हिंदी और मैथिली की चर्चित साहित्यकार उषाकिरण खान का निधन 78 साल की उम्र में रविवार (11 फरवरी) को हो गया. उन्होंने पटना के मेदांता अस्पताल में आखिरी सांस ली. वे कई दिनों से बीमार थीं. उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. उषाकिरण खान दरभंगा जिले के लहेरियासराय की रहने वाली थीं.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उषाकिरण खान के निधन पर शोक जताया है. बता दें कि अप्रैल 2022 में उषाकिरण खान के पति और पूर्व डीजीपी रामचंद्र खान का निधन हो गया था.
2015 में मिला था पद्मश्री
उषाकिरण खान को वर्ष 2015 में ‘पद्मश्री’ से विभूषित किया गया था. इससे पहले 2010 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था. 2019 में उन्हें भारत-भारती और 2020 में प्रबोध साहित्य सम्मान भी मिला था. इनके अलावा उन्हें राष्ट्रभाषा परिषद का हिंदी सम्मान, राजभाषा विभाग का महादेवी वर्मा सम्मान सहित कई अन्य पुरस्कार और सम्मान दिए जा चुके हैं.
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दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में शोक
उषाकिरण खान के निधन पर दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन ने दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. मेले में मौजूद कई साहित्यकारों ने उषाकिरण खान के लेखकीय जीवन को याद किया. साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अपने शोक संदेश में कहा कि प्राचीन और आधुनिक कालखंड के जनजीवन और संस्कृति के उत्थान-पतन की गाथा को ऐतिहासिक दृष्टि से पेश करने वाली उषाकिरण खान के व्यक्तित्व पर अपने स्वतंत्रता सेनानी गांधीवादी पिता के संस्कारों का गहरा प्रभाव था.
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50 से अधिक पुस्तकें
बता दें कि उषाकिरण खान ने हिंदी और मैथिली में बहुविध लेखन किया है. कविताएं, कहानियां, नाटक और उपन्यास लेखन में उनका योगदान रेखांकित किए जाने लायक है. बाल साहित्य में भी उनका भरपूर योगदान है. उनकी रचनाएं उड़िया, बांग्ला, उर्दू और अंग्रेजी समेत अनेक भाषाओं में अनूदित हुई हैं. उनकी 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. इनमें ‘विवश विक्रमादित्य’, ‘दूबधान’, ‘गीली पांक’,‘कासवन’, ‘जलधार’, ‘जनम अवधि’ जैसी कई रचनाएं शामिल हैं.
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