Mulayam Singh Yadav के 8 फैसले जिन्होंने बदला भारतीय राजनीति का लुक
साल 1989 में चंद्रशेखर के बजाय वीपी सिंह के समर्थन से लेकर परमाणु समझौते पर कांग्रेस की सरकार बचाने तक, 'नेता जी' का हर दांव नया बदलाव लाया.
डीएनए हिंदी: भारतीय राजनीति का बड़ा स्तंभ कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का 82 साल की उम्र में सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. साल 1967 में महज 28 साल की उम्र में देश के सबसे युवा विधायक बनने से शुरू हुआ मुलायम का राजनीतिक जीवन पूरी तरह अनूठा रहा. उनके फैसले अपनों के लिए ही नहीं विरोधियों के लिए भी आश्चर्य का सबब बनते रहे. कई बार उन्हें अपने फैसले पर नहीं टिके रहने वाला भी कहा गया, लेकिन मुलायम ने कभी ऐसे संबोधनों की परवाह नहीं की और उत्तर प्रदेश से लेकर केंद्र तक, हर जगह तकरीबन ढाई दशक तक अपनी मर्जी की राजनीति चलाई. इस दौरान उनके ऐसे कई फैसले रहे, जिन्होंने भारतीय राजनीति की दिशा हमेशा के लिए बदल दी. मुलायम नहीं रहे, लेकिन उनके ये फैसले हमेशा याद किए जाएंगे.
आइए ऐसे ही 8 फैसलों की बात करते हैं-
चंद्रशेखर के बजाय वीपी सिंह को प्रधानमंत्री माना
साल 1989 के आम चुनाव में राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) के नेतृत्व वाली कांग्रेस की हार के बाद जनता दल (Janta Dal) ने सरकार बनाई. प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर पार्टी के अंदर वीपी सिंह (Ex Prime Minister VP Singh) और चंद्रशेखर (Ex Prime Minister Chandrashekhar) खड़े हुए थे. ऐसे में मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक गुरू चंद्रशेखर के बजाय वीपी सिंह को समर्थन देकर सभी को चौंका दिया था. वीपी सिंह ने पीएम बनने पर मंडल कमीशन (Mandal Commision) की OBC आरक्षण से जुड़ीं सिफारिशें लागू की, जिनसे देश में अन्य पिछड़ा वर्ग की राजनीति का दौर शुरू हुआ. हालांकि बाद में मुलायम सिंह ने ही वीपी सिंह को हटवाने और चंद्रशेखर को पीएम बनवाने में भी अहम भूमिका निभाई.
I had many interactions with Mulayam Singh Yadav Ji when we served as Chief Ministers of our respective states. The close association continued and I always looked forward to hearing his views. His demise pains me. Condolences to his family and lakhs of supporters. Om Shanti. pic.twitter.com/eWbJYoNfzU
— Narendra Modi (@narendramodi) October 10, 2022
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श्रीराम मंदिर के कार सेवकों पर चलवा दी थी गोली
जनता दल की सरकार के दौरान साल 1989 में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने. इस दौरान भाजपा (BJP) ने लाल कृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Adwani) के नेतृत्व में अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर (Ram Mandir in Ayodhya) बनवाने के लिए आंदोलन शुरू किया. इस आंदोलन से जुड़े कार सेवकों पर साल 1990 में मुलायम सिंह ने गोली चलवा दी. इस गोलीबारी में करीब 1 दर्जन कारसेवक मारे गए, जबकि उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा आदि उग्र हिंदुत्ववादी नेता घायल हो गए.
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इस गोलीकांड का असर यह हुआ कि पूरे देश में भाजपा के समर्थन और विपक्ष में जबरदस्त ध्रुवीकरण हो गया, जिससे भाजपा को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर पैर जमाने का मौका मिल गया. इसके तत्काल बाद हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की और देश में हिंदुत्ववादी राजनीति का उभार आ गया, जो अब तक कायम है.
खटीमा-मसूरी के गोलीकांड और रामपुर तिराहा की बर्बरता
मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के बंटवारे के सख्त खिलाफ थे. साल 1994 के दौरान उनके मुख्यमंत्री रहते उत्तर प्रदेश को दो हिस्सों में बांटकर अलग उत्तराखंड बनाने का आंदोलन बेहद उग्र था. इस आंदोलन से खफा मुलायम ने आंदोलनकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश दे दिए. इसका नतीजा 2 सितंबर, 1994 को पहाड़ों की रानी कहलाने वाली मसूरी और 1 सितंबर, 1994 को खटीमा में पुलिस के आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसा देने के तौर पर सामने आया.
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इन दोनों गोलीकांड में दर्जनों लोग मारे गए. इसके बाद 2 अक्टूबर, 1994 की रात में 'शांति के मसीहा' महात्मा गांधी की जयंती के दिन मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर पुलिस ने आंदोलनकारियों के खिलाफ बर्बरता की हदें पार कर दीं. दर्जनों लोग मारे गए, दर्जनों आज तक लापता हैं और दर्जनों महिलाओं की अस्मत लूटी गई. इस बर्बरता की गूंज विदेशों तक हुईं. नतीजा ये रहा कि उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से में मुलायम सिंह की राजनीति हमेशा के लिए खत्म हो गई.
Uttar Pradesh CM Yogi Adityanath pays tribute to former UP CM Mulayam Singh Yadav at his ancestral village Saifai. UP Minister Swatantra Dev Singh and BJP state president Bhupendra Singh Chaudhary were also present.
— ANI (@ANI) October 10, 2022
Mulayam Singh Yadav's last rites will be held there tomorrow. pic.twitter.com/fgitM1lziM
गेस्टहाउस कांड ने उभारी दलित राजनीति
साल 1993 में मुलायम सिंह यादव ने भाजपा को रोकने के लिए कांशीराम की बसपा के साथ समझौता किया. दोनों पार्टियों ने गठबंधन में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इससे कांशीराम की दलित राजनीति को नई ताकत मिली, लेकिन असली खेल हुए साल 1995 की गर्मियों में. दोनों पार्टियों के बीच सरकार गठन के समय से ही चल रहा वैचारिक मतभेद चरम पर पहुंचा और बसपा ने नेताजी की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इससे मुलायम सिंह नाराज हो गए और समाजवादी पार्टी (सपा) कार्यकर्ताओं के सामने जोशीला भाषण दे दिया.
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नतीजा ये रहा कि कार्यकर्ता भड़क उठे और सरकार गिराने का जिम्मेदार मानते हुए लखनऊ के उस मीराबाई गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया, जिसमें तब (Mayawati) ठहरी हुई थीं. सपा कार्यकर्ता इतने उग्र थे कि हमले में मायावती की जान भी जा सकती थी. इस हमले का नतीजा ये हुआ कि बसपा भाजपा खेमे की तरफ खिसक गई और उत्तर प्रदेश में भाजपा के समर्थन से मायावती के तौर पर पहली बार दलित मुख्यमंत्री बनी. इससे देश में दलित राजनीति का उभार शुरू हुआ.
Union Home Minister Amit Shah pays tribute to veteran politician Mulayam Singh Yadav at Gurugram's Medanta Hospital. pic.twitter.com/K5wmiAAiKz
— ANI (@ANI) October 10, 2022
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कांग्रेस से समर्थन वापस लेकर कराए लोकसभा चुनाव
साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार गठन के महज 13 दिन बाद कांग्रेस के एक दांव से गिर गई. इसके बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र में सरकार गठन का दावा पेश किया. उन्होंने अपना बहुमत का गणित मुलायम सिंह यादव की सपा के 20 सांसदों के भरोसे लगाया था, जिन्होंने उनसे लोकसभा में समर्थन करने का वादा किया था. इस दौरान मुलायम सिंह यादव के पुराने समाजवादी साथी जॉर्ज फर्नांडीस ने उनकी मुलाकात जया जेटली के घर लाल कृष्ण आडवाणी से करा दी. इस बैठक में तय हुआ कि मुलायम समर्थन नहीं देंगे और भाजपा दोबारा सरकार बनाने का दावा नहीं करेगी. देश में नए सिरे से चुनाव कराए जाएंगे. इससे सोनिया गांधी का पूरा गणित बिगड़ गया. दोबारा चुनाव हुए और भाजपा की सरकार फिर बनी, जो करीब एक साल चली. इससे भाजपा केंद्रीय राजनीति में मजबूत हो गई.
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राष्ट्रपति चुनाव में एपीजे अब्दुल कलाम का किया समर्थन
मुलायम सिंह ने उस समय भी सबको चौंका दिया, जब साल 2002 में भाजपा नेतृत्व वाले NDA ने 'मिसाइलमैन' एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया. वामपंथी दलों ने उनके खिलाफ कैप्टन लक्ष्मी सहगल को उतारा और पूरे विपक्ष से सहयोग मांगा. मुलायम ने विपक्ष के उम्मीदवार के बजाय कलाम का समर्थन किया. नतीजतन देश में पहली बार एक गैरराजनीतिक व्यक्ति को देश के सर्वोच्च पद पर चुना गया.
#WATCH | From ANI archives - The life and times of Samajwadi Party supremo and former Uttar Pradesh CM Mulayam Singh Yadav pic.twitter.com/Ze40gJoero
— ANI (@ANI) October 10, 2022
UPA सरकार बचाई, देश को परमाणु शक्ति बनाया
देश साल 1998 में परमाणु बम का परीक्षण कर चुका था, लेकिन उसके पास परमाणु परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त यूरेनियम की सप्लाई नहीं थी. साल 2008 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की UPA सरकार ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता करने का निर्णय लिया, जिसके खिलाफ वामपंथी दलों ने सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी. इस मौके पर मुलायम ने बाहर से समर्थन देकर UPA की सरकार बचाई. इससे देश के परमाणु शक्ति बनने की राह खुली. साथ ही भारत-अमेरिका की नई दोस्ती की जमीन तैयार हुई. इसी जमीन पर आज दोनों देश वैश्विक मंचों पर एकसाथ दिखाई देते हैं.
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सपा की बागडोर अखिलेश को सौंपने की गलती
उत्तर प्रदेश में सपा ने साल 2012 में विधानसभा चुनाव में 403 में से 226 सीट जीतकर एकतरफा बहुमत हासिल किया. मुलायम ने चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बजाय पार्टी को युवा नेतृत्व देने को तरजीह दी और अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया. हालांकि इसे बाद में उनकी गलती माना गया. इस फैसले से नाराज होकर मुलायम के छोटे भाई शिवपाल यादव और सबसे वफादार कार्यकर्ता अमर सिंह ने पार्टी छोड़ दी. इससे समाजवादी पार्टी कमजोर हो गई, जिसका लाभ भाजपा को मिला. नतीजतन उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार सरकार बना चुकी भाजपा स्थानीय राजनीति में बिना चुनौती के खड़ी दिखाई दे रही है.
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