क्यों रो रहा था वो घुंघराले बालों वाला यहूदी लड़का?

Written By अनुराग अन्वेषी | Updated: Feb 15, 2024, 05:35 PM IST

रूसी कथाकार मैक्सिम गोर्की की कहानी 'वह लड़का' के आधार पर एआई की परिकल्पना.

Maxim Gorky Story: कहने की जरूरत नहीं कि मैक्सिम गोर्की की आस्था मार्क्सवाद में गहरे थी. 'वह लड़का' कहानी भी आर्थिक विषमता की ओर इशारे करती है, मेहनतकश बच्चे के साहस का वर्णन करती है. यह वर्णन ऐसा है कि आप भी उत्साह से भर जाएं. पढ़ें 'वह लड़का' की दूसरी किस्त.

मैक्सिम गोर्की की 'बाज के बारे में गीत' (1895), 'झंझा-तरंगिका के बारे में गीत' (1895) और 'बुढ़िया इजरगिल' (1901) में क्रांति के स्वर सुनाई पड़ते हैं. उनके दो उपन्यासों 'फोमा गार्दियेफ' (1899) और 'वे तीन' (1901) में गोर्की ने शहर के अमीर और गरीब लोगों के जीवन के फर्क की चर्चा की है. कहने की जरूरत नहीं कि उनकी आस्था मार्क्सवाद में गहरे थी.
'वह लड़का' कहानी भी आर्थिक विषमता की ओर इशारे करती है, मेहनतकश बच्चे के साहस का वर्णन करती है. यह वर्णन ऐसा है कि आप भी उत्साह से भर जाएं. पढ़ें 'वह लड़का' की दूसरी किस्त -

वह लड़का (दूसरी किस्त) 

हमारे ऊपर अनन्त आकाश फैला है, सामने है जंगल की विविधता - एक जबरदस्त खामोशी में लिपटी हुई; हवा का कोई झोंका खड़खड़ाता हुआ पास से निकल जाता है, कोई फुसफुसाहट तेजी से गुजर जाती है, जंगल की सुवासित परछाइयां कांपती हैं और एक बार फिर एक अनुपम खामोशी आत्मा में भर जाती है.

आकाश के नील विस्तार में श्वेत बादल धीरे-धीरे तैर रहे हैं, सूरज की रोशनी से तपी धरती से देखने पर आसमान बेहद शीतल दिखता है और पिघलते हुए बादलों को देखकर बड़ा अजीब-सा लगता है.

और मेरे चारों ओर हैं ये छोटे-छोटे, प्यारे बच्चे, जिन्हें जिंदगी के सभी गम और खुशियां जानने के लिए मैं बुला लाया हूं.

वे थे मेरे अच्छे दिन - वे ही थीं असली दावतें, और जिंदगी के अंधेरों से ग्रसित मेरी आत्मा, जो बच्चों के खयालों और अनुभूतियों की स्पष्ट विद्वत्ता में नहाकर तरो-ताजा हो उठती थीं.

इसे भी पढ़ें : प्रकाशकों के बीच उपेक्षित हैं आदिवासी, Book Fair में आदिवासी साहित्य लेकर मौजूद है सिर्फ एक प्रकाशक

एक दिन जब बच्चों की भीड़ के साथ शहर से निकलकर मैं एक खेत में पहुंचा, तो हमें एक अजनबी मिला - एक छोटा-सा यहूदी - नंगे पांव, फटी कमीज, काली भृकुटियां, दुबला शरीर और मेमने-से घुंघराले बाल. वह किसी वजह से दुखी था और लग रहा था कि वह अब तक रोता रहा है. उसकी बेजान काली आंखें सूजी हुईं और लाल थीं, जो उसके भूख से नीले पड़े चेहरे पर काफी तीखी लग रही थीं. बच्चों की भीड़ के बीच से होता हुआ, वह गली के बीचोंबीच रुक गया, उसने अपने पांवों को सुबह की ठंडी धूल में दृढ़ता से जमा दिया और सुघड़ चेहरे पर उसके काले ओठ भय से खुल गए - अगले क्षण, एक ही छलांग में वह फुटपाथ पर खड़ा था.
(जारी)

'वह लड़का' की पहली किस्त
'वह लड़का' की तीसरी किस्त

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.