली. एग्नेस के परिवार ने कुछ ही दिन पहले ईसाई धर्म अपनाया था.
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ग्रामीणों की गरीबी का इलाज निकाला सेब की खेती से
सैमुअल स्टोक्स ने स्थानीय लोगों के साथ घुलने-मिलने के बाद उनकी खराब आर्थिक स्थिति को समझा, जो मुख्यरूप से छोटी-मोटी खेती तक सीमित थे. स्टोक्स अपने परिवार से मिलने अमेरिका गए तो उन्हें सेबों की ऐसी किस्म की जानकारी मिली, जो शिमला के इलाके में लगाई जा सकती थीं. हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में पहले भी सेब उगाए जाते थे, लेकिन उनका स्वाद खराब होने के कारण उनकी खेती में ज्यादा लोगों की दिलचस्पी नहीं थी.
कोटगढ़ के प्रधान स्वर्णचंद भारद्वाज के मुताबिक, सैमुअल जब फिलाडेल्फिया से वापस शिमला लौटे तो अपने साथ वहां से सेबों की खास किस्म की पौध लेकर आए. उन्होंने इस किस्म के सेबों को अपने खेतों में लगाया और 1916 में रेड डेलीशियस और रॉयल डेलीशियस किस्म के सेबों की बंपर पैदावार हुई. इसके बाद स्टोक्स ने स्थानीय लोगों को भी सेब की खेती के लिए प्रोत्साहित किया और शिमला के आसपास बेहतरीन सेबों की खेती शुरू हो गई. इसके बाद कोटगढ़ लंबे अरसे तक एशिया का सबसे धनी गांव रहा है.
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सैमुअल बने सत्यानंद, जुड़े स्वतंत्रता संग्राम से
साल 1932 में सैमुअल स्टोक्स ने हिंदू धर्म अपना लिया और सत्यानंद स्टोक्स बन गए. इससे पहले उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में भी हिस्सा लिया. वे इकलौते अमेरिकी थे, जो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के सदस्य बने और साल 1921 में जेल भी गए. उनके बेटे लालचंद स्टोक्स भी राजनीति में सक्रिय रहे और बहू विद्या स्टोक्स 8 बार विधायक रहने के साथ-साथ महत्वपूर्ण पदों पर रहीं. हिमाचल प्रदेश में स्टोक्स परिवार का लंबा राजनैतिक रसूख रहा है, लेकिन हिमाचल प्रदेश के आम लोगों के लिए स्टोक्स वे व्यक्ति हैं, जिन्होंने हिमाचल प्रदेश को सेब की सौगात दी.
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अब स्टोक्स परिवार की तीसरी पीढ़ी संभाल रही विरासत
स्टोक्स परिवार की तीसरी पीढ़ी के विजय कुमार स्टोक्स अभी भी थानाधार के उसी मकान में रहते हैं, जिसे सत्यानंद स्टोक्स ने बनवाया था. हालांकि वो पेश से इंजीनियर रहे हैं, लेकिन वो उसी बड़े बागान में सेब की खेती करते हैं, जिसे उनके दादा ने लगाया था. विजय आजकल चिंतित हैं कि हिमाचल प्रदेश के सेबों के हालात ज्यादा बेहतर नहीं हैं. दरअसल हिमाचल प्रदेश में प्रति पेड़ सेबों का उत्पादन अमेरिका और चीन जैसे देशों के मुकाबले कई गुना कम है. बाज़ारों में हिमाचल का सेब विदेशी सेबों की भारी आवक से परेशानी महसूस कर रहा है. इसकी एक वजह ये भी है कि जलवायु बदलने के कारण हिमाचल में सेबों को पर्याप्त बर्फ नहीं मिल पा रही है और दूसरी वजह ये भी कि यहां अभी भी सौ साल पुरानी सेब की किस्में ही उगाई जा रही हैं.
विजय स्टोक्स को मौजूदा हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव (Himachal Pradesh Assembly Election 2022) से बेहद उम्मीदें हैं. उनका कहना है कि सेब के बागान लगातार संरक्षण और देखभाल चाहते हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा ज़रूरी है फसल को सही समय पर बाज़ार में पहुंचाना और किसान को सही दाम मिलना. चुनावों में हमेशा की तरह इस बार भी सेब की खेती पर ध्यान देने का वादा है, जिसकी मुश्किलें झेल रहे हिमाचली सेब को बहुत ज्यादा ज़रूरत है.
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