कौन था सोने के आधे शरीर वाला विचित्र नेवला? युधिष्ठर का दान-पुण्य क्यों पड़ा फीका? जानें पूरी कथा

अनुराग अन्वेषी | Updated:Feb 19, 2024, 06:13 PM IST

महाभारत काल के विचित्र नेवले की कहानी की पहली किस्त.

Strange Mongoose: एक नेवला राजमहल के भंडार गृह से निकलकर धरती पर लोटने लगा. ऐसा उसने चार-पांच बार किया. यह विचित्र हरकत देख पांडवों को बड़ा आश्चर्य हुआ. धर्मराज युधिष्ठिर पशु-पक्षियों की भाषा समझते थे. वह उठे और भंडार गृह तक जाकर बोले- ‘हे नेवले, यह तुम क्या कर रहे हो? तुम्हें किस वस्तु की तलाश है?’

हमारी भारतीय संस्कृति में कई लोक कथाएं और पौराणिक कथाएं बहुत चर्चित और रोचक हैं. ऐसी ही रोचक कथा है एक विचित्र नेवले की. इस विचित्र नेवले का आधा शरीर सोने का था और आधा सामान्य नेवले सा. इस कथा से दान का महत्त्व तो पता चलता ही है, यह भी समझ में आता है कि श्रेष्ठ दान क्या हो सकता है. तो पढ़िए विचित्र नेवले का पहला भाग.

विचित्र नेवला

यह घटना महाभारत काल की है. कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त होने पर युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया. तब उन्होंने अपने सहायकों के भले के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया. यज्ञ बहुत ही भव्य था और उसमें सभी सहायकों को कीमती तोहफे दिए गए थे. इस यज्ञ में पधारे समस्त ऋषि-मुनि, राजा-महाराज और अन्य अतिथिगण पूर्ण संतुष्टि के साथ प्रस्थान कर चुके थे. पांडव भ्राता और श्रीकृष्ण यज्ञ की सफलता की चर्चा में मगन थे. पांडव इस उम्मीद से संतुष्ट थे कि इस यज्ञ का फल उन्हें अवश्य प्राप्त होगा. पांडव श्रीकृष्ण की यह बातचीत चल ही रही थी कि एक नेवला राजमहल के भंडार गृह से बाहर निकला और धरती पर लोटने लगा. फिर वापस भंडार गृह में चला गया. यह प्रक्रिया उसने चार-पांच बार दोहराई. यह कोई साधारण नेवला नहीं था. इसका आधा शरीर तो सोने की तरह चमक रहा था, जबकि शेष शरीर साधारण नेवले जैसा था. 

इस विलक्षण नेवले की विचित्र हरकतें देखकर पांडवों को बड़ा आश्चर्य हुआ. पांडवों के सबसे बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर पशु-पक्षियों की भाषा समझने में प्रवीण थे. वह उठे और भंडार गृह तक जाकर बोले- ‘हे नेवले, यह तुम क्या कर रहे हो? तुम्हें किस वस्तु की तलाश है?’नेवले ने आदरभाव से युधिष्ठिर को प्रणाम किया और बोला, ‘हे राजन, आपने जो महान यज्ञ संपन्न किया है, उससे आपकी कीर्ति दसों दिशाओं में व्याप्त हो गई है. इस यज्ञ से आपको जिस पुण्य की प्राप्ति होगी, उसका कोई अंत नहीं. मैं तो इस पुण्य के अनंत सागर में से पुण्य का एक छोटा-सा हिस्सा अपने लिए ढूंढ़ रहा हूं.’

नेवले की बात सुनकर युधिष्ठिर असमंजस में पड़ गए. उन्होंने नेवले से पूरी बात स्पष्ट रूप से कहने को कहा. तब नेवला बोला- ‘मेरा आधा शरीर सोने का है, शेष आधे शरीर को स्वर्णिम बनाने के लिए मैं आपके भंडार गृह में लोट रहा हूं. पूरे वृत्तांत को समझने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं. कृपया ध्यानपूर्वक सुनिए.’ यह कहकर उस विचित्र नेवले ने कहानी शुरू की - 
(जारी)

'विचित्र नेवला' की दूसरी किस्त
'विचित्र नेवला' की तीसरी किस्त

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