जो था ईश्वर की तरह निष्पाप और सुंदर, वही बन गया शैतान की तरह क्रूर

अनुराग अन्वेषी | Updated:Feb 08, 2024, 10:12 PM IST

अमेरिकी कथाकार ओ. हेनरी की कहानी 'कैदी' के आधार पर एआई की परिकल्पना.

American storyteller O. Henry: अपने लेखन से जुड़ रहते हुए ओ हेनरी बहुत ज्यादा शराब पीने लगे थे. नतीजतन वे लीवर सिरोसिस, मधुमेह की जटिलताओं और बढ़े हुए दिल का शिकार हो चुके थे. आखिरकार इन सब की वजह से एक रोज ब्रेन हैमरेज हुआ और उनकी सांसें हमेशा के लिए थम गईं.

अमेरिकी कथाकार ओ. हेनरी का मूल नाम विलियम सिडनी पोर्टर था. वे 11 सितंबर 1862 को उत्तरी कैरोलिना के ग्रींसबोरो में जन्मे थे. यह चौंकाने वाली बात है कि ओ हेनरी ने अपना असल लेखन 1902 में शुरू किया था और महज 8 बरस उनके लेखन की उम्र रही. 1910 में ब्रेन हैमरेज ने उनकी सांसें रोक दी.
1902 से पहले उनकी जिंदगी बहुत उथल-पुथल वाली रही. ऑडिट में गड़बड़ी का मुकदमा उनपर चला. मुकदमे के दौरान ही वे फरार हो गए. फिर पत्नी की तबीयत का हाल जानने के बाद उन्होंने सरेंडर कर दिया और उन्हें सजा हुई. जेल में रहने के दौरान उन्होंने कई छद्म नाम रखे और कहानियां लिखीं. जेल से छूटने के बाद उन्होंने तकरीबन 380 कहानियां लिखीं. उनकी कहानियों की एक बड़ी खूबी यह रही कि वे आकार में छोटी हुआ करती थीं. उनकी ऐसी ही एक छोटी मगर शानदार कहानी है कैदी.

कैदी (लोककथा) 

जीवन के सुख-दुख का प्रतिबिंब मनुष्य के मुखड़े पर सदैव तैरता रहता है, लेकिन उसे ढूंढ़ निकालने की दृष्टि केवल चित्रकार के पास होती है. वह भी एक चित्रकार था. भावना और वास्वविकता का एक अद्भुत सामंजस्य होता था उसके बनाए चित्रों में.

एक बार उसके मन में आया कि ईसा मसीह का चित्र बनाया जाए. सोचते-सोचते एक नया प्रसंग उभर आया. उसके मस्तिष्क में छोटे-से ईसा को एक शैतान हंटर से मार रहा है, लेकिन न जाने क्यों ईसा का चित्र बन ही नहीं रहा था. चित्रकार की आंखों में ईसा की जो मूर्ति बनी थी, उसका मानव रूप में दर्शन दुर्लभ ही था. बहुत खोजा, मगर वैसा तेजस्वी मुखड़ा उसे कहीं नहीं मिला.

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एक दिन उद्यान में टहलते समय उसकी दृष्टि अनाथालय के 8 वर्ष के बालक पर पड़ी. बहुत भोला था. ठीक ईसा की तरह, सुंदर और निष्पाप. उसने बालक को गोद में उठा लिया और शिक्षक से इजाजत लेकर अपने स्टूडियो में ले आया. अपूर्व उत्साह से उसने कुछ ही मिनटों में चित्र बना डाला. चित्र पूरा कर वह बालक को अनाथालय पहुंचा आया.

अब ईसा के साथ शैतान का चित्र बनाने की समस्या उठ खड़ी हुई. वह एक क्रूर चेहरे की खोज में निकल पड़ा. दिन की कौन कहे, महीनों बीत गए. शराबखानों, वेश्याओं के मोहल्ले, गुंडों के अड्डों की खाक छानी, मगर उसको शैतान कहीं न मिला. चौदह वर्ष पूर्व बनाया गया चित्र अभी तक अधूरा पड़ा हुआ था. अचानक एक दिन जेल से निकलते एक कैदी से उसकी भेंट हुई. सांवला रंग, बढ़े हुए केश, दाढ़ी और विकट हंसी. चित्रकार खुशी से उछल पड़ा. दो बोतल शराब के बदले कैदी को चित्र बन जाने तक रुकने के लिए राजी कर लिया.

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बड़ी लगन से उसने अपना अधूरा चित्र पूरा किया. ईसा को हंटर से मारने वाले शैतान का उसने हूबहू चित्र उतार लिया.

'महाशय जरा मैं भी चित्र देखूं.' कैदी बोला. चित्र देखते ही उसके माथे पर पसीने की बूंदे उभर आईं. वह हकलाते हुए बोला, 'क्षमा कीजिए. आपने मुझे अभी तक पहचाना नहीं. मैं ही आपका ईसा मसीह हूं. चौदह वर्ष पूर्व आप मुझे अनाथालय से अपने स्टूडियो में लाए थे. मुझे देखकर ही आपने ईसा का चित्र बनाया था.'
सुनकर कलाकार हतप्रभ रह गया.
(अनुवाद : सुकेश साहनी)

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