मैंने अपनी आंखों से मोहल्ले में जलते हुए लोग देखे हैं. जलने के बाद निकलने वाली बदबू आज भी जेहन में बसी हुई है. पाकिस्तान मेरे लिए इतना पास है कि वह मेरे लिए मेरे घर के बगल की दीवार है, मेरे घर के बगल वाले कमरे की खिड़की है. ये बातें जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन मशहूर गीतकार गुलजार साहब ने कहीं.
दरअसल गुलजार लिटरेचर फेस्टिवल में खुद पर लिखी किताब 'गुलजार साब' पर बातचीत कर रहे थे. यह किताब यतींद्र मिश्र ने लिखी है. इस बातचीत के दौरान पाकिस्तान पर बात करते-करते गुलजार भावुक हो गए.
विभाजन की यादें
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में इसी बातचीत के दौरान विभाजन को याद करते हुए गुलजार ने कहा 'मैं उस दृश्य को नहीं भूल सकता जब मेरे स्कूल में दुआ पढ़ने वाले को मार दिया गया... वे बहुत उदास करने वाले दिन थे. गीतकार गुलजार ने कहा 'मैं अपने लेखन को देखता हूं तो पाता हूं कि उसमें एक उदासी है... आपकी जिंदगी का असर आपके लेखन पर तो होगा ही. हर फनकार अपनी क्रिएशन में शामिल है. उसकी उंगली, उसका दिमाग सब उसी रिदम में चलता है, जैसा वह सोचता है.
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अनुवाद पर बात
गुलजार ने अपने नए काव्य-संग्रह के बारे में कहा कि यह उनकी अप्रकाशित रचनाओं का संकलन है. गुलजार के मुताबिक, अभी भी उनकी इतनी रचनाएं अप्रकाशित हैं कि उनसे इतनी ही बड़ी एक और किताब बन सकती है. इस सत्र में अनुवाद की कला, उसकी चुनौतियों और लेखक व अनुवादक के रिश्ते पर भी बात हुई. रख्शंदा जलील ने बताया कि इस किताब का अनुवाद तीन साल पहले शुरू हुआ था, वे लगभग हर दिन मिला करते और हर शब्द, लाइन और कौमा तक पर चर्चा करते. इस दौरान गुलजार ने कहा कि मानता हूं अनुवाद में कि परफ्यूम की मात्रा थोड़ी कम जरूर हो जाती है, लेकिन खूशबू कम नहीं होती.
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कविताओं का पाठ
बता दें कि गुलजार ने जैसे ही मंच से संबोधन शुरू किया तो तालियों की गड़गड़ाहट से पांडाल गूंज उठा. सुनने वालों की भीड़ अचानक खूब बढ़ गई. इस दौरान गुलजार ने मौजूद श्रोताओं के सामने कई कविताएं सुनाई. अपनी कविताओं के जरिए गुलजार अपने बचपन, पाकिस्तान और सरहद तक पर भटकते रहे और हर कविता पर श्रोताओं की वाह-वाह और तालियां सुनाई पड़ती रहीं.
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