डीएनए हिंदी: 15 अगस्त हो या 26 जनवरी एक तराना हम जरूर सुनते हैं और वह है- 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा...' हालांकि, यह भी गौर करने की बात है कि यह तराना लिखने वाले इकबाल आगे जाकर द्विराष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया था. 21 अप्रैल उनकी पुण्यतिथि का दिन है. आइए इस मौके पर जानते हैं उनकी जिंदगी के कुछ दिलचस्प तथ्य.
व्यक्तित्व के हैं 2 विरोधाभासी छोर
इकबाल का जन्म 9 नवंबर 1877 और उनकी मृत्यु 21 अप्रैल 1938 को हुई थी. उनके व्यक्तित्व के 2 धुर विरोधाभासी छोर हैं. एक में वह गीत 'तराना-ए-हिंद (सारे जहां से अच्छा) लिखते नजर आते हैं तो दूसरे में द्विराष्ट्र के सिद्धांत की नींव डालते हैं. इकबाल अपने जीवन के आखिरी वर्षों में द्विराष्ट्र समर्थक बन गए थे और पाकिस्तान को अलग देश बनाने के शुरुआती समर्थकों में से थे.
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अलग देश पाकिस्तान के समर्थक बन गए
भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले इकबाल ने ही उठाया था. 1930 में इन्हीं के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की मांग उठाई थी. इसके बाद इन्होंने जिन्ना को भी मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था. इकबाल और जिन्ना ने बाद के सालों में पाकिस्तान की स्थापना के लिए काम किया था. इन्हें पाकिस्तान में राष्ट्रकवि माना जाता है. बतौर शायर इनकी प्रतिभा और योगदान की वजह से इन्हें अल्लामा इकबाल भी कहा जाता है.
पाकिस्तान के राष्ट्रकवि माने जाते हैं
1905 में अल्लामा इकबाल ने सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा गीत लिखा था. हालांकि, बाद में उनके विचार बदल गए थे और और 1930 में मुस्लिम लीग में दिया उनका अध्यक्षीय भाषण पाकिस्तान की नींव रखने वाला विचार माना जाता है. इकबाल शुरुआत में कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित थे और उन्होंने आजादी के संग्राम में भी हिस्सा लिया था. हालांकि, बाद में उनके विचार बदलने लगे थे और 1910 तक आते-आते उन्होंने तराना-ए-मिल्ली यानी कौमी तराना- 'चीनो-अरब हमारा, हिंदोस्तां हमारा. मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहां हमारा...' लिखा था.
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