मैक्सिम गोर्की का जन्म 28 मार्च 1868 में हुआ था जबकि निधन 18 जून 1936. यानी प्रेमचंद के निधन के महज 5 महीने पहले. मैक्सिम गोर्की का भरोसा भी मार्क्सवाद में रहा. 1884 में गोर्की का मार्क्सवादियों से परिचय हुआ. और महज चार साल बाद यानी 1888 में गोर्की पहली बार गिरफ्तार किए गए.
फिर 1891 में मैक्सिम गोर्की देशभ्रमण के लिए निकले. 1892 में गोर्की की पहली कहानी "मकर छुद्रा" छपी. गोर्की की शुरुआती रचनाओं में रोमांसवाद और यथार्थवाद का मेल दिखाई देता है. 'वह लड़का' कहानी ग्रामीण परिवेश के एक बच्चे के साहस की कहानी है, जो आपमें भी उमंग का संचार करेगी.
यह छोटी-सी कहानी सुनाना काफी कठिन होगा-इतनी सीधी-सादी है यह! जब मैं अभी छोटा ही था, तो गरमियों और वसंत के दिनों में रविवार को अपनी गली के बच्चों को इकट्ठा कर लेता था और उन्हें खेतों के पार जंगल में ले जाता था. इन पंछियों की तरह चहकते, छोटे बच्चों के साथ दोस्तों की तरह रहना मुझे अच्छा लगता था.
बच्चों को भी नगर की धूल और भीड़ भरी गलियों से दूर जाना अच्छा लगता था. उनकी मांएं उन्हें रोटियां दे देतीं, मैं कुछ मीठी गोलियां खरीद लेता, क्वास की एक बोतल भर लेता और फिर किसी गड़रिए की तरह भेड़ों के बेपरवाह मेमनों के पीछे-पीछे चलता जाता - शहर के बीच, खेतों के पार, हरे-भरे जंगल की ओर, जिसे वसंत ने अपने सुंदर वस्त्रों से सजा दिया होता.
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आमतौर पर हम सुबह-सुबह ही शहर से बाहर निकल आते, जब कि चर्च की घंटियां बज रही होतीं और जमीन पर बच्चों के कोमल पांवों के पड़ने से धूल उठ रही होती. दोपहर के वक्त, जब दिन की गरमी अपने शिखर पर होती, तो खेलते-खेलते थककर मेरे मित्र जंगल के एक कोने में इकट्ठे हो जाते. तब खाना खा लेने के बाद छोटे बच्चे घास पर ही सो जाते - झाड़ियों की छांव में, जबकि बड़े बच्चे मेरे चारों ओर घिर आते और मुझे कोई कहानी सुनाने के लिए कहते. मैं कहानी सुनाने लगता और उसी तेजी से बतियाता, जिससे मेरे दोस्त और जवानी के काल्पनिक आत्मविश्वास तथा जिंदगी के मामूली ज्ञान के हास्यास्पद गर्व के बावजूद मैं अक्सर अपने आपको विद्वानों से घिरा हुआ किसी बीस वर्षीय बच्चे-सा महसूस करता.
(जारी)
'वह लड़का' की दूसरी किस्त
'वह लड़का' की तीसरी किस्त
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