डीएनए हिंदी. फोसवाल साहित्य उत्सव 2023 का समापन हो गया. नई दिल्ली के 'एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स और लिटरेचर' के प्रांगण में आखिरी दिन हिंदी, उर्दू और पंजाबी कविता पाठ कई सत्र थे. इससे पहले यानी तीसरे दिन 'दो निर्रथक युद्धों की पीड़ा' पर चर्चा होती रही.
बुधवार को समापन के दिन पहले सत्र में वार रिपोर्टर नीरज राजपूत ने वार रिपोर्टिंग से जुड़ी अंदरूनी बातों से श्रोताओं का परिचय करवाया. उन्होंने कहा, "किसी युद्धग्रस्त इलाके की रिपोर्टिंग के दौरान जर्नलिस्ट को सिर्फ उन बातों पर भरोसा नहीं करना चाहिए जो उसे बताई जा रही हैं. बल्कि अपने विवेक का भी इस्तेमाल करना चाहिए. युद्ध यदि रोकना है तो हर देश को मजबूत बनना पड़ेगा. आंतरिक तौर पर और सेना दोनों मजबूत होनी चाहिए."
शुरू हुआ कविताओं का सत्र
चौथे दिन का दूसरा सत्र हिंदी कविता का पाठ हुआ. इस सत्र में कवि अनामिका, अशोक आत्रेय, सीनियर एडवोकेट संजय जैन, विशाल पांडे, कमलेश भट्ट कमल, डॉ विनोद खेतान और अलका 'सोनी' ने हिस्सा लिया. कमलेश भट्ट कमल ने अपनी हाइकु कविताएं और गजल सुनाईं. "जाऊंगा कहां/नया शरीर लेकर/फिर लौटूंगा." "सौ-सौ कानों से/कनेर ने सुनी है/हवा की बातें." जैसी हाइकू कविताओं ने श्रोताओं की खूब तालियां बटोरीं. अनामिका ने 'कितना सनातन है यह द्वंद्व, 'विस्फोट' और 'नमस्ते 2064' शीर्षक से लिखी कविताएं सुनाई. हिमानी दास ने 'खबर कहती है', उसका खेत और मेरा प्रेम, और 'खुशियां' कविताओं का पाठ किया. इसके अलावा इस सत्र में जसवीर त्यागी, निर्देश निधि और डॉ देव शंकर नवीन ने अपनी कविताओं का पाठ किया.
उर्दू गजलों-नज्मों का सत्र
अगला सत्र उर्दू कविताओं को समर्पित रहा. इस मौके पर उर्दू के नामी-गिरामी शायर मौजूद रहे. अहमद नसीब ने अपनी नज्में सुनाते हुए श्रोताओं का दिल जीत लिया. उनके नज्म की एक पंक्ति कुछ इस तरह थी - "बजाए इसके कि बैसाखियां तलाश करें/खुद अपने आप में खूबियां तलाश करें." इस सत्र में अपनी गजलें और नज्म सुनाने वाले अन्य शायरों में प्रो रहमान मुसाविर, अलीना इतरत, डॉ खालिद मुबाशशिर, यासीन अनवर और प्रो शहपार रसूल थे.
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पंजाबी-हिंदी कविता सत्र
इसके बाद एक बार फिर हिंदी कविताओं के पाठ का सत्र आयोजित हुआ. इस सत्र में कवि प्रदीप कुमार ठाकुर, वेद मित्र शुक्ला, कविकुम्भ पत्रिका की संपादक रंजीता सिंह और अरुण आदित्य ने हिस्सा लिया. पंजाबी कविताओं के सत्र में गगन संधू, करनजीत कोमल और गुरप्रीत बोरावल ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया. गगन संधू की कविता 'नाइक्रोफिलिया' की सभी ने सराहना की.
आखिरी तीन सत्र हिंदी कविता के नाम
आखिर के तीन सत्र हिंदी कविताओं को समर्पित रहे. जिसमें लेखक, पत्रकार और आर्टिस्ट देव प्रकाश चौधरी की भावपूर्ण कविता "खिलने का समय हमेशा मुरझाने के समय से कम होता है" ने उपस्थित श्रोताओं को भाव विह्वल कर दिया. वरिष्ठ कवि ओम निश्छल की गजल ने भी खूब तालियां बटोंरीं. इन सत्रों में भाग लेने वाले अन्य महवपूर्ण कवि संगीता गुप्ता, आलोक यादव, प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, उपेंद्रनाथ रैना, राजेंद्र सिंह लूथरा, नाज सिंह, दिनेश अग्रवाल, रमन कुमार सिंह, सरोज मिश्रा, आलोक प्रादकर, अखिलेश श्रीवास्तव, संगीता अग्रवाल, सुलोचना वर्मा, वीरेंद्र आजम, राजेंद्र शर्मा, संजीव कौशल, अमित कल्ला सुमन चौधरी, सपना एहसास और अरविंद ओझा थे.
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युद्ध के खिलाफ खड़े रचनाकार
फोसवाल महोत्सव के तीसरे दिन की शुरुआत 'दो निर्रथक युद्धों की पीड़ा' पर चर्चा से हुई. इस सत्र में केरल के लेखक, कवि के वी डोमिनिक, डिफेन्स जर्नलिस्ट नीरज राजपूत और समाजशास्त्री आशीष नंदी ने हिस्सा लिया. युद्ध के पीछे के कारणों पर चर्चा करते हुए के वी डोमिनिक ने कहा, "दुनिया भर में युद्ध कराने में धर्म का बड़ा हाथ रहा है. अधिकतर धार्मिक नेता लोगों को शांति और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने की बजाए इन्टॉलरेंस सिखा रहे हैं." चर्चा को आगे बढ़ाते हुए पत्रकार नीरज राजपूत ने वार रिपोर्टिंग की बारीकियां बताईं. इस मौके पर उनकी किताब 'ऑपरेशन लाइव' का लोकार्पण भी हुआ. यह लोकार्पण फांउडेशन ऑफ सार्क एंड राइटर्स की अध्यक्ष पद्मश्री अजीत कौर, समाजशास्त्री आशीष नंदी, वरिष्ठ पत्रकार देव प्रकाश चौधरी के हाथों हुआ.
'युद्ध आरंभ करने को अपराध घोषित किया जाना चाहिए'
नीरज राजपूत ने वार रिपोर्टिंग के अनुभवों को साझा करते हुए कहा, "मिसाइलों की पहचान के लिए कोई तरीका होना चाहिए. ताकि यह पता लगाया जा सके कि अस्पताल, स्कूल जैसी जगहों पर बमबारी करने वाले किस पक्ष के लोग हैं. युद्ध किए जाने के भी कुछ नियम बनाए जाने चाहिए. कहीं भी बमबारी करने पर रोक होनी चाहिए. जिससे आम लोगों को कम नुकसान हो. महाभारत काल में युद्ध एक क्षेत्र विशेष में होते थे. आम लोगों को निशाना नहीं बनाया जाता था." उन्होंने अपनी बात विपिन रावत को उद्धृत कर खत्म की जिसमें उन्होंने कहा है "युद्ध रोकना चाहते हैं तो युद्धों के लिए तैयार रहिए. शक्तिशाली पर हमला करने से सभी भयभीत होते हैं." समाजशास्त्री आशीष नंदी ने युद्धों को लेकर एक पहल की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने कहा, “यूनाइटेड नेशन को एक कमीशन की स्थापना करनी चाहिए जो किसी भी युद्ध के शुरू होने की दशाओं का इन्वेस्टिगेशन कर सके. जो यह पता लगाए कि कोई भी गैरजरूरी युद्ध कैसे शुरू हो जाता है. यह बहुत मुश्किल विचार है मगर जरूरी भी. असल में युद्ध आरंभ करने को अपराध घोषित किया जाना चाहिए."
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