Ramabai Ambedkar Death Anniversary: 'स्त्री शक्ति' जिसने बनाया आंबेडकर को 'बाबासाहेब'

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:May 26, 2022, 10:05 PM IST

बाबासाहेब के इस संघर्ष में रमाबाई ने अपनी आखिरी सांस तक उनका साथ दिया. बाबासाहेब ने भी अपने जीवन में रमाबाई के योगदान को बहुत अहम माना है.

डीएनए हिंदी: भारतीय संविधान के निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री डॉक्टर भीमराव अंबेडकर (B. R. Ambedkar) ने अपने जीवन में हर कदम पर चुनौतियों का सामना किया लेकिन वे कभी रुके नहीं. उनके इस सफर में कई लोगों ने उनका साथ भी दिया. जहां उनके शिक्षक ने उनसे प्रभावित होकर उन्हें अपना उपनाम दे दिया तो वहीं बड़ौदा के महाराजा सायाजीराव ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया. इन सबके बीच एक और नाम भी था जिसके जिक्र के बगैर बाबासाहेब की सफलता की कहानी अधूरी है, वो है बाबासाहेब की पत्नी रमाबाई अंबेडकर (Ramabai Ambedkar). 

भीमराव प्यार से बुलाते थे 'रामू'
7 फरवरी 1898 को जन्मी रमा के परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था. ऐसे में उनके मामा ने उनकी और उनके भाई-बहनों की परवरिश की थी. 1906 में महज 9 वर्ष की उम्र में उनकी शादी 11 वर्षीय भीमराव से करा दी गई. रमाबाई को भीमराव प्यार से 'रामू' बुलाते थे तो वहीं वे उन्हें 'साहेब' कहकर पुकारा करती थीं. 

शादी के तुरंत बाद से ही रमाबाई को यह समझ में आ गया था कि पिछड़े तबके का उद्धार ही बाबासाहेब के जीवन का मुख्य मकसद है. वो ये भी जानती थी कि ऐसा केवल तब ही संभव है जब बाबासाहेब खुद इतने शिक्षित हों कि पूरे देश में शिक्षा की मशाल जला सकें. 

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आखिरी सांस तक दिया साथ
बाबासाहेब के इस संघर्ष में रमाबाई ने अपनी आखिरी सांस तक उनका साथ दिया. वहीं, बाबासाहेब ने भी अपने जीवन में रमाबाई के योगदान को बहुत अहम माना है. उन्होंने अपनी किताब थॉट्स ऑन पाकिस्तान (Thoughts on Pakistan) को रमाबाई को समर्पित करते हुए लिखा कि उन्हें 'मामूली से भीमा से डॉक्टर अंबेडकर बनाने का श्रेय रमाबाई को ही जाता है'. हर हालात में रमाबाई बाबासाहेब का साथ देती रहीं. वे बरसो अपनी शिक्षा के लिए बाहर रहे और ऐसे समय में लोगों की बातें सुनते हुए भी रमाबाई ने घर को संभाले रखा. रमा हर छोटा-बड़ा काम कर आजीविका चलातीं और बाबासाहेब की शिक्षा का खर्च जुटाने में भी उनकी मदद करती रहीं.  

बाबासाहेब के और इस देश के लोगों के प्रति जो समर्पण रमाबाई का था, उसे देखते हुए कई लेखकों ने उन्हें 'त्यागवंती रमाई' का नाम दिया था. आज बाबासाहेब आंबेडकर की तरह उनके जीवन पर भी नाटक और फिल्में बनी हैं, उनके नाम पर देश के कई संस्थानों के नाम भी रखे गए हैं. इसके अलावा उनके ऊपर रमाई, त्यागवंती, प्रिय रामू जैसे शीर्षकों से किताबें भी लिखी गई हैं. 

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29 वर्ष तक बाबासाहेब का साथ निभाने के बाद साल 1935 में 27 मई को एक लंबी बीमारी के चलते रमाबाई का निधन हो गया. अपने त्याग और तपस्या के बल पर उन्होंने परिवार, समाज और देश के लिए एक आदर्श स्त्री के मिसाल रखी. उनकी जीवन गाथा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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