जब Sonia Gandhi बनी थीं पहली बार Congress की अध्यक्ष, टूट के कगार पर थी पार्टी 

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Mar 14, 2022, 02:37 PM IST

when Sonia gandhi become congress president first time party was on the verge of collapse

राजीव गांधी की 1991 में एक हादसे में मौत के बाद कुछ साल तक नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी जैसे वरिष्ठ नेताओं के हाथ में पार्टी की कमान थी.

डीएनए हिंदीः उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के निशाराजनक प्रदर्शन को लेकर कांग्रेस (Congress) आलाकमान में मंथन जारी है. एक बार फिर कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर सवाल उठने लगे हैं. पार्टी बैठक में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने अपने इस्तीफे की पेशकश की लेकिन उसे नामंजूर कर दिया गया. पिछले काफी समय से यह कुर्सी गांधी परिवार के पास ही रही है. पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी की 1991 में एक हादसे में मौत के बाद कुछ साल तक नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी जैसे वरिष्ठ नेताओं के हाथ में पार्टी की कमान थी. अंतर्कलह के चलते कांग्रेसियों के कई बड़े नेताओं की मांग पर सोनिया गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पदभार संभाला था. इसके बाद वह सबसे लंबे समय तक कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं और 2017 में राहुल गांधी की ताजपोशी की गई लेकिन वह दो साल ही अध्यक्ष रहे और 2019 में पार्टी की करारी हार के बाद पद छोड़ दिया. इस पर सोनिया गांधी को एक बार फिर हॉट सीट पर लौटना पड़ा. पढ़ें आरती राय की विशेष रिपोर्ट

1998 में पहली बार बनीं अध्यक्ष
जब अंदरूनी कलह और अनिश्चितता के कारण देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस राजीव गांधी की हत्या के बाद बुरे दौर से गुज़र रही थी तब अचानक से कांग्रेस की सत्ता की कमान 14  मार्च 1998 को सोनिया गांधी ने संभाली. उस वक्त कांग्रेस सिर्फ चार राज्य मध्य प्रदेश, उड़ीसा, मिजोरम और नागालैंड में सिमटकर रह गई थी. पार्टी के पास लोकसभा में 141 सांसदों की ही संख्या थी.  

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गौरतलब है कि साल 1991 में अपने पति और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी में सक्रिय भूमिका के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. हालांकि कुछ सालों बाद उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के आग्रह पर 1997 में पार्टी के कोलकाता के अधिवेशन में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता हासिल की और कुछ महीने के बाद सर्वसम्मति से सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष चुन ली गईं. 

विदेशी मूल का उठा मुद्दा
विदेश में पली-बढ़ी सोनिया गांधी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से शादी के बाद भारत आईं. हमेशा से ही सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा पार्टी और देश में उठता रहा है. सोनिया के अध्यक्ष बनने के बाद भी एक साल बाद 15 मई 1999 को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर की तरफ से ये उठाया गया. जिसको लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा ये मुद्दा उठाने और उनके प्रधानमंत्री पद देने का विरोध करने के बाद सोनिया गांधी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. 

सोनिया ने लिखा भावुक पत्र
सोनिया ने कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) को लिखे पत्र मे कहा  “हालांकि, मैं विदेशी धरती पर पैदा हुई हूं, मैंने भारत को अपने देश चुना है और आखिरी सांस तक भारतीय ही रहूंगी. भारत मेरी मातृभूमि है और यह मुझे अपने जीवन से ज्यादा प्यारी है.” 

सोनिया के इस कदम के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जोरदार प्रदर्शन किया और भूख हड़ताल पर बैठ गए. इसके बाद शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर को 20 मई को पार्टी से निलंबित किया गया और सोनिया ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया. कांग्रेस कार्यसमिति को 24 मई 1999 को उनके फैसले के बारे में बता दिया गया. उसके अगले ही दिन सोनिया को फिर से पार्टी अध्यक्ष के स्वागत में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का विशेष सत्र बुलाया गया.

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सोनिया को मुलायम के यू-टर्न ने दिया झटका 
17 अप्रैल 1999 को महज एक वोट से केन्द्र की भाजपा की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के गिरने के बाद सोनिया गांधी ने 21 अप्रैल को राष्ट्रपति केआर नारायणन से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा ठोका. उन्होंने राष्ट्रपति भवन में नारायणन से मिलने के बाद कहा - “हमारे पास 272 का आंकड़ा है और कुछ और लोग हमारे साथ आ रहे हैं।” लेकिन, समाजवादी पार्टी के उस वक्त के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने यू-टर्न लेकर कांग्रेस का समर्थन न करने की घोषणा कर दी. यह सोनिया गांधी के लिए बड़ी झटका था. वह मुलायम सिंह यादव और लेफ्ट पार्टी के समर्थन से सरकार बनाना चाहती थीं लेकिन मुलायम सिंह और सोनिया गांधी के बीच प्रधानमंत्री पद के उमीदवार को लेकर बात नहीं बन पायी थी. मुलायम सिंह जहां एक तरफ कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता ज्योति बसु को PM बनाना चाहते थे वहीं सोनिया ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था. 

सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली चुनावी सफलता
साल 2004 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सबसे लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरे और भाजपा की अगुवाई वाला एनडीए एक बड़े दल के तौर पर सरकार बनाता दिख रहा था लेकिन, सोनिया और कांग्रेस के गठबंधन के दलों  ने NDA के "फील गुड" और इंडिया शाइनिंग की हवा निकाल कर रख दी. यह सोनिया गांधी का बतौर पार्टी अध्यक्ष पहला प्रयास था जिसमें संयुक्त प्रगतिशील सरकार (UPA) के बैनर तले कई छोटी क्षेत्रीय पार्टियां एक साथ आईं. सोनिया के पहले एक्सपेरिमेंट ने ही कांग्रेस में नई जान फूंक दी और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाई. जिसने 2004 से लेकर 2014 तक देश की कमान को संभाला.       

लगातार कमजोर हो रही कांग्रेस
लगातार दो बार 2014 और 2019 कांग्रेस और UPA के गठबंधन की भारी हार के बाद 2017  से 2019  तक बतौर ऑल इंडिया कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सोनिया गांधी के पुत्र और कांग्रेस लीडर राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से अंतर्कलह के चलते इस्तीफा दिया. राहुल गांधी के इस्तीफे और कांग्रेस की हार के तुरंत बाद सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर एक बार फिर कांग्रेस की  कमान संभाली.  

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सोनिया गांधी ने बनाया रिकॉर्ड
कांग्रेस भले ही इन दिनों राज्यों में उठापटक और नेतृत्व के संकट से जूझ रही है, लेकिन इस बीच अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी की मुखिया के तौर पर रिकॉर्ड बना दिया है. सोनिया गांधी अब तक करीब 22  साल कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी हैं. यह गांधी-नेहरू परिवार के अन्य सभी सदस्यों के कार्यकाल को जोड़ लें तो उससे भी ज्यादा है. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और राहुल गांधी मिलकर भी करीब 21 साल ही पार्टी अध्यक्ष रहे हैं. सोनिया गांधी कांग्रेस की सबसे ज्यादा लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाली पहली नेता बन गई हैं. हालांकि अगस्त 2019 के बाद से वह पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर कामकाज देख रही हैं. 

नेहरू 8 साल और इंदिरा गांधी 7 साल तक रहीं पार्टी की अध्यक्ष
भारत की आजादी से पहले और उसके बाद भी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे जवाहर लाल नेहरू पहली बार 1929 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे. इसके बाद 1930 में भी वह प्रेसिडेंट रहे और फिर 1936-37 और 1951 से 1954 के दौरान भी पार्टी के अध्यक्ष रहे. इस तरह वह कुल 8 सालों तक पार्टी के अध्यक्ष थे. उनकी बेटी और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की बात करें तो उन्हें पहली बार 1959 में पार्टी की अध्यक्ष बनने का मौका मिला था. इसके बाद वह फिर 1978 से 1984 तक पार्टी प्रमुख थीं. इस तरह उनके अध्यक्ष कार्यकाल के कुल 7 वर्ष थे. 

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