लोककथाओं में ऐसी कई कहानियां हैं जो प्रेरणा देती हैं. इन कहानियों में नैतिकता की सीख तो है ही, सचाई के गुण भी बताए गए हैं. कहानियां बताती हैं कि अगर कोई ईमानदार है तो उसके जीवन में आई बड़ी से बड़ी परेशानियां भी छोटी पड़ जाती हैं.
'विनय से विद्या' कहानी भी हमें ऐसी ही सीख देकर जाती है. लोककथाओं से मिली प्रेरणा से हम आज का अपना जीवन सुधार सकते हैं. महाराजा श्रेणिक के बगीचे से आम चुराने वाले शख्स की जान भी इसलिए बची की वह आखिरकार सच्चा और ईमानदार शख्स था.
विनय से विद्या
पिछले कुछ दिनों से महाराजा श्रेणिक के बगीचे से आम के फल रोज चोरी हो रहे थे. राजा श्रेणिक ने आम के ये पेड़ खास तौर से महारानी चेलना के लिए लगवाए थे. इन पेड़ों पर सालों भर आम फलते थे. कड़ी पहरेदारी के बाद भी आम का चोरी होना आश्चर्यजनक था. तब राजा ने आम चोरी की बात अपने पुत्र अभयकुमार को बताई और यथाशीघ्र चोर का पता लगाने का आदेश दिया.
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तब रात के समय अभयकुमार भेष बदलकर निकला – सोचा उद्यान के पास वाली बस्ती में जाकर देखता हूं शायद कुछ सुराग मिल जाए. वहां एक चौराहे पर कुछ लोग इकठ्ठा होकर कथा-कहानी से एक-दूसरे का मनोरंजन कर रहे थे. अभयकुमार भी उन के बीच जाकर बैठ गया.
सभी अपनी बात कह चुके तब अभयकुमार की बारी आई. उन्होंने कहानी सुनानी शुरू की -
बसंतपुर नगर में एक कन्या रोज राजा के बगीचे से पूजा के लिए फूल तोड़ कर ले जाती थी. एक दिन माली ने उसे देख लिया और वह पकड़ी गई. माली के धमकाने पर वह गिड़गिड़ाई "मुझे जाने दो आगे से फूल नहीं तोडूंगी."
माली उसका रूप देख मोहित हो गया और बोला "अगर तू मेरी इच्छा पूरी कर दे तो मैं तुझे छोड़ दूंगा."
"युवती सकपकाई. फिर साहस कर बोली "अभी मैं कुंवारी हूं, कामदेव की पूजा करने जा रही हूं! तुम्हारे स्पर्श से अशुद्ध हो जाऊंगी! अभी मुझे जाने दो, वादा करती हूं कि विवाह होते ही पहली रात तुमसे मिलने आऊंगी".
"अशुद्ध होने की बात माली के दिमाग में जम सी गई. उसने कहा "अपना वचन याद रखना."
"हां-हां, मैं अपना वचन जरूर याद रखूंगी." युवती ने बिना सोचे समझे तुरंत जवाब दिया.
कुछ समय बाद युवती का विवाह विमल नाम के एक युवक से हो गया. विवाह की पहली रात युवती ने पति से कहा - "प्राणनाथ! मेरे सामने एक धर्म संकट उपस्थित हो गया है, आप ही बताएं मैं क्या करूं?" यह कहकर माली के साथ हुई पूरी बात उसने पति को बता दी.
युवक यह सुनकर एकाएक सन्न रह गया! फिर कुछ सोचते हुए कहा - "तुमने सच कहकर मेरा मन जीत लिया है! जाओ तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. सिर्फ अपने सच पर अटल रहना और सारी बात मुझे आकर बताना".
सोलह शृंगार में सजी धजी युवती माली के घर की ओर चल दी. कुछ दूर चलने पर दो चोर मिले. उन्होंने युवती से कहा "जल्दी से सारे गहने उतार कर हमें दे दो, हम पराई बहन-बेटी को हाथ नहीं लगाते."
तब युवती ने कहा "मुझे अपने वचन का पालन करने इसी रूप में जाना है! वापस आकर आपको आभूषण दे दूंगी, मेरी बात का विश्वास कीजिए."
चोरों ने एक-दूसरे को देखा, फिर कुछ सोचकर युवती को जाने की इजाजत दे दी.
कुछ दूर जाने पर युवती को रास्ते में एक दैत्य मिला, उसने युवती से कहा "मैं कई दिन से भूखा हूं. आज तुम्हें खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा."
युवती ने निर्भीकता से कहा "दैत्यराज! मेरा शरीर आपके किसी काम जाए, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी लेकिन अभी मैं किसी के वचन में बंधी हूं. आप मुझे जाने दीजिए. बस यहीं कुछ देर ही इंतजार कीजिए, वापसी में आप मुझे खा लेना."
दैत्य ने भी सुंदरी की बात का विश्वास कर उसे जाने दिया. सुंदरी माली के घर पहुंची, प्रणाम किया व अपने दिए हुए वचन की याद दिलाई. माली चकित था..!! उसने हाथ जोड़कर उसे नमस्कार किया और कहा "बहन! आप तो देवी हैं, पूजा करने योग्य हैं. मुझे क्षमा कीजिये, मेरा अपराध अक्षम्य है. पर मुझे विश्वास है कि आप जैसी देवी मुझे क्षमा करके प्रायश्चित का मौका जरूर देंगी". ऐसे कहकर यथायोग्य उपहार देकर उसे विदा कर दिया.
सुंदरी निर्भीकता से चलते हुए दैत्य के पास पहुंची और कहा "हे दैत्यराज! आप मुझे खाकर अपनी भूख मिटाएं. दैत्य ने क्षण भर को सोचा और कहा "जाओ मैं तुम्हारे सत्य और वचनबद्धता पर कायम रहने से खुश हुआ. मैं तुम्हारा भक्षण करके घोर पाप का भागी नहीं बन सकता".
अगली बारी चोरों की थी! युवती की सारी कहानी सुनकर चोरों का मन बदल गया. उन्होंने कहा "जाओ! सत्य पालन करने वाली तुम जैसी स्त्री तो हमारी बहन के समान है."
घर जाकर सुंदरी ने सारी घटना पति को बता दिया. उसके पति ने खुश होकर कहा "प्रिये! मुझे तुम्हारी सत्यवादिता पर विश्वास था. इसीलिए तुम्हें जाने दिया और तुम्हारी जीत हुई".
कहानी सुनाकर अभयकुमार बोले "सज्जनो! कृपया आप मुझे बताएं कि इन सब में श्रेष्ठ कौन है. सुंदरी, उसका पति, चोर, दैत्य अथवा वह माली?"
स्त्रियां तुरंत बोल पड़ीं "सुंदरी का साहस ही सबसे बड़ा है, वही सर्वश्रेष्ठ है.
वृद्ध बोले "नहीं! दैत्य कई दिन का भूखा था! उसने अपने हाथ में आए हुए प्राणी को जाने दिया, वह तो मनुष्य भी नहीं, इसीलिए वही सर्वश्रेष्ठ है."
युवकों ने कहा "नहीं! कदापि नहीं. कोई भी व्यक्ति अपनी नवविवाहिता को पर पुरुष के पास जाने की अनुमति नहीं दे सकता. इसीलिए उस युवक का ही त्याग सर्वश्रेष्ठ है."
तभी एक व्यक्ति भीड़ में से खड़ा हुआ और बोला "क्या उन चोरों का त्याग श्रेष्ठ नहीं है, जिन्होंने हाथ में आए कीमती आभूषणों को ऐसे ही छोड़ दिया? मेरी नजर में तो वही सर्वश्रेष्ठ है."
अभयकुमार उसकी बात सुनकर चौंक गए. समझ गए कि यहीं कुछ दाल में काला है. तब उन्होंने उसे पकड़ लिया और कहा "सच सच बताओ! तुमने ही बगीचे से आम चुराए हैं?" तब उस व्यक्ति ने अपनी चोरी करने की बात स्वीकार ली. अभयकुमार ने उसे गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन राजदरबार में पेश किया.
(जारी)
'विनय से विद्या' की अंतिम किस्त
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