Mulayam Singh Yadav का 'चरखा दांव' क्या था, जिसे कुश्ती में उनका ट्रेडमार्क माना जाता है

कुलदीप पंवार | Updated:Oct 11, 2022, 07:06 AM IST

Mulayam Singh Yadav राजनीतिक अखाड़े पहलवान बनने के बाद भी कुश्ती और पहलवानों को नहीं भूले थे.

डीएनए हिंदी: देश की राजनीति पर लंबे अरसे तक अपनी छाप छोड़ने वाले और उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य के 3 बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का सोमवार को निधन हो गया. 82 साल के मुलायम सिंह को राजनीतिक विश्लेषक से लेकर उनके करीबी व विपक्षी, सभी 'नेताजी' के अलावा जिस एक और नाम से जानते थे, वो नाम 'पहलवान जी' था. महज 28 साल की उम्र में राजनीतिक अखाड़े में 'धोबीपाट' लगाना शुरू कर देने वाले मुलायम सिंह इससे पहले कुश्ती के अखाड़े के भी जोरदार पहलवान रहे थे. उनके कुश्ती लड़ने के दौर के किस्से भी बहुत चर्चित हैं. कहा जाता है कि कितना भी तगड़ा पहलवान हो, यदि एक बार मुलायम के हाथ उसकी कमर तक पहुंच गए तो उसका चित होना तय है. कुश्ती के अखाड़े के यही दांव-पेच इस्तेमाल कर वे राजनीतिक अखाड़े के भी सूरमा साबित हुए. ऐसा ही एक दांव 'चरखा' भी था, जो मुलायम की कुश्ती और उनकी राजनीति, दोनों में जमकर चर्चित रहा. 

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क्या होता है चरखा दांव और इसे कैसे लगाया जाता है

मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे इंटरनेशनल पहलवान शोकेंद्र तोमर ने DNA से बताया कि चरखा दांव में कोई भी पहलवान अपने विपक्षी की गर्दन और पैर, दोनों एक ही वक्त में काबू में कर लेता है. इसके बाद एक हाथ से गर्दन को उल्टा दबाया जाता, जबकि दूसरे हाथ से पैर गर्दन की तरफ खींचे जाते हैं. इससे विपक्षी पहलवान सूत कातने वाले चरखे के बड़े पहिए जैसा गोल हो जाता है. फिर पहलवान चरखे की पोजिशन में विपक्षी पहलवान को लॉक कर लेता है और उसे हार मानने पर मजबूर कर देता है.

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शोकेंद्र के मुताबिक, मुलायम सिंह इसी चरखा दांव के माहिर थे. उनके साथ के लोग बताते थे कि मिट्टी के दंगल में मुलायम सिंह बड़े-बड़े पहलवान को इस दांव से चित कर देते थे. राजनीति में भी उनके कदम इस चरखा दांव जैसे ही होते थे, जिसमें विपक्षी दल फंसकर रह जाते थे.

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सैफई महोत्सव में चरखा दांव लगाने पर मिलता था अतिरिक्त इनाम

शोकेंद्र बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई में होने वाले सालाना महोत्सव में कुश्ती का दंगल खास आकर्षण होता था, जिनमें जीतने वाले पहलवानों को अच्छा इनाम मिलता था. लेकिन इस दंगल में चरखा दांव लगाने वाले पहलवान के लिए अलग से इनाम की व्यवस्था रखी जाती थी. शोकेंद्र के मुताबिक, जो पहलवान चरखा दांव लगाकर कुश्ती जीतता था, उसे मुलायम सिंह खुद 5,100 रुपये का नगद इनाम देते थे.

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जब पहलवानों ने कर ली आपस साठगांठ

शोकेंद्र सैफई महोत्सव में चरखा दांव से जुड़ा एक किस्सा भी सुनाते हैं. शोकेंद्र के मुताबिक, दो पहलवानों ने आपस में तय कर लिया कि एक पहलवान चरखा दांव लगाएगा और दूसरा हार जाएगा. इससे कुश्ती जीतने के इनाम के साथ ही 5,100 रुपये का नगद दोनों आपस में बांट लेंगे. कुश्ती खत्म होने पर खलीफा (कोच) ने मुलायम से कहा कि इन पहलवानों को इनाम नहीं दीजिएगा. ये आपस में मिलकर जीते हैं. शोकेंद्र के मुताबिक, इस पर मुलायम हंसकर बोले कि राजनीति में लोग कदम-कदम पर साठगांठ करके जीतते हैं तो इनके कुश्ती के अखाड़े में ऐसा करने में क्या गलत है. इसके बाद उन्होंने दोनों पहलवानों को इनाम देकर ही अखाड़े से रवाना किया.

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बेहद लगाव रखते थे मुलायम पहलवानों के साथ

इंटरनेशनल लेवल पर कई बार देश का नाम रोशन करने वाले शोकेंद्र तोमर उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के मलकपुर गांव के निवासी हैं. उन्हें साल 2004 में अर्जुन अवॉर्ड भी मिल चुका है. पहलवानी छोड़ने के बाद समाजवादी पार्टी के मेंबर बन गए शोकेंद्र दो बार विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. शोकेंद्र कहते हैं कि पहलवानों से नेताजी को बेहद लगाव था. भीड़ में दूर खड़े किसी भी पहलवान को वह महज टूटे कानों से पहचानकर आगे बुलवा लिया करते थे और फिर उससे बात जरूर करते थे. 

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शोकेंद्र का दावा है कि मुलायम के राज के दौरान ही उत्तर प्रदेश में पहलवानों को सबसे ज्यादा पुरस्कार मिले. साथ ही इस दौरान पहलवानों को सबसे ज्यादा स्पोर्ट्स कोटे की नौकरियां दी गईं.

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