साहित्य अकादेमी में उल्फत मुहीबोवा बोलीं - भक्ति साहित्य के हर शब्द के पीछे एक दर्शन है

Written By अनुराग अन्वेषी | Updated: Jan 10, 2024, 08:25 PM IST

उल्फत मुहीबोवा का स्वागत करते साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव.

Hindi Sahitya Ka Bhaktikal: साहित्य अकादेमी के कार्यक्रम में बुधवार को ताशकंद से आईं विद्वान उल्फत मुहीबोवा ने मध्यकालीन हिंदी साहित्य पर अपना आलेख प्रस्तुत किया. वे अपने शोध का विस्तार कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास के अतिरिक्त दादू दयाल, मलूक दास और रज्जब आदि तक ले गई हैं.

डीएनए हिंदी: भक्ति साहित्य के हर शब्द के पीछे एक दर्शन है, जो मुझे अपने देशवासियों को समझाना था - यह बात ताशकंद की उल्फत मुहीबोवा ने बुधवार को साहित्य अकादेमी के सभागार में कही. अवसर था प्रवासी मंच कार्यक्रम जिसे साहित्य अकादेमी ने आयोजित किया था. 
बता दें कि उल्फत मुहीबोवा भक्ति साहित्य में अपने शोध का विस्तार कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास के अतिरिक्त दादू दयाल, मलूक दास और रज्जब आदि तक ले गई हैं. साहित्य अकादेमी के कार्यक्रम में बुधवार को ताशकंद से आईं विद्वान उल्फत मुहीबोवा ने मध्यकालीन हिंदी साहित्य पर अपना आलेख प्रस्तुत किया. 

भक्ति साहित्य पर शोध

बता दें कि उल्फत मुहीबोवा ताशकंद राजकीय प्राच्य विद्या संस्थान के दक्षिण एशियाई भाषा विभाग में हिंदी की प्रोफेसर हैं. मुहीबोवा ने साहित्य अकादेमी के प्रवासी मंच कार्यक्रम में मध्यकालीन भक्ति साहित्य के बारे में अपने शोध को श्रोताओं से साझा किया. उल्फत मुहीबोवा ने हिंदी भक्ति साहित्य पर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है. 

निर्गुण और सगुण का अंतर

इस मौके पर उल्फत मुहीबोवा ने कहा कि मेरे शोध से उज्बेकिस्तान के पाठकों को यह साफ हुआ कि संत और भक्त, निर्गुण और सगुण में क्या अंतर होता है. मेरे शोध से वे यह भी समझ पाए कि मध्यकालीन या भक्ति साहित्य ब्रज, अवधी के अलावा फारसी और तुर्की में भी रचा गया है और उसमें जैन कवि भी शामिल हैं. मुहीबोवा ने कहा कि भक्ति साहित्य के हर शब्द के पीछे एक दर्शन है, जो मुझे अपने देशवासियों को समझाना था. उन्होंने भक्ति साहित्य के लोकप्रिय कवियों कबीर, सूर, तुलसी के अतिरिक्त अपने शोध को दादू दयाल, मलूक दास और रज्जब आदि तक विस्तार दिया है.

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सवाल जवाब का सत्र

उल्फत मुहीबोवा के आलेख-पाठ के बाद उपस्थित श्रोताओं ने उनसे कई सवाल पूछे. ये सारे सवाल सामान्यतः उज्बेक भाषा और साहित्य से जुड़ते थे. कई सवाल उज्बेक की सोशल मीडिया और वहां होने वाले अनुवाद को लेकर भी थे. इन सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि जब विभिन्न देशों में उज्बेक भाषा पढ़ाई जानी शुरू होगी तभी अनुवाद का कार्य गति पकड़ेगा. अभी अनुवाद की मात्रा बेहद कम है. उज्बेक साहित्य में भक्ति साहित्य की उपस्थिति के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि उनके देश में यह 15वीं शताब्दी में शुरू हुआ. वर्तमान में भक्ति साहित्य की प्रासंगिकता के बारे में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि भक्ति साहित्य अभी केंद्र में नहीं है, लेकिन यह कभी खत्म नहीं होगा, क्योंकि इसमें व्याप्त दर्शन की भावना सभी के बीच एकात्म और सहिष्णुता का संदेश देती है.

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सम्मान और मौजूदगी

कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने उल्फत मुहीबोवा का स्वागत अंगवस्त्रम् और साहित्य अकादेमी के प्रकाशन भेंट करके किया. कार्यक्रम में देवेंद्र चौबे, रश्मि, राजेश पासवान, आशीष पांडेय और विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं सहित अनेक पत्रकार और लेखक शामिल हुए.

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