डीएनए हिंदी: स्टार्टअप की दुनिया इन दिनों गुलज़ार है. देश के युवा अपने आइडियाज को लेकर जी-जान से मेहनत कर रहे हैं. उन्हें सरकार से सहयोग मिल रहा है और दुनिया भर में भारत का नाम हो रहा है. ऐसी ही एक खबर आई है झीलों के शहर उदयपुर से. उदयपुर के एक स्टार्ट एंगिरस ने दुनिया के बेहतरीन स्टार्टअप्स से जुड़ी प्रतियोगिता में दूसरा स्थान हासिल किया है.
चौथी वार्षिक TIE यूनिवर्सिटी ग्लोबल पिच प्रतियोगिता में तीन महाद्वीपों के आठ देशों से 30 विजेता टीमों ने हिस्सा लिया था. इसमें उदयपुर के स्टार्टअप एंगिरस को दूसरा स्थान मिला है. एंगिरस सस्टेनेबल और इकोफ्रेंडली ईंटे बनाने के आइडिया पर काम कर रहा है.
क्या है स्टार्टअप एंगिरस
एंगिरस (Angirus) एक इनोवेटिव सर्कुलर इकॉनमी स्टार्टअप है.ये स्टार्टअप लाइटवेट और डैम्पप्रूफ ईंटें बनाता है. इसके लिए 100% वेस्ट मैटेरियल का इस्तेामल किया जाता है. कुंजप्रीत बताती हैं, 'हम इन ईंटों को ब्रिक्स नहीं व्रिक्स कहते हैं.व्रिक्स इसलिए क्योंकि इन्हें बनाने 20 प्रतिशत तक की वर्क कोस्ट कम होती है. हम ईंट बनाने वाली इंडस्ट्री को एक सस्टेनेबल अल्ट्रानेट देना चाहते हैं. फिलहाल हमें देश भर से सैंपल ऑर्डर मिल रहे हैं.ग्रीन बिल्डिंग की इस प्रैक्टिस से भविष्य में ईंट बनाने के दौरान होने वाले प्रदूषण और प्लास्टिव वेस्ट दोनों की समस्या को कम किया जा सकता है.
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कैसे हुई शुरुआत
इस स्टार्टअप की CEO हैं कुंजप्रीत अरोड़ा. कुंजप्रीत ने सन् 2019 में इस आइडिया पर काम करना शुरू किया था. वह उस वक्त सिविल इंजीनियरिंग के थर्ड ईयर में थीं. प्लास्टिक वेस्ट को कैसे कम किया जा सकता है? उदयपुर में मार्बल वेस्ट की समस्या का क्या उपाय है? मार्बल वेस्ट से झीले नष्ट हो रही हैं, इनके लिए कुछ करना चाहिए. ऐसे सवाल औऱ सोच कुंजप्रीत को इस आइडिया की तरफ ले गए. आइडिया ये था कि प्लास्टिक वेस्ट और मार्बल वेस्ट को मिलाकर ईंटें बनाई जाएं. इससे वेस्ट की समस्या भी खत्म होगी और ये ईंटें भविष्य में मजबूत और ईकोफ्रेंडली ढांचे बनाने का काम करेंगी.
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पहली ईंट बनीं कॉलेज लैब में
पढ़ाई के दौरान आइडिया तो आ गया, लेकिन क्या करना है ये पता नहीं था. ऐसे में पहला एक्सपेरीमेंट कॉलेज की लैब में ही किया. यहां अपने दोस्तों के साथ मिलकर प्लास्टिक को मार्बल वेस्ट के साथ मेल्ट करके ईंट का ढांचा बनाने की कोशिश की गई. ऐसा लगा कि ये आइडिया काम कर सकता है. मगर इसे आगे बढ़ाने के लिए मशीनरी नहीं थी. मशीनरी का जुगाड़ हुआ आईआईटी मद्रास से. यहां आयोजित कार्बन जीरो चैलेंज में हिस्सा लिया तो प्राइज भी मिल गया. प्राइज में मिले पूरे 5 लाख रुपये से मशीनरी का सेटअप लगाया गया. कुंजप्रीत बताती हैं, 'अब हम 70-80 लाख की फंडिंग जुटा चुके हैं. स्टार्टअप इंडिया से भी हमें 10 लाख की फंडिंग मिली है.
पापा से मिली प्रेरणा
सिर्फ 24 साल की उम्र में कुंजप्रीत जो मिसाल कायम कर रही हैं, उसकी प्रेरणा उन्हें अपने पापा से मिली. उनके पापा सिविल कॉन्ट्रेक्टर हैं. मम्मी हाउसवाइफ हैं और दो छोटे भाई-बहन हैं. कुंजप्रीत हमेशा से बिल्डिंग डेवलपमेंट की दिशा में कुछ करना चाहती थी. आज वह अपने स्टार्टअप के जरिए इसी सपने को पूरा कर रही हैं.
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