आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री अगर आज जीवित होते तो अपना 108वां जन्मदिन मना रहे होते. बता दें कि 5 फरवरी 1916 में जानकीवल्लभ शास्त्री का जन्म हुआ था और 7 अप्रैल 2011 में उनका देहावसान. उन्हें दो बार पद्मश्री सम्मान देने का प्रस्ताव रखा गया लेकिन आचार्य ने सम्मान लेने से इनकार कर दिया. पहली बार 1994 में उन्हें पद्मश्री सम्मान देने का प्रस्ताव मिला और दूसरी बार 2010 में. पर दोनों ही बार इस साहित्यकार ने पद्मश्री सम्मान स्वीकार नहीं किया.
यह सच है कि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री हिंदी साहित्य के क्षेत्र में महाप्राण निराला की प्रेरणा से आए, इससे पहले वे संस्कृत में कविताएं रचा करते थे. लेकिन उनका साहित्य निराला या किसी और रचनाकार की प्रतिच्छाया नहीं, बल्कि उसकी अपनी अलग पहचान रही. वे नवगीत जैसे किसी आंदोलन से नहीं जुड़े रहे और न ही तुकांत या अतुकांत कविताओं के वाद-विवाद में कभी शामिल हुए. बल्कि उन्होंने साहित्य में कुछ नए प्रयोग जरूर किए. उन्हों छंदबद्ध काव्य-कथाएं लिखीं, काव्य नाटक लिखे, राधा (7 खंडों में) जैसा श्रेष्ठ महाकाव्य रचा.
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का रचना संसार
छंदों पर वल्लभ जी की पकड़ भी बहुत जबर्दस्त थी और तुक बहुत सहज ढंग से उनकी कविता में आते रहे. कहते हैं कि छंदों और तुकों के इस्तेमाल में उस दौर के रचनाकारों में एकमात्र निराला ही उनकी ऊंचाई को छूते दिखते हैं. आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री ने 20 काव्य संग्रह, एक महाकाव्य, 3 संगीतिका, 4 नाटक, 5 उपन्यासों (कालिदास अपूर्ण उपन्यास), 5 कहानी संग्रह और एक गजल संग्रह के अलावा कई संस्मरण, ललित निबंध भी लिखे. उन की महत्त्वपूर्ण कृतियां 'मेघगीत', 'अवंतिका', 'श्यामासंगीत', 'राधा (सात खण्डों में)', 'इरावती', 'एक किरण: सौ झाइयां', 'दो तिनकों का घोंसला', 'कालीदास', 'बांसों का झुरमुट', 'अशोक वन', 'सत्यकाम', 'आदमी', 'मन की बात', 'जो न बिक सकी', 'स्मृति के वातायन', 'निराला के पत्र', 'नाट्य सम्राट पृथ्वीराज', 'कर्मक्षेत्रे: मरुक्षेत्रे', 'एक असाहित्यिक की डायरी' हैं.
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पद्मश्री अस्वीकार की वजह
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री को वर्ष 2010 में पद्मश्री देने की घोषणा हुई थी. इस बाबत गृह मंत्रालय ने शास्त्री जी से बायोडाटा मांगा. शास्त्री जी को यह बात ठीक नहीं लगी. उन्होंने कह दिया कि जिन लोगों को मेरे कृतित्व की जानकारी नहीं है, उनके पुरस्कार का कोई मतलब नहीं है. शास्त्री जी ने गृह मंत्रालय से मिली चिठ्ठी पर पद्मश्री अस्वीकार लिखकर गृह मंत्रालय भारत सरकार को वापस भेज दिया था. 95 वर्ष की उम्र में 7 अप्रैल 2011 को मुजफ्फरपुर के निराला निकेतन में जानकीवल्लभ शास्त्री ने अंतिम सांस ली थी.
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