डीएनए हिंदी: निर्माण और विनाश की प्रक्रिया से जूझती धरती पर हमेशा से ही ऑक्सीजन नहीं था. शोधार्थियों का मानना है कि भविष्य में धरती पर मीथेन गैस की अधिकता हो जाएगी, वहीं ऑक्सीजन कम होने लगेगा. हालांकि ऐसा हमारी जिंदगी में नहीं होगा. अगर तथ्यात्मक रूप से कहें तो कम से कम 1 अरब साल या उससे ज्यादा वक्त ऐसा होने में लग सकता है.
नेचर जियोसाइंस पर प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक अगर एक बार धरती पर ऑक्सीजन स्तर का घटना शुरू हो गया तो यह लगातार होता रहेगा. इसकी दर भी बेहद तेज होगी. यह बदलाव धरती को 2 से 4 अरब वर्ष पहले की दुनिया में लौटा देगा, जब ग्रेड ऑक्सीडेशन इवेंट (GOE) के दौर से धरती गुजर रही थी.
लगातार बढ़ रहे सौर्य विकिरण (Solar Radiation) की वजह से सतह पर मौजूद जलीय वातावरण प्रभावित होगा वहीं लगभग 2 अरब वर्षों बाद यह धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा. शोधार्थियों ने इस स्टडी पर काम करने के दौरान अलग-अलग विस्तृत मॉडलों का प्रयोग किया, जिससे धरती पर मौजूद जीव-मंडल को समझा जा सके.
धरती पर बढ़ती जाएगी सूर्य के किरणों की तीव्रता
शोध के दौरान सौर विकिरण पर भी स्टडी की गई. इस बात पर भी गौर किया गया कि धरती पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों की तीव्रता धीरे-धीरे बढ़ती जाएगी. स्टडी में कम कार्बन डाइ ऑक्साइड की वजह से कुछ पौधों पर प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रियाओं के असर का भी अध्यन किया गया, वहीं कुछ ऑक्सीजन उत्पादिन करने वाली प्रजातियों पर भी नजर रखी गई.
स्टडी में शामिल वैज्ञानिकों का मानना है कि वायुमंडलीय ऑक्सीजन की धरती जैसे ग्रहों पर मौजूदगी लगातार बनी हुई है. अब लगातार मिल रहे ऐसे संकेतकों की वजह से दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावना तलाशने के मानवीय प्रयास तेज हो सकते हैं.
ऑक्सीजन के विकल्प पर सोचने की है जरूरत!
रिसर्चर्स का मानना है कि अंतरिक्ष में जीवन की संभावना तलाशने के लिए हमें ऑक्सीजन से इतर अन्य जैविक लक्षणों के विकल्पों पर ध्यान देना होगा. नेचर जियोसाइंस पर प्रकाशित यह रिपोर्ट नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के NExSS (नेक्सस फॉर एक्सोप्लेनेट सिस्टम साइंस) पहल का हिस्सा है, जिसका मकसद पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर जीवन की मौजूदगी की संभावना तलाशनी है. वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक पृथ्वी की जीवन अवधि, केवल 20 से 30 फीसदी ही रह सकती है कि अगर धरती से इंसान और अन्य प्रजातियों का लोप हो जाए. हालांकि सूक्ष्मजीवों की मौजूदगी धरती पर जारी रह सकती है.