सोशल मीडिया में लाख बुराई हो. भर-भर के इसकी आलोचना होती रहे लेकिन इस बात में कोई शक नहीं है कि इसने लोगों के हौसलों को पंख दिए हैं. हमारे आस पास तमाम लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अलग अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लिखना शुरू किया। जैसे जैसे वक़्त आगे बढ़ता रहा इनकी कलम पैनी हुई और इनके लेखन को धार मिलती रही. ऐसे ही लेखकों में शुमार है युवा लेखक सबाहत आफरीन का जिनकी किताब ' मुझे जुगनुओं के देश जाना है ने न केवल फेसबुक ट्विटर और इंस्टाग्राम बल्कि साहित्य जगत में भी तहलका मचा दिया है.
रुझान प्रकाशन से प्रकाशित कहानी संग्रह 'मुझे जुगनुओं के देश जाना है' से गुजरते हुए आप साफ तौर पर महसूस करेंगे कि ये रचनाएं अल्पसंख्यक समुदाय के परिवेश को बड़ी बारीकी से रखती है. लेकिन इसके साथ ही यह बात गौरतलब होगी कि इस समुदाय में जो परेशानियां हैं, खूबियां और खामियां हैं, कमोबेश वही स्थिति बहुसंख्यक समुदाय के परिवेश में भी देखने को मिल जाएंगी. यह अलग बात है कि दोनों जगहों का संघर्ष जुदा है. दोनों से निबटने का तरीका अलग है, दोनों जगह के पात्रों को अलग-अलग ढंग से एनर्जी झोंकनी पड़ती है.
किताब 9 अलग अलग कहानियों का एक ऐसा दस्तावेज है जो तमाम स्त्री पात्रों के भीतर की छटपटाहट, उनकी बेचैनी, बोसीदा रीति रवाजों को मानने से इनकार करता है. किताब जिसके शीर्षक में ही जुगनुओं का जिक्र है वो उस आज़ादी का पर्याय हैं जो इस कहानी संग्रह में प्रकाशित कहानियों के अलग अलग पात्र महसूस करते हैं.
जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को जाहिर कर चुके हैं कि 9 कहानियों वाले इस कहानी संग्रह का आधार औरतें हैं. यदि हम कहानी की इन औरतों की ज़िन्दगी को देखें तो मिलता है कि ये सभी महिलाएं कहीं न कहीं आंखों में कुछ जरूरी सपने लिए एक ऐसी कश्मकश से गुजर रही हैं जिससे पार निकलना किसी भी महिला, चाहे वो कितनी भी सशक्त क्यों न हो, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
किताब में लिखी कहानियों को पढ़ें तो समाज के दायरों और मन की उलझनों में उलझे पात्र हालात बदलने को बेचैन हैं. और इसके लिए वो कुछ इस हद तक उतावले हैं कि सपोर्ट के रूप में उन्हें किसी सूरज की तलाश नहीं है. ऐसी औरतों का मानना यही है कि उम्मीद के दीपक को रोशन करने के लिए छोटे-छोटे जुगनू ही काफ़ी हैं.
किताब की पहली कहानी ‘तन्हा ख़्वाब' जर्रीन की कहानी है जिसकी जिंदगी में सब कुछ तो है, मगर उसे अपने पति से प्यार नहीं मिला. जर्रीन अपनी जिंदगी में बस प्यार के दो बोल सुनना चाहती है. और शायद उसकी यही तलब उसे डॉक्टर नीलाभ नाम के एक अन्य कैरेक्टर के करीब ले आती है.
डॉक्टर नीलाभ की बातें पति की बेरुख़ी से बेक़रार जर्रीन के कलेजे को ठंडक और सुकून देती है. कहानी एक ऐसे बिंदु पर ख़त्म होती है जहां सही और गलत की अवधारणा के बीच एक ऐसा द्वन्द है जहां परिस्थितियां ही चीजों को गलत और सही बना रही हैं.
इसी तरह जब हम किताब की दूसरी कहानी 'दिल ही तो है' का रुख करते हैं तो वहां हमें 'सरमद' नाम की एक ऐसी महिला दिखती है जिसकी शादी को सिर्फ 4 साल हुए हैं और उसके पति मोहसिन का स्वर्गवास हो गया है. एक बेवा की जिंदगी कैसी होती है. उसे अपने जीवन में किन किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?. कैसे समाज की नजरें उसे हर पल, हर वक़्त घूरती है इस कहानी से बखूबी समझा जा सकता है.
कहानी बताती है कि यूं तो ज़िंदगी से सरमद को शिकायतें नहीं हैं. पर चूंकि उम्र की भी अपनी हसरतें होती हैं, सरमद की भी कुछ हसरतें हैं. सरमद की सारा नाम की बेटी है और कहानी सारा और सरमद के इसी प्रेम के इर्द गिर्द घूमती है.
कहानी को जिस नफासत के साथ एक धागे से दूसरे धागे के बीच पिरोया गया है वो हमें कहीं न कहीं लेखक के परिपक्व होने का आभास तो कराता ही है. साथ ही ये भी बताता है कि कहानी में जिन परिस्थितियों का वर्णन हुआ वो प्लॉट की ज़रूरत था.
कहानी जहां एक तरफ हमें एक बेवा की मजबूरियां दिखाती है. तो वहीं जैसा रिश्ता कहानी की मुख्य पात्र सरमद का अपनी बेटी से है वो उसके एक आदर्श मां होने को भी परिभाषित करता है.
किताब की तीसरी कहानी ‘खूबसूरत औरतें’ भी हमें लेखक के जहीन होने का आभास कराती है. कहानी की मुख्य पात्र आलिया हमें उन औरतों से मिलवाती है जिनकी खूबसूरती ही उनके जी का जंजाल है.
ये कहानी उन लोगों के बारे में है जो स्वाभव से हैं तो बदनीयत लेकिन जब इनकी चोरी पकड़ी जाती है तो ये सारा का सारा दोष औरतों के मत्थे डाल देते हैं. चूंकि कहानी की मुख्य पात्र आलिया बला की खूबसूरत है जाहिर है उसे प्रेम भी होगा.
आलिया प्रेम में पड़ती है और वही प्रेमी जो उसका शौहर बनता है अपनी फितरत दिखा देता है. कहानी पढ़ते हुए महसूस यही होगा कि आलिया के शौहर में एक अजीब सा बदलाव आता है. और एक वक़्त ऐसा आता है जब बतौर एक महिला आलिया इन सब से तंग आ जाती है.
यहां कहानी टर्न लेती है और यहीं से हम आलिया को एक बिलकुल अलग राह चुनते हुए देखते हैं. कहानी बताती है कि एक औरत खूबसूरत तो हो सकती है लेकिन ये खूबसूरती एक बड़ी कीमत भी मांगती है.
किताब की चौथी कहानी 'नो ऑब्जेक्शन' एक ऐसे परिदृश्य में को ध्यान में रखकर लिखी गयी है जहां कब ये जमाना किसी मुद्दे का तिल का ताड़ कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता. यूं तो कहानी का बैकड्रॉप एक टिपिकल मिडिल क्लास फेमिली है मगर इसी फैमिली में आज़ाद ख्याल इरम भी है.
इरम जिसे ज़माने और उसके कायदे कानून की कोई परवाह नहीं है, एक ऐसी लड़की है जो रौशन ख्याल तो है ही. साथ ही वो ये भी जानती है कि कोई कुछ भी कह ले. लेकिन किसी भी फैसले को लेने से पहले इंसान को सिर्फ अपने दिल की ही सुननी चाहिए.
इन चार कहानियों के अलावा किताब में अन्य 5 कहानियां हैं, सबाहत की किताब 'मुझे जुगनुओं के देश जाना है' को इस लिए भी पढ़ा जाना चाहिए क्योंकि इन कहानियों को पढ़ते हुए कहीं न कहीं इस बात का भी एहसास हो जाएगा कि एक लड़की के लिए औरत बनने का सफर तमाम तरह की चुनौतियों से भरा है.
किताब की भाषा मुख्यतः उर्दू है पर कहीं से भी आपको बोरियत का एहसास नहीं होता. हालांकि बतौर पाठक कुछ जगहों पर आपको शाब्दिक चुनौती हो सकती है, मगर जब आप कहानी को पढ़ेंगे तो आपको वो कठिन बातें आसानी से समझ में आ जाएंगी.
किताब की शैली खूबसूरत है साथ ही ठहराव भी है. पढ़ते हुए ऐसा बिलकुल भी नहीं लगेगा कि किताब जल्दबाजी में लिखी गई है. किताब की अच्छी बात ये है कि लेखिका ने कम शब्दों का इस्तेमाल करते हुए जरूरी मुद्दों को जनता तक पहुंचाया और गागर में सागर भरने का काम किया है.
किताब में अगर एक भाषा के रूप में उर्दू को कम रखा गया होता तो शायद ये किताब ज्यादा लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर पाती. हो सकता है कि अपनी अगली किताब या फिर इसी किताब के अगले संस्करण में लेखिका सबाहत आफरीन इसका ख्याल रखें. किताब अमेजन पर उपलब्ध है और इसकी कीमत 225 रुपये है.
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