मालवा के इस गांव के लोगों ने खाई कसम- पढ़ेंगे लिखेंगे लेकिन खेत ही जोतेंगे

Swatantra Mishra | Updated:Jun 09, 2022, 12:34 PM IST

देवास में बड़े पैमाने पर अनाज की पैदावार होने लगी और प्राइवेट वेयरहाउस बड़ी पैमाने पर बनाए गए हैं. फोटो: स्वतंत्र मिश्र 

Pond Culture in Dewas: तालाब बनने से पहले यहां अनाज के भंडारण के लिए दो ही गोदाम थे लेकिन अब करीब 150 अनाज के निजी गोदाम हैं.

डीएनए हिंदी: देवास में धरती का पेट पूरी तरह सूख गया था और इस पूरे इलाके को 'डार्क जोन' (Dark Zone) घोषित कर दिया गया था. देवास जिले में कलेक्टर के तौर पर तैनात हुए उमाकांत उमराव (Umakant Umrao) ने इस हालात को बदलने का बीड़ा उठाया और यहां तालाब संस्कृति जिंदा की. उमाकांत ने खेती की जमीन के 10 फीसदी हिस्से पर तालाब बनाने को लोगों को प्रेरित किया और एक-दो साल में हालात बदलने लग गए. दस बड़े किसानों को साथ लेकर शुरू की गई 'भागीरथ कृषक अभियान' (Bhagirath Krishak Abhiyan) आज दुनिया में तीसरे सबसे बड़े जल-संरक्षण के मिसाल के तौर पर गिनाया जाने लगा. 2011-12 में संयुक्त राष्ट्र ने देवास जिले में जल-संरक्षण के लिए तालाब संस्कृति को ज़िंदा किए जाने और उसे विस्तार दिए जाने को दुनिया में तीसरा श्रेष्ठ उदाहरण मान लिया है. मालवा की धरती के पेट में पानी लौट आया तो यहां लोगों की कहानियां बदलने लगी. यहां समृद्धियों की इबारत लिखी जाने लगी. यहां के गांवों से युवा शहर पढ़ने गए और वे अब लौटकर पढ़ाई पूरी कर गांव में खेती या इससे जुड़े व्यवसाय करना चाहते हैं.

तालाब बनने से पहले यहां अनाज के भंडारण के लिए दो ही गोदाम थे लेकिन अब करीब 150 अनाज के निजी गोदाम हैं. उमाकांत उमराव बताते हैं, "मैंने पाया कि यहां 100 बिगहा रकबा वाले किसान कर्ज़ में डूब चुके थे और यह देश का दूसरा विदर्भ बनने जा रहा था." तालाबों के निर्माण के बाद यहां बच्चे, बुजुर्ग और महिलाओं के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन आया. यही वजह है कि देवास की कहानियां सामाजिक-आर्थिक बदलाव की प्रेरक कहानियों में तब्दील होती चली गई.  

खेती फायदे की हुई तो गांव में ही बसने का लिया फैसला

पानी से आए बदलावों की कहानी समझने के लिए हम प्रेम सिंह खिंची के परिवार की कहानी आपसे साझा कर रहे हैं. देवास जिले के टोंक खुर्द ब्लॉक का टोंक कला गांव आगरा-मुंबई हाईवे से दो-तीन किलोमीटर दूर है. टूटे-फूटे रास्तों से होकर जब आप प्रेम सिंह खिंची के दरवाजे पर पहुंचेंगे तब आपको यह भ्रम होगा कि आप किसी शहर की कॉलोनी या सोसायटी में घुस आए हैं. एक ही अहाते में बिल्कुल एक जैसे पांच घर बने हुए हैं. ये घर देवास में तत्कालीन कलक्टर रहे उमाकांत उमराव द्वारा 2006 में शुरू किए गए ‘भागीरथ कृषि अभियान’ के तहत तालाबों के निर्माण के बाद आई समृद्घि के बाद बने हैं. इन घरों को बाहर से देखने पर पांचों भाइयों के परिवारों के बीच के प्रेम का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. इस परिवार की एक बड़ी खासियत यह है कि अच्छी नौकरी या अच्छी पढ़ाई या डिग्री हासिल करने के बाद भी इस परिवार के लोग खेती-किसानी से पूरी तरह जुड़े हुए हैं. इसकी बड़ी वजह तालाब से खेती के सिंचिंत रकबे में लगातार हो रहा इजाफा भी है. प्रेम सिंह खिंची कहते हैं, "यहां पानी के संकट की वजह से पशु-पक्षी नदारद हो गए थे लेकिन अब तालाब बनाए जाने की वजह से पक्षियों की कई प्रजातियां बड़ी संख्या में दिखने लगी हैं. अब आलम यह है कि कुछ बड़े किसानों का टर्न ओवर 18-20 करोड़ रुपए सालाना तक पहुंच चुका है जबकि छोटी जोत के किसान भी कुछ लाख रुपये तो साल के बचा ही लेते हैं.

कभी 10 फीसदी खेत भी नहीं थे सिंचिंत, अब 100 फीसदी सिंचिंत 

प्रेम सिंह और उनके परिवार के अन्य सदस्य भी यह मानते हैं कि उमाकांत उमराव ने किसानों को साथ लेकर भागीरथ कृषक अभियान की शुरुआत की थी और पानी हासिल करने के लिए तालाबों का निर्माण कार्य शुरू करवाया था. पानी जो हमारे लिए कभी दूर की कौड़ी हो चुका था और तब हमारे खेत 10-15 फीसदी ही सिंचिंत थे लेकिन अब तालाबों के निर्माण के बाद हमारे 100 फीसदी खेत सिंचिंत हो चुके हैं. हमारे लिए खेती अब घाटे का सौदा नहीं रह गई और यही वजह है कि हमारे बच्चे दूसरों की चाकरी करने से अच्छा खेती करना पसंद कर रहे  हैं.

युवाओं ने पढ़ाई की पूरी लेकिन खेती करने का लिया फैसला

प्रेम सिंह खिंची के बाद की पीढ़ी यानी उनके बेटे और भतीजे बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेकर भी खेती में रमे हैं. प्रेम सिंह के भाई उदय सिंह अपने घर की युवा पीढ़ी की खेती-किसानी में दिलचस्पी की वजह तालाब को मानते हैं. वे बताते हैं कि तालाब की वजह से अब हमारे खेत लगभग पूरी तरह सिंचिंत हो गए हैं. पहले हम साल में बारिश के बाद सिर्फ सोयाबीन की एक फसल ले पाते थे और अब गेहूं, डॉलर चना, टमाटर, मिर्ची, आंवला आदि जो चाहते हैं उगा लेते हैं.

इस इलाके में देवास के तत्कालीन जिलाधीश उमाकांत उमाराव के गढ़े गए नारों 'जल बचाओ, लाभ कमाओ' को जीने लगे हैं और हर रोज समृद्धि की नई इबारत लिखते चले जा रहे हैं. 
 

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