डीएनए हिंदी. इस साल का ‘जयपाल-जुलियुस-हन्ना साहित्य सम्मान’ देश के 3 नवोदित रचनाकारों को देने का फैसला किया गया है. चयनित रचनाकारों में अरुणाचल की डॉ. ताबिङ तुनुङ, महाराष्ट्र के संतोष पावरा और पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार की डॉ. पूजा प्रभा एक्का हैं. बता दें कि आदिवासी भाषा, लेखन और साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए इस अवार्ड की स्थापना पिछले साल की गई है. इसके तहत हिंदी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं सहित देश की किसी भी आदिवासी भाषा और लिपि में लिखे गए मौलिक साहित्य को यह सम्मान दिया जाता है.
ताबिङ तुनुङ को आदि-मिन्योंङ भाषा में रचित कविता संग्रह ‘गोम्पी गोमुक’के लिए यह सम्मान दिया जा रहा है जबकि संतोष पावरा को पावरा भाषा में प्रकाशित उनके काव्य संकलन ‘हेम्टू’ के लिए और पूजा प्रभा एक्का को असम की वरिष्ठ आदिवासी कथाकार काजल डेमटा के बांग्ला कहानी संग्रह के हिंदी अनुवाद ‘सोमरा का दिसुम’ के लिए सम्मानित किए जाने का फैसला किया गया है. यह सम्मान 26 नवंबर 2023 को रांची के प्रेस क्लब में आयोजित सम्मान समारोह में दिया जाएगा. चयनित रचनाकारों को यह सम्मान नागालैंड की आदिवासी स्त्री लेखक लानुसांगला त्जुदिर और केरल के बहुचर्चित आदिवासी कवि सुकुमारन द्वारा प्रदान किए जाएंगे.
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बहुभाषाई आदिवासी-देशज दुरङ परफॉरमेंस
रांची प्रेस क्लब में आयोजित इस कार्यक्रम में बहुभाषाई आदिवासी-देशज दुरङ परफॉरमेंस भी होगा, जिसमें झारखंडी भाषाओं के 20 से ज्यादा कवि-गीतकार शामिल होंगे. समारोह का आयोजन झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा और टाटा स्टील फाउंडेशन के सहयोग से प्यारा केरकेट्ट फाउंडेशन द्वारा किया जा रहा है.
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मुख्य अतिथि और बीज वक्ता
फाउंडेशन की ओर से वंदना टेटे ने बताया कि सम्मान समारोह दो सत्रों में दिनभर चलेगा. पहले सत्र में सम्मान प्रदान किए जाएंगे और दूसरे सत्र में बहुभाषाई आदिवासी-देशज दुरङ पर फॉरमेंस होगा. आयोजन का उद्घाटन मुख्य अतिथि और नागालैंड की प्रख्यात साहित्यकार, संपादक और प्रकाशक लानुसांगला त्जुदिर करेंगी. लानुसांगला उत्तर-पूर्वी भारत की पहली महिला हैं जिन्होंने नागालैंड की आदिवासी साहित्य को प्रमोट करने और दुनिया तक पहुंचाने के लिए ‘हेरिटेज पब्लिशिंग हाउस’ की स्थापना की. वे अब तक तीन पीढ़ियों की 200 से ज्यादा किताबें प्रकाशित कर चुकी हैं. वहीं समारोह के बीज वक्ता सुकुमारन चालीगाथा केरल के जाने-माने आदिवासी कवि और एक्टिविस्ट हैं. बारला आदिवासी समुदाय के सुकुमारन के संपादन में केरल के 40 आदिवासियों का कविता संग्रह छप चुका है. वे केरल साहित्य अकादमी का सदस्य बनने वाले पहले आदिवासी लेखक हैं. इन्होंने थिएटर और फिल्मों के लिए लेखन और अभिनय भी किया है.
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