नई दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेला 2024 की इस बार थीम है 'बहुभाषी भारत : एक जीवंत परंपरा'. इस बार 40 देशों के 1000 से ज्यादा प्रकाशकों की मौजूदगी है यहां. लेकिन इन हजार प्रकाशकों के बीच एकमात्र प्रकाशक ऐसा है जो मूल रूप से आदिवासी साहित्य प्रकाशित करता है और अपनी किताबों के साथ मेले में मौजूद है.
झारखंड के रांची का यह प्रकाशक है प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन. प्रगति मैदान के हॉल नंबर 1 में 'आदिवासी फर्स्ट नेशंस बुक अखड़ा' के नाम से इनका स्टॉल है. इनके पास पूरे देश में बोली जाने वाली विभिन्न आदिवासी भाषा में से 35 से 40 भाषा की किताबें हैं. ये जानकारियां प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन के अश्विनी कुमार पंकज ने दीं.
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पंकज कहते हैं कि कई प्रकाशकों के पास छिटपुट किताबें आपको मिल सकती हैं. लेकिन सिर्फ आदिवासी साहित्य छापने वाला एकमात्र प्रकाशक हम ही हैं जो इस मेले में शरीक हुआ है. वे कहते हैं कि देश भर के आदिवासियों (फर्स्ट नेशंस) के साहित्य की लगभग 35-40 टाइटल की किताबें हमारे पास हैं. हमारे पास पूरे देश में बोली जाने वाली विभिन्न आदिवासी भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, हिंदी, मराठी और गुजराती भाषाओं में प्रकाशित पुस्तकें हैं. पंकज बताते हैं कि यह दूसरी बार है जब प्यारा केरकेट्टा फाउन्डेशन ने पुस्तक मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज की है.
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पंकज कहते हैं कि हमारे पास आदिवासियों द्वारा लिखित बहुभाषाई किताबें हैं. विभिन्न आदिवासी भाषा में कहानी, गीत, कविताएं, उपन्यास, आत्मसंस्मरण, इतिहास, राजनीति और बाल कथाएं अपने मूल रूप में तो हैं ही, उनका अनुवाद भी हमारे यहां उपलब्ध है. ये किताबें आदिवासियों के बहुभाषायी और बहु सांस्कृतिक होने का प्रमाण दे रहीं हैं. साथ ही आदिवासियों के दर्शन, परंपराओं, जीवन मूल्यों, सौंदर्यबोध से भी परिचित करा रही हैं. पंकज के मुताबिक, आदिवासी साहित्य की एक खासियत यह भी है कि वह कई लिपियों में लिखी जा रही हैं. हमारे पास वारंग चिति, ओलचिकी, तोलोंग सिकी, बांग्ला, देवनागरी, रोमन, उड़िया, मलयालम, तेलुगु में लिखा गया साहित्य ठीक-ठाक मात्रा में है.
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