डीएनए हिंदी: इतिहास के किसी कालखंड के किसी व्यवहार को अभ्यास में लगातार बनाकर रखा जाए तो वह धीरे-धीरे संस्कृति का हिस्सा बन जाता है. अगर वह व्यवहार नकारात्मक और अतार्किक हो तो निश्चित तौर पर बहुत पीड़ादायी साबित हो सकता है. इस बात का अंदाजा दिल्ली के द्वारका में घटी एक घटना से लगाया जा सकता है. एक भारतीय दंपती अपनी तीन वर्षीय बेटी के साथ अपार्टमेंट की छठी मंजिल से लिफ्ट के जरिये नीचे उतर रहे थे. लिफ्ट चौथी मंजिल पर रुकी और एक कीनियाई जोड़े के लिफ्ट में प्रवेश करते ही तीन वर्षीय बच्ची अपनी मां की छाती से चिपककर फुसफुसाई और कहा- ममा! मॉन्स्टर आ गया. जाहिर सी बात है कि भारतीय दंपति डर और शर्म से गड़ गए. यह कहानी सुनाते हुए बच्ची की मां ने गहरी सांस ली और कहा- ''शुक्र है कि मेरी बेटी की आवाज कीनियाई कपल ने नहीं सुनी. अन्यथा हम पर नस्लवाद का आरोप भी लग सकता था.''
बच्चों के सीरियल्स भी रंगभेद से भरे
आपकी बेटी काली त्वचा वाले कीनियाई कपल से क्यों डर गई? आपकी बेटी ने काली त्वचा वाले लोगों को देखकर दैत्य होने का अनुमान क्यों लगाया? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद मेरे मन में भी यह सवाल उठा कि इतनी छोटी बच्ची के मन में काले लोग दैत्य होते हैं, यह ख्याल कैसे आया होगा? उन्होंने कहा कि मैंने इसके बाद अपनी बेटी की कॉमिक्स बुक और रीडिंग बुक उलटने-पुलटने लगी. मैंने उसके साथ बैठकर टीवी चैनलों पर उसके पसंदीदा सीरियल्स देखने लगी. मुझे पता चला कि बच्चों के कार्टून्स और सीरियल्स देखकर मेरी बेटी के मन में डर पैदा हो गया है. मैंने पाया कि सीरियल्स में राक्षस, गुंडे, बदमाश, विलेन का रंग अक्सर काला ही दिखाया जाता है.
त्वचा चमकाने वाली क्रीम का बाजार
टीवी और सिनेमा के अलावे हमारे यहां गोरेपन को सुंदरता से जोड़कर देखने की आदत सी डल चुकी है. त्वचा के गोरेपन के लिए बहुत से क्रीम और सौंदर्य प्रसाधन के सामान खरीदे और बेचे जाते हैं. काली त्वचा से मुक्ति पाने की कामना की जाती है. यही वजह है कि सौंदर्य प्रसाधन का बाजार अरबों-खरबों का हो चुका है. त्वचा के रंग को लेकर अबोध बच्चे भी अब असहजता महसूस करते हुए अक्सर दिख जाते हैं. कई बार यह भी देखा जाता है कि बच्चे काले रंग के लोगों की गोद में आने तक के लिए ना सिर्फ मना कर देते हैं बल्कि उनसे डरकर अपने मां-बाप की गोद में चिपके रहते हैं.
बहुत पहले से 'नीग्रोफोबिया' अस्तित्व में है
विश्व स्तर पर काली त्वचा से डर के बने माहौल के लिए 'नीग्रोफोबिया' शब्द अस्तित्व में हैं. नीग्रोफोबिया शब्द नीग्रो और फोबिया के मेल से बना है. इस शब्द का मतलब नीग्रो (नाइजर मतलब काला होता है और अफ्रीका के नाईजीरिया में रहने वाली प्रजाति को नाइजर बुलाते हैं) से घृणा करने वाला या डरने वाले से लगाया जाता है. इस शब्द की उत्पत्ति 1810-20 के आसपास हुई थी, जब दुनिया में गोरी चमड़ी वाले काली चमड़ी से बहुत ज्यादा घृणा करते थे. इसी अवधि के दरम्यान अमेरिका में तैराकी एक नये खेल के रूप में स्थापित हो रहा था. इस समय स्विमिंग पूल के इलाके में अफ्रीकी-अमेरिकियों का प्रवेश प्रतिबंधित था. हाल ही में हुए एक सर्वे में इसका नतीजा यह सामने आया कि आज 70% अफ्रीकी-अमेरिकी बच्चे तैरना नहीं जानते हैं. वहीं 42 % गोरे अमेरिकी बच्चे तैरना जानते हैं.
'खलनायक काले रंग और बड़े दांत वाले ही होते हैं'
इस बारे में प्रसिद्ध मनोचिकित्सक विनय कुमार कहते हैं- हमारे पुराने और आधुनिक दोनों ही मिथकों में राक्षस, दैत्य और खलनायक को काला, बड़े-बड़े दांतों वाला, सिंग वाला दिखाया गया है. वहीं एक-दो देवताओं को छोड़कर सभी देवताओं को गोरी चमड़ी वाला दिखाया गया है. उनका कहना है कि नकारात्मकता लंबे समय तक हमारे अभ्यास में बने रहने से वह हमारे जिंस में शामिल हो जाता है. रंग और नस्ल हमारी अवचेतना का हिस्सा है. बच्चे अपने व्यवहार को प्रकट कर देते हैं लेकिन बड़े अपने व्यवहार पर नियंत्रण रख पाने में कामयाब होते हैं.