डीएनए हिंदी: हिंदी साहित्य की मासिक पत्रिका ‘हंस’ का वार्षिक साहित्योत्सव दिल्ली में 27, 28 और 29 अक्टूबर को होने जा रहा है. तीन दिनी यह आयोजन इंडिया हैबिटैट सेंटर के एमपी थिएटर में होगा. इस समारोह में हिंदी साहित्य, मीडिया और सिनेमा पर चर्चा होगी. साहित्योत्सव 2023 में देशभर के प्रमुख लेखक, आलोचक, रंगमंच कलाकार, निर्देशक और सिनेमा से जुड़े लोग शिरकत कर रहे हैं. विभिन्न सत्रों के माध्यम से ये लोग हॉल में मौजूद साहित्य प्रेमियों से संवाद करेंगे.
इस समारोह का उद्घाटन 27 अक्टूबर को सुबह 10:30 बजे होना है. उद्घाटन के मौके पर हॉल में मौजूद साहित्य प्रेमियों और अपने अतिथियों का स्वागत ‘हंस’ की प्रबंध निदेशक रचना यादव करेंगी. इस मौके पर साहित्योत्स का पूरा ब्यौरा ‘हंस’ के संपादक संजय सहाय देंगे. इसी सत्र में उद्घाटन वक्तव्य शरणकुमार लिंबाले देंगे जबकि आशीर्वचन के लिए मंच पर मृदुला गर्ग, विश्वनाथ त्रिपाठी और अशोक वाजपेयी होंगे. हंस के सृजन, संघर्ष और सपनों के बारे में दिन के 12 बजे से बातचीत शुरू होगी. डेढ़ घंटे चलने वाली यह बातचीत 1:30 पर खत्म होगी.
पाठक और लेखक का रिश्ता
आज के दौर में हिंदी साहित्य के सामने एक बड़ा सवाल यह है कि आज का पाठक अपने लेखक को कितना पहचानता है. इस मुद्दे पर बातचीत 27 अक्टूबर को दिन के डेढ़ बजे शुरू होगी. कई बहुचर्चित रचनाकार अपनी बात दर्शकों के सामने रखेंगे. दूसरा बड़ा संकट हिंदी साहित्य में यह दिखने लगा है कि विमर्श के नाम पर आक्रामकता बढ़ी है. असहमति की जगह धीरे-धीरे कम होती गई है. इस गंभीर मुद्दे पर विचार करने के लिए कई सुपरिचित लेखक-चिंतक अपनी बात रखेंगे.
दलित स्वर की पहचान
28 अक्टूबर की सुबह 11 बजे से शुरू होगा पहला सत्र. इस सत्र में हिंदी लेखन में दलित स्वरों की पहचान की जाएगी. अल्पसंख्यक से लेकर आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले लेखकों की मंच पर उपस्थिति दिखेगी. वे बताएंगे कि हिंदी में दलित लेखन की पहचान कैसी है, किस तरह का उनका लेखन है. इसी दिन दिन 1 बजे से कई आलोचक इस बात पर भी विचार करेंगे कि क्या हिंदी में आलोचना के प्रतिमान पुराने पड़ चुके हैं. रामचंद्र शुक्ल से शुरू हुई आलोचना की धारा हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा और नामवर सिंह के जमाने तक तो तेज गति से बहती रही, लेकिन उसके बाद आलोचना की दिशा किस हाल में है? क्या बदलते वक्त के साथ जिस तेजी से साहित्य का चेहरा बदला है, उस अनुरूप क्या हमने आलोचना के औजार भी तैयार किए हैं.
लेखक का संशय
28 अक्टूबर को 2:30 बजे से शुरू होने वाले तीसरे सत्र का विषय होगा 'हिंदी लेखक का संशय- कैसी वर्जनाएं कितने भय'. चौथा सत्र शाम 4 बजे से शुरू होगा और इस सत्र में 'हरसाई की परंपरा और हिंदी की बांकी मुस्कान' विषय के तहत व्यंग्य विधा पर चर्चा होगी. इसी दिन विजयदान देथा की कहानी 'रिजक की मर्यादा' पर आधारित नाटक 'बड़ा भांड तो बड़ा भांड' का मंचन होगा. शाम 6 बजे से शुरू होने वाले इस पांचवें सत्र में नाटक का मंचन किया जाना तय किया गया है.
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कृत्रिम मेधा की चुनौती
साहित्योत्सव 2023 के अंतिम दिन 29 अक्टूबर को 11 बजे दिन से शुरू होनेवाले सत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम मेधा पर चर्चा होगी. इस चर्चा के केंद्र में हमारी रचनात्मकता होगी. मंच पर मौजूद रचनाकार विचार करेंगे कि हमारी रचनात्मकता के लिए यह कृत्रिम मेधा अगर चुनौती है तो वह कैसी चुनौती है. उसका सामना कैसे किया जा सकता है या फिर यह केवल काल्पनिक आशंका है.
वैश्विक साहित्य में हिंदी साहित्य
इस तीसरे दिन का दूसरा सत्र दिन के 1 बजे से शुरू होगा. हिंदी साहित्यकार गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' को मिले बुकर पुरस्कार के बाद एक बार फिर वैश्विक साहित्य में हिंदी साहित्य की चर्चा होने लगी है. इस दूसरे सत्र में 'वैश्विक साहित्य के आईने में हिंदी साहित्य' की मौजूदगी पर चर्चा करने के लिए कई महत्त्वपूर्ण लेखक मंच पर मौजूद रहेंगे.
मीडिया में साहित्य
इस अंतिम दिन का तीसरा सत्र मीडिया की भाषा पर विचार करेगा. एक दौर में मीडिया में साहित्य की जगह होती थी. की भाषा इतनी आकर्षक होती थी कि पाठक अखबारी भाषा से भाषा की बारीकी सीख लेता था. लेकिन अब के दौर में जब मीडिया के स्वरूप में विस्तार हुआ है, जब वह प्रिंट से इलेक्ट्रॉनिक का सफर और अब डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है, तो उसकी भाषा में, उसके कंटेंट में कितना साहित्य बचा रह गया है.
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हिंदी सिनेमा की दिशा-दशा
विपरीत वास्तविकताओं के बीच हिंदी सिनेमा की दिशा और दशा तलाशता हुआ होगा अंतिम दिन का चौथा सत्र. और आलोकनामा के तहत कविता पाठ और बातचीत के बीच साहित्योत्सव के अंतिम दिन का पांचवां और अंतिम संत्र होगा. इन तीनों दिन साहित्य प्रेमियों के स्वागत के लिए हंस परिवार तैयार रहेगा. ध्यान रहे हंस साहित्योत्सव 2023 में एंट्री बिल्कुल मुफ्त है.
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