सुधांशु गुप्त और 'कैद बाहर' के लिए गीताश्री को मिला पहला शिव कुमार शिव स्मृति सम्मान  

Written By बिलाल एम जाफ़री | Updated: Jul 31, 2024, 04:45 PM IST

आखिरकार शिव कुमार शिव स्मृति सम्मान की घोषणा हो गई 

पहले शिव कुमार शिव स्मृति सम्मान की घोषणा हो गई है. सुधांशु गुप्त को उनके कहानी संग्रह 'तेहवां महीना' और गीताश्री को उनके उपन्यास 'कैद बाहर' के लिए यह सम्मान दिया जाएगा. 

हिंदी साहित्य जगत से बड़ी खबर आ रही है. प्रख्यात लेखिका गीताश्री को उनके उपन्यास 'कैद बाहर' और सुधांशु गुप्त को उनके कहानी संग्रह 'तेरहवां महीना' के लिए पहला शिव कुमार शिव स्मृति सम्मान दिया गया है. नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के कमलादेवी ब्लॉक में आयोजित प्रोग्राम में वरिष्ठ साहित्यकार ममता कालिया, महेश दर्पण, अशोक वाजपेयी, ललिता अस्थाना द्वारा चयनित कहानीकारों को सम्मानित किया गया.

ध्यान रहे साहित्यिक पत्रिका 'किस्सा' के संस्थापक शिव कुमार शिव की स्मृति में सम्मानों की घोषणा अभी बीते दिनों ही हुई थी. मैगज़ीन की कार्यकारी संपादक अनामिका शिव ने पुरस्कार पर बात करते हुए कहा था कि, 'हर वर्ष एक उपन्यास और एक कहानी संग्रह के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा.'

अनामिका ने बताया था कि, 'जब शिव कुमार शिव स्मृति सम्मान की घोषणा हुई तो देशभर से उनके पास 500 से अधिक कृतियां, जिनमें अन्य भाषाओं की भी 200 से अधिक पुस्तकें थीं, निर्णायक मंडल को प्राप्त हुईं.' 

क्या है गीताश्री का उपन्यास कैद बाहर 

राजकमल प्रकाशन से छपा गीताश्री का उपन्यास कैद बाहर महिलाओं की कैद छूटती ख्वाहिशों का सच है. किताब बताती है कि कैसे आज भी भारतीय महिलाएं  प्राचीन परम्पराओं और रूढ़ियों के पिंजरे में बंद तो हैं लेकिन इस कैद में उसका अपना एक निरापद कोना है.

जैसे जैसे किताब आगे बढ़ती है बतौर पाठक यही महसूस किया जा सकता है कि  अपना फैसला खुद स्त्री को लेना है. स्त्री को खुद बताना होगा कि उसे पिंजड़े में बंद रहना है या खुले आकाश में विचरण करते हुए अपने को विउस्तर देना है. अपना मुक्तिपथ चुनना है. 

किताब में लेखिका गीताश्री ने स्त्रियों को परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़ते दिखाया है, अपने शब्दों से उनके संघर्षों को आवाज दी है. किताब बताती है कि क़ैद से बाहर निकलकर एक महिला के लिए स्वच्छंद जीवन यापन का मार्ग किसी भी सूरत में आसान नहीं है. तमाम अवरोध हैं, तमाम तरह के संघर्ष हैं जिनका सामना एक स्त्री को करना पड़ता है.

क्या बताता है सुधांशु गुप्त का 'तेरहवां महीना'

पत्रकार और लेखक सुधांशु गुप्त द्वारा लिखा नव्यतम कहानी संग्रह 'तेरहवां महीना' बीस अलग अलग कहानियों के जरिये ऐसा समां बांधता है कि एक बार जब पाठक इसे शुरू करता है तो वो यही चाहेगा कि इसे पूरा खत्म करके ही उठे.

कहानी संग्रह न केवल अपने आप में अनूठा है बल्कि चिंतन योग्य भी है. कहानी का कथानायक या मुख्य चरित्र यहां अपना कोई भी पक्ष छुपाने की जगह उसे उधेड़ने में यकीन रखता है और यही बात इस कहानी संग्रह को अन्य कहानी संग्रहों से अलग करती है. 

भावना प्रकाशन से प्रकाशित 151 पृष्ठों के इस कहानी संग्रह में ऐसी तगमाम चीजें हैं जिनसे पाठक अपने को आसानी से जोड़ लेता है. कहानी संग्रह के विषय में कहा यही जा सकता है कि ये वैभव का शो बिज नहीं, अभावों के बीच जीने को विवश चरित्रों की त्रासदियां हैं. 

बताते चलें कि कार्यक्रम कार्यक्रम का मंच संचालन वरिष्ठ लेखिका अणुशक्ति सिंह ने किया. शिव कुमार शिव स्मृति सम्मान के लिए चयनित कथाकारों गीताश्री और सुधांशु गुप्त को 51-51 हजार रुपये की नकद राशि, स्मृति चिह्न और सम्मान पत्र दिया गया है. 

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