Crime Investigation: नेपाल से है रेड लाइट एरिया में चलने वाला 'डर्टी बिजनेस' का खास कनेक्शन, वीडियो रिपोर्ट
नेपाल से चलता है मानव तस्करी का रैकेट
Exclusive Report: नेपाल से मानव तस्करी का रैकेट चलता है. पढ़िए सीनियर स्पेशल कॉररेस्पोंडेंट शैलेन्द्र पाण्डेय की खास रिपोर्ट...
डीएनए हिंदी: नेपाल हिमालय का देश है. कहते हैं कि हिमालय पर देवताओं का बसेरा है लेकिन इंसान की शक़्ल में यहां कुछ हैवान भी बसते हैं जो मासूमियत और बचपन का बड़ी बेरहमी से शिकार करते हैं. ये हैं ह्यूमन ट्रैफ़िकर्स यानि मानव तस्कर. मानव तस्करों का यह नेटवर्क भोली-भाली मासूम लड़कियों को अपने जाल में फंसा कर उन्हें वेश्यावृति की दलदल में धकेल देता है. अफसोस की बात यह है कि नेपाल में जिन लड़कियों को इस दलदल में धकेला जाता है, उनका बाजार भारत बन गया है, नेपाल से भारत तक फैले इस धंधे पर ज़ी न्यूज़ ने बड़ी पड़ताल की है. इस पड़ताल में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला 'डर्टी बिजनेस' सामने आया है.
ज़ी न्यूज की यह पड़ताल शुरु हुई दिल्ली से. एक अंडरकवर रिपोर्टर ने इस मानव तस्करी के नेटवर्क का पर्दाफाश करने के लिए खुफिया कैमरे के साथ नेपाली लड़कियों से जिस्मफरोशी कराने वाले दलालों से संपर्क साधना शुरू किया. इस पड़ताल में दिल्ली के कई पॉश इलाके, मसलन मालवीय नगर, मुनिरका, साकेत और मायापुरी की इज्जतदार बस्तियों में भी जिस्मफरोशी का रैकेट चलने का सबूत मिला. इज्जतदार बस्तियों से चल रहे जिस्मफरोशी के लगभग ऐसे सभी अड्डों में हमें नेपाली लड़कियां दिखाई दीं.
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सेक्स रैकेट के चंगुल में फंसी दो लड़कियों की दास्तान
दिल्ली से मिले इस सुराग के बाद हमने जब अपना रुख नेपाल की तरफ किया तो वहां हमारी मुलाकात भारत से वेश्यावृति के धंधे से बचाई गई एक लड़की से हुई. पहचान छुपाने के लिए हम उसे ममता नाम से बुलाएंगे. ममता ने हमें बताया कि किस तरह से उसे नेपाल से बरगला कर भारत में दिल्ली के मायापुरी में जिस्मफरोशी के एक अड्डे पर पहुंचा दिया गया. ममता को 14 साल की उम्र में धोखे से बेच दिया गया था. उसने बताया कि दिल्ली में उस पर किस तरह से जुल्म ढाए गए. ममता ने बताया, 'दिल्ली की मायापुरी गली नं. 2 में मेरे को अब भी पता है कि उस जगह ने मुझे बहुत दर्द दिया है. शारीरिक, मानसिक शोषण किया है. इसलिए मेरे को अभी भी याद है उस जगह का नाम. उस टाइम में मैं सिर्फ़ 14 साल की थी. मैंने तो सोचा था कि वो कुछ शॉप में लेकर जाएगा. मगर वो मुझे एक घर पर लेकर गया. अब पता चला कि वो ब्रॉथल (वेश्यालय) था. वहां बहुत नेपाली लड़कियां थीं'
ममता की तरह ही दर्दनाक कहानी एक और लड़की ने सुनाई जिसे हमने सलोनी नाम दिया है. सलोनी को एक नहीं बल्कि दो-दो बार बेचा गया. पहली बार सिर्फ 9 साल की उम्र में. कुछ वक्त बाद जब उसे आजाद कराया गया तब उसकी जो हमदर्द मिली उसने उसे दूसरी बार दोबारा जिस्म के दलदल में धकेल दिया. सलोनी की तब सिर्फ 11 साल की थी. सलोनी ने बताया कि कैसे उसे इस धंधे में धकेला गया.
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सलोनी ने बताया, "कोलकाता में एक पार्क है. मुझे पार्क का नाम पता नहीं, वहां एक आदमी आया मोटा सा. उसने आंटी को बहुत सारे पैसे दिए. मैंने देखा वो आदमी से पैसे लिया, फिर उस आदमी के साथ मुझे भेजा तो मैंने कहा कि नहीं जाऊंगी. वहां पर मैं बहुत रोई लेकिन फिर भी मुझे उसके साथ भेज दिया. वहां एक रूम में रखा गया. दो महीने के लिए रखा. वहां वह मेरी बहुत केयर किया करता था. घर में खाना और दूध, फल, मेडिसिन भी देता था मुझे. मैं तो छोटी थी न. वो दिखने के लिए, बड़ा दिखने के लिए मेरे शरीर का जो बनावट है, वो चेंजिंग के लिए मुझे बहुत सारे मेडिसिन दिया था".
सचमुच यह शर्मनाक था कि एक मासूम नाबालिग बच्ची के शरीर को वक्त से पहले बड़ा करने के लिए दवाओं का सहारा लिया गया. हालांकि, नेपाल में हमारी पड़ताल जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई और भी शर्मनाक खुलासे सामने आते गए. सलोनी और ममता दोनों ने ही बताया कि पहली बार उनके बलात्कार से पहले उन पर जुल्म ढाया गया, उन्हें डराया गया. ममता ने बताया कि कैसे एक दलाल और उसकी महिला साथी की मदद से एक उम्रदराज शख्स ने उसका बलात्कार किया. ममता दुखी हो कर अपने साथ हुए जुल्म को याद करती हैं, "मैं छोटी थी. वो बहुत ज़्यादा एजेड था. मैं उसको देखकर ही घबरा गई. मैं चिल्लाई, कराही. वो ड्रिंक करके बैठा था. फिर एक और लड़की जो नेपाल से ही थी. वो, दोनों लड़का-लड़की मिलकर मुझसे ज़बरदस्ती किया. मैं हैंडल ही नहीं कर सकी. बहुत ब्लीडिंग हो गई. मैं उस आदमी को कभी नहीं भूल सकती क्योंकि उसने मुझे इतना पेन दिया है"
सलोनी तो और भी छोटी थी जब उसके साथ पहली बार जबरदस्ती की गई. सलोनी का बलात्कार उस शख्स ने किया जिसकी साथी सलोनी को हमदर्दी जता कर भारत ले आई थी. सलोनी उस शख्स को अंकल कहती थी. वह बताती है, "वो बोला कि तुम्हें ऐसा ऐसा करना पड़ेगा, मैं बोली कि नहीं मैं नहीं करूंगी. वहां पर मुझे मारा पीटा, मैं बोली नहीं.तो उसने मारा पीटा. अंकल के साथ मुझे सेक्स करने के लिए बोला था, मैं नहीं मानी थी तो फिर अंकल कुछ भी नहीं होगा बोल कर मुझे उसी टाइम पर हार्ड ड्रिंक पिलाने लगा तो मैं नशे में पड़ गई तो मेरे साथ सेक्स किया, मैं नशे में थी, उसके बाद अगले दिन मेरा नशा उतर गया तो शरीर पर इतना चोट था , सिगरेट से जला हुआ हाथ और मेरा शरीर पर नीला-नीला निशान था, फिर उसने मुझे धमकी दिया कि जो बोलूंगी करना पड़ेगा नहीं तो तुझे मार कर फेंक दूंगी. मैं वहां पर मजबूर हो गई. मैं बोली कि ठीक है मैं करूंगी".
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क्लब, कैसीनो और डांस बार के आड़ में जिस्म का धंधा
बड़ी बात यह है कि नेपाली लड़कियों पर जुल्म का यह सिलसिला तब ही शुरू हो जाता है जब उन्हें नेपाल से अगवा किया जाता है या बरगला कर इस धंधे में धकेल दिया जाता है. सच तो यह है कि जिन भी नेपालियों लड़कियों को इस रैकेट में फंसाया जाता है उन सभी को भारत नहीं लाया जाता. मानव तस्करों का यह जाल इतना मजबूत है कि इसकी जड़ें नेपाल में भी बहुत गहराई तक पहुंच कर मजबूती से पैर जमा चुकी हैं. बहुत सी लड़कियों को नेपाल में ही सेक्स रैकेट के धंधे में डाल दिया गया है. ज़ी न्यूज के अंडर कवर रिपोर्टर की पड़ताल में ये सामने आया कि नेपाल की राजधानी काठमांडू का थमेल इलाका देह व्यापार का बड़ा सेंटर बन गया है. दरअसल, थमेल नेपाल की एक ऐसी दुनिया है जहां नाइट क्लब कीचमक-दमक, कैसीनो का आकर्षण सब मौजूद है लेकिन यह भी सच है कि इस चमक-दमक की आड़ में यहां जिस्म ख़रीदने और बेचने का धंधा भी चलता है. नेपाल में देह व्यापार ग़ैर-क़ानूनी है लेकिन, चोरी-छिपे इसका इंतज़ाम हो जाता है. वहां गली-गली में दलाल फैले हुए हैं जो ग्राहक मिलनेकी संभावना को सूंघते ही लड़कियों के लिए मोलभाव करने लगते हैं. ऐसे कई दलालों ने हमारे अंडरकवर रिपोर्टर को मोबाइल पर लड़कियों कापूरा कैटलॉग दिखाया.
दलालों के मोबाइल में नाबालिग लड़कियों की भी तस्वीर
हमारे रिपोर्टर ने मोबाइल पर दिखाए जा रहे लड़कियों के कैटलॉग में दिलचस्पी नहीं ली तो एक दलाल ने उसे लड़कियों को लाइव दिखाने की पेशकश भी कर दी.
ख़ुफ़िया कैमरे से अनजान दलाल हमारी टीम को एक डांस बार में ले गया जहां कई लड़कियों से हमारी मुलाकात भी कराई गई. महिलाओं और बच्चों की ट्रैफिंकिंग के खिलाफ काम कर रही एक संस्था AATWIN की कार्यकारी निदेशक बेनु माया गुरंग ने इस बारे में हमे बताया कि एंटरटेनमेंट सेक्टर, क्लब और डांस बार के बहाने सेक्स रैकेट चलाने वालों ने महिलाओं की ट्रैफ़िकिंग का बड़ा आसान तरीका ढूंढ निकाला. हालत यह है कि सेक्स टूरिज्म के मामले में नेपाल इस मामले में कुख्यात थाइलैंड से भी आगे निकल गया है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सेक्स वर्कर्स की संख्या के मामले में नेपाल थाइलैंड से भी आगे हैं. साल 2020 में थाइलैंड में क़रीब 43 हज़ार सेक्स वर्कर काम कर रही थीं. नेपाल में क़रीब 67 हज़ार सेक्स वर्कर्स सक्रिय थीं. बड़ा झटका तब लगता है जब इस धंधे के दलाल नाबालिग़ लड़कियां तक उपलब्ध कराने का वादा करते हैं. झकझोर देने वाली एक सच्चाई ये है कि शारीरिक शोषण के लिए कम उम्र नेपाली लड़कियों की मांग दुनिया के कई देशों में है. इस शर्मनाक कारोबार का मुख्य रास्ता भारत से होकर गुज़रता है. एक दलाल ने हमारे रिपोर्टर से पांच कम उम्र नेपाली लड़कियों को दिल्ली तक पहुंचाने का वादा किया.
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भारत-नेपाल का खुला बॉर्डर बना ट्रैफिकिंग का रास्ता
मानव तस्करी यानि ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग ड्रग्स और हथियारों के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है. नेपाल में भी इसकी जड़ें गहरी हैं. ग़रीबी और प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलते रहे देहाती इलाक़ों में सीधे-सादे लोग आसानी से ट्रैफ़िकिंग माफ़िया के शिकार बन जाते हैं. गोरखपुर में मानव सेवा संस्थान चलाने वाले राजेश मणि त्रिपाठी बताते हैं कि पहले घरेलू काम-काज के बहाने नेपाल से लड़कियां लाईं जाती थीं लेकिन अब कंप्यूटर ट्रेनिंग, इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स जैसे बहानों से लड़कियों को भारत तक पहुंचाया जाता है. इसके अलावा स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है. इस धंधे में सैकड़ों किलोमीटर लंबी भारत-नेपाल की खुली सीमा मददगार बन जाती है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के पास सोनौली बॉर्डर, बिहार के रक्सौल बॉर्डर जैसी जगहें मानव तस्करी के बड़े ट्रांजिट पॉइंट में बदल गए हैं.
नेपाल में मानव तस्कर मासूम बच्चियों को भी नहीं बख़्शते. एक अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक़ 7 साल की उम्र की लड़कियों को भी सॅक्स वर्कर बनाने के लिए उठा लिया जाता है. एक बार यौन शोषण के ठिकानों पर पहुंचने के बाद इन बच्चों के लिए शुरू होता है दिल को दहला देने वाली यातनाओं का अंतहीन सिलसिला. इस मामले में सलोनी ने बताया कि उसे हर रोज 10 से 20 जितने भी ग्राहक आते थे उन सबसे संबंध बनाना पड़ता था. ममता ने भी तस्दीक की कि उसे भी हर रोज करीब 10 से 20 ग्राहकों से संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता था. भारत में इन लड़कियों को वेश्यावृत्ति के लिए बदनाम इलाक़ों में ही नहीं बल्कि इज्जतदार इलाकों में चोरी-छिपे चलाए जाने वाले सेक्स रैकेट के ठिकानों पर भी रखा जाता है. देह व्यापार की दलदल में फंसी सेक्स वर्कर्स के लिए इस जाल से निकलना बहुत मुश्किल होता है. भारत में पुलिस और वेश्यावृत्तिके ख़िलाफ़ काम कर रही एनजीओ, पुलिस की मदद से ऐसी लड़कियों को जबरन धंधा करवाने वालों के चंगुल से आज़ाद कराती रहतीं हैं. राष्ट्रीयअपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में साल 2016 में 16 नेपाली लड़कियों को मानव तस्करों के चंगुल से आज़ाद कराया गया़. 2017 में 17, 2018 में 91 और 2019 में आज़ाद कराई गई सेक्स वर्कर्स का ये आँकड़ा 165 तक जा पहुँचा. कॉरोना महामारी के बावजूद साल2020 में मानव तस्करों के शिकंजे से 13 लड़कियों को छुड़ाया गया.
हालांकि, एक सच यह भी है कि सेक्स व्यापार की क़ैद से छूटने के बाद भी इन लड़कियों की यातना का दौर खत्म नहीं होता. ज्यादातर मामलों मेंआजादी के बाद इंसाफ मिलना और सम्मानजनक जिंदगी पाने का सपना, छलावा ही साबित होता है. सपने टूटने का दर्द इतना गहरा होता है कि कई बार सेक्स रैकेट से आजाद कराई गईं लड़कियां इंसाफ के लिए लंबी लड़ाई लड़ने के बजाए मानव तस्करों से समझौता कर लेतीं हैं. बेनु मायागुरंग बताती हैं कि लड़कियों को यह आसान लगता है कि वह इंसाफ के लिए 10 साल तक जंग लड़ने के बजाए और अगर इंसाफ मिले तो मानव तस्करों पर लगाए जा सकने वाले अधिकतम 2 लाख रुपए के जुर्माने से आधी रकम लेने के बजाए सीधे तस्कर से ही ज्यादा पैसे ले लें और चुप बैठ जाएं.
एक औरत जो जुल्म के आगे झुकी नहीं
जबरन वेश्यावृत्ति के नर्क में गुजारे गए साल किसी कम उम्र लड़की के तन और मन पर हमेशा के लिए गहरे ज़ख़्म छोड़ जाते हैं लेकिन सबके हौसलेनहीं टूटते. पीड़ितों में कुछ ऐसी भी होती हैं जो इस अपराध के ख़िलाफ़ जंग शुरू कर देती हैं. चरिमाया तमंग एक ऐसी ही महिला हैं जिन्हें 16 सालकी उम्र में सेक्स ट्रैफ़िकिंग में फंसाकर भारत में बेच दिया गया था. चरिमाया मुंबई के बदनाम इलाक़े कमाठीपुरा में 22 महीनों तक यौन शोषण काशिकार हुईं लेकिन आज वो इस अन्याय से लड़ने के लिए शक्ति समूह नाम की एक जानी-मानी संस्था चलाती हैं. उनका संगठन ट्रैफ़िकिंग की शिकार लड़कियों को सहारा देता है. उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाता है और समाज में सम्मान से जीने का रास्ता दिखाता है. शक्ति समूह क़रीब 500 लड़कियों को ट्रैफ़िकिंग के चंगुल से छुड़ा चुका है, 2000 लड़कियों के पुनरुत्थान के लिए काम कर रहा है और उसने सैकड़ों को उनकेपरिवार से मिलवाया है. चरिमाया को उनके इस कार्य के लिए कई पुरस्कार मिले हैं. उन्हें मैगसायसाय अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.
खतरों के बीच एक नई जिंदगी की उम्मीद
उनकी कोशिशों की बदौलत तन और मन के गहरे ज़ख़्म खा चुकी सैकड़ों लड़कियाँ आज सम्मान से ज़िंदगी जीने की कोशिश कर रही हैं. ममता औरसलोनी भी उनके संगठन की बदौलत सम्मानजनक जिंदगी जी रहीं हैं. ट्रैफिक होने के वक्त सिर्फ सातवीं क्लास तक पढ़ी ममता अब बीए पूरा करचुकी है और अब स्टॉफ मोबिलाइज़ेशन और मैनेजमेंट से जुड़ी अहम जिम्मेदारियां निभाती है. मामता ने इस बारे में खुशी-खुशी बताया, "अभी मैंबहुत ख़ुश हूँ. अभी मैंने शादी भी किया और मेरे हस्बॅण्ड को भी सब कुछ पता है फिर भी उसने मुझे स्वीकार किया." दूसरी तरफ सलोनी भी एक नईजिंदगी जी रही है, वह माउंटेन गाइड की ट्रेनिंग ले रही. सलोनी ने बताया " मैंने 5,500 (मीटर) का हिमालय चढ़ा है, अब 8,800 (मीटर) काचढ़ना है. नेपाल और शक्ति समूह का झंडा फहराकर ज़ोर से चिल्लाना है, तब मैं अपने सारे दुख भूल जाऊंगी." सलोनी और ममता को तो नईजिंदगी मिल चुकी है लेकिन चिंता की बात ये है कि नेपाल की सैकड़ों भोली-भाली लड़कियां अब भी ट्रैफ़िकर्स के निशाने पर हैं, जब तक नेपालऔर भारत की सरकारें इस अपराध को रोकने के और कारगर तरीक़े नहीं ढूँढ पातीं ये शर्मनाक धंधा बंद नहीं हो पाएगा.
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